जो फल तीर्थयात्रा से, जो पुण्य ब्राह्मण भोजन से, जो पुण्य व्रत उपवास और तपस्या से, जो पुण्य दान करने और भगवान का कीर्तन करने से, जो पुण्य सभी प्रकार के यज्ञों से प्राप्त होता है वह फल मात्र गौ को तृण खिलाने से प्राप्त हो जाता है.
हमारी भारतीय संस्कृति गौ माता पर ही आधारित है. हमारा मूल अधिष्ठान, हिंदू होने का लक्षण गौ की पूजा है. गाय की सेवा करने वाला ही हिंदू होता है यह कहा गया है. गौ माता में सारे देवी – देवता विद्यमान हैं. अकेले गौ माता की पूजा कर लेने से समस्त ३३ कोटि देवी – देवताओं की पूजा अपने आप हो जाती है. धर्म पालन के लिए हम क्या कर सकते हैं ? तो सबसे पहले यह उपदेश प्राप्त होता है ऋग्वेद में कि गौ माता की पूजा करनी चाहिए. आप सब बहुत भाग्यशाली हैं, मनुष्य हो जाना ही दुर्लभ है, कठिन है, बहुत बड़ी घटना है और मनुष्य होकर के गौ माता की सेवा की भावना मन में पैदा हो जाना यह आपके लिए बहुत बड़े सौभाग्य का यह अवसर है.
गौ माता की सेवा से आप समस्त सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं. शास्त्रों में तो यह आदेश है कि कुछ भी प्राप्त ना हो तब भी गौ माता की सेवा करनी चाहिए. जैसे हम अपने वृद्ध माता – पिता की सेवा करते हैं, परमात्मा की सेवा करते हैं उसके पहले गौ माता की सेवा करना है.
उमा कल्याण ट्रस्ट मुंबई द्वारा गौ माता की सेवा के लिए अनेक प्रकल्पों का उद्घाटन हुआ है. कई वर्षों से उमा कल्याण ट्रस्ट गौ माता की सेवा में संलग्न है. वृंदावन में, मुंबई में बहुत अच्छा अभियान आप लोगों ने प्रारंभ किया है कि गौ माता को किसानों तक भेजना और किसानों के ह्रदय में यह गौ सेवा की निष्ठा जागृत करना, गौ माता की उपयोगिता बताना, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक. उमा कल्याण ट्रस्ट के सभी ट्रस्टियों को कार्यकर्ताओं को उनके अधिकारियों को जितने भी लोग इनके सेवा के प्रकल्प में संबंध रखते हैं, सभी को हम भगवान द्वारकाधीश का आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य श्रीस्वामी सदानन्द सरस्वती जी
मथुरा स्थित विहारवन राल गौशाला में पिछले छ: महीनों से उमा कल्याण ट्रस्ट द्वारा संचालित गौ धाम गुरुकुल में होली मनायी गई।
होली के उत्साह में मगन बच्चों ने जमकर होली खेली और नृत्य किया। होली के आनंद ने बच्चों के साथ बड़ों को भी आकर्षित किया।
वृंदावन स्थित गौ धाम आश्रम के संयोजन से राल गौशाला परिसर में वितरित गुझियों की मिठास से होली की धूम और उल्लास दोगुना हो गया।
सुंदर भविष्य की ओर ‘गौ धाम गुरुकुल’
राल गौशाला के संस्थापक श्री राजेश अग्रवाल जी और उमा कल्याण ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी श्रीयुत श्रीनारायण अग्रवाल जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में विहार वन राल गोशाला में गुरुकुल संचालित किया जा रहा है। गौ धाम गुरुकुल का उद्देश्य है कि यहाँ बच्चे सीखे, समझें और अपने कार्यों से समाज में योगदान दे सकें।
शिक्षा– संस्कृति– संस्कार के केंद्र ‘गौ धाम गुरुकुल’ की बुनियाद 10 सितंबर 2024 को रखी गई। इस गुरुकुल में राल गोशाला में काम करने वाले गौ सेवकों के बच्चों के साथ ही आसपास के गांव के बच्चे पढ़ते हैं।
‘गौ धाम गुरुकुल’ में दो से तेरह – चौदह वर्ष की आयु के बच्चे बड़े उत्साह से शिक्षा ग्रहण करते हैं।
व्यक्तित्व विकास से देश विकास की ओर उन्मुख गौ धाम गुरुकुल में आने वाले हर बच्चे को यूनिफ़ॉर्म्स के जोड़े और पैरों में पहनने के लिए क्रॉक्स दिए गये हैं। इसके अलावा बच्चों को प्रतिदिन दूध और स्नैक्स भी दिया जाता है।
प्रातः स्नान और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप कर गौधाम गुरुकुल के विद्यार्थी राल गौशाला परिसर में बने मंदिर में चल रहे हरिनाम अखंड कीर्तन में भाग लेकर अपने दिन का प्रारंभ करते हैं।
‘गौ धाम गुरुकुल’ की कक्षा प्रतिदिन ॐ की पवित्र ध्वनि से आरंभ होती है। फिर सरस्वती वंदना और गायत्री मंत्र का जाप होता है।
‘गौ धाम गुरुकुल’ में बच्चों को अनुशासन, संस्कृति और संस्कार शिक्षा के साथ – साथ अक्षर ज्ञान और हिसाब-किताब रखना सिखाया जाता है। मौखिक ज्ञान के साथ ही बच्चों को साक्षर बनाया जा रहा है, इसके लिए उन्हें स्लेट पर बत्ती से लिखना सिखाया जाता है।
छोटी- छोटी कहानियों, कविताओं के माध्यम से बच्चे प्रकृति का आदर करना सीख रहे हैं।
देश- दुनिया के बारे में सामान्य ज्ञान प्राप्त करने के साथ ही ‘गौ धाम गुरुकुल’ के बच्चे अपना काम स्वयं करना सीखते हैं।
विहार वन राल गोशाला के व्यस्क गौ सेवकों की सहायता से बच्चों ने स्वयं पोषण वाटिका लगाई है, जिसकी देखभाल बच्चे ही करते हैं। ‘गौ धाम गुरुकुल’ में बच्चे सीखते हैं – सजगता, सामर्थ्य और स्वच्छता।
श्रीनारायण अग्रवाल जी की प्रेरणा से ‘गौ धाम गुरुकुल’ में संस्कार जागरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। क्योंकि उनका मानना है कि गुरुकुल के अनुशासित वातावरण में संस्कारित आज के ये नन्हे पौधे आने वाले कल के सुदृढ़ वृक्ष बनेंगे तथा समाज और देश के काम आयेंगे।
समाज-धर्म और प्राणिमात्र के कल्याण के लिए ‘उमा कल्याण ट्रस्ट’ विगत तीन दशकों से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता आ रहा है। कर्तव्य – पथ पर चलते हुए ‘उमा कल्याण ट्रस्ट’ ने भारतीय संस्कृति की संवाहक ‘गौ माता’ के संरक्षण – संवर्धन के लिए ‘गौ धाम योजना’ प्रारंभ की है, जिसका सूत्र वाक्य है ‘गोवंश की घर वापसी’ अर्थात् गोवंश की अपने घर किसान परिवार में वापसी हो। गौ धाम योजना के अंतर्गत मथुरा जनपद में किसान को गोवंश दिलवाने का कार्य सफलतापूर्वक किया जा रहा है। शीघ्र ही इस योजना का अन्य राज्यों में भी विस्तार किया जाएगा। गोवंश किसान पर बोझ न बने और गोपालन से किसान आत्मनिर्भर हो, इसके लिए जो आवश्यक कदम उठाये गए हैं वो इस प्रकार हैं:-
किसान परिवार को विशेषज्ञों द्वारा गोबर और गोमूत्र से जैविक खाद, जैव उर्वरक, जैविक कीटनाशक तथा दीपक, धूपबत्ती आदि गौ उत्पाद बनाने का निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
गौ उत्पाद बनाने के लिए मोल्ड (सांचे) निःशुल्क दिये जा रहे हैं।
गोवंश के स्वास्थ्य की देखरेख के लिए डॉक्टर और एंबुलेंस की व्यवस्था की जाती है।
ग्वालों को प्रशिक्षित किया जा रहा है कि वो किस प्रकार गोवंश की देख रेख करें, कैसे दूध कैसे निकालें, बीमारी होने पर कैसे उपचार करें आदि।
गोवंश को हरा चारा मिलता रहे, इसके लिए नेपियर आदि चारा फसल उगाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है।
गोवंश के प्रति जन जागरण के लिए गौ रथ का संचालन किया जा रहा है।
इसके अतिरिक्त जन जागरण के लिए ‘गौ धाम संदेश’ पत्रिका प्रकाशन, सोशल मीडिया, वीडियो और विभिन्न प्रचार माध्यम द्वारा प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
प्रत्येक देशवासी के हृदय में गोवंश को लेकर पीड़ा है, फिर भी प्रतिदिन लाखों गोवंश की निर्मम हत्या हो रही है। ये विडंबना ही है कि गाय जब तक दूध देती है, तब तक किसान उसे अपने पास रखता है, लेकिन नर गोवंश, बछड़े, बिनदुधारू, बूढ़ी, अपाहिज, बीमार गाय को उपयोगी न मानकर किसान मरने के लिए छोड़ देता है अथवा कसाई को बेच देता है। गौ धाम योजना का प्रयास है कि किसान ख़ुशी-ख़ुशी गोवंश का पालन-पोषण करे, किसी भी स्थिति में गोवंश को न छोड़े तथा उसके गोबर और गोमूत्र के उपयोग से ख़ुशहाल जीवन व्यतीत करें। इससे आवारा गोवंश पर रोक लगेगी, गोवंश का कटना बंद होगा तथा गोबर-गोमूत्र से प्राकृतिक खेती में किसानों को लाभ मिलेगा। निराश्रित गोवंश के लिए भले ही गोशालाएं अथवा पिंजरापोल गोआश्रय का मुख्य केंद्र बने हुए हैं, लेकिन सच्चे अर्थों में आज भी गोवंश का आश्रय स्थल – उसका घर किसान परिवार ही है। किसान परिवार में ही गौ माता को आदर-सम्मान और सुरक्षा मिल सकती है। इसलिए ‘गौ धाम योजना’ द्वारा किसान के घर को ‘गौ धाम’ बनाने का संकल्प लिया गया है, जिससे गोवंश अपने घर अर्थात किसान परिवार में सुख से रह सके। इस प्रकार गोवंश की रक्षा होगी, कृषि उन्नत होगी, किसान आत्मनिर्भर होगा और ‘गौ संस्कृति’ की पुनर्स्थापना होगी। इसके लिए गौ धर्म, गौ संस्कृति, गोवंश की उपयोगिता, संरक्षण-संवर्धन, गो उत्पाद, गौ आधारित खेती आदि ऐसे अनेक ऐसे विषय हैं, जिन्हें एक ग्रंथ के रूप में संग्रहीत करके जन-जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है। इसीलिए उमा कल्याण ट्रस्ट ने ‘राष्ट्रमाता विशेषांक’ प्रकाशित करने की योजना बनाई है। ‘राष्ट्रमाता विशेषांक’ में इन सभी विषयों के साथ-साथ गोवंश के प्रति आस्था रखने वालों का परिचय, उनके विचार और गोवंश के संरक्षण-संवर्धन के लिये किए जा रहे कार्यों का लेखा-जोखा प्रकाशित किया जाएगा, जिससे ‘गौ संस्कृति’ की पुनर्स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो सके।
महाकुंभ भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। कुंभ यानि घड़ा, जिसे कलश भी कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष में कुंभ एक राशि चिन्ह भी है। दैनिक जीवन में घड़ा या कलश हिंदू संस्कृति में सभी पवित्र गतिविधियों का एक अभिन्न अंग है। कुंभ एक ऐसा पात्र है जिसमें जीवन, आत्मा, जल, ज्ञान और अमृत समाहित है। कुंभ का अर्थ मानव शरीर भी है जो पांच तत्त्वों- जल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश और वायु से बना है। मानव जब अपने सच्चे स्वरूप की खोज करने के लिए ज्ञान और आध्यात्मिकता के कुंभ में डुबकी लगता है तो परम तत्व यानि अमृत से साक्षातकर होता है।शरीर के पाँच तत्व प्रकृति के पाँच तत्वों में एकलयता प्राप्त कर लेते हैं। कुंभ मेला भारतीय अनेकता में एकता का प्रतीक है जहाँ संस्कृतियों, ज्ञान और अध्यात्म का संगम होता है। सन्यासी,वैरागी,तपस्वी, साधु- संत एक स्थान पर एकत्र होते हैं तो प्रेम, एकता, ज्ञान और आध्यात्म के जीवन मूल्य कुंभ समाहित हो जाते हैं, जीवन का घट अमृत से भर जाता है, यह कुंभ कभी सूखता या खाली नहीं होता है। कुंभ मेला हमें पवित्र नदियों के गीतमय प्रवाह के माध्यम से प्रकृति और धरती माँ के महत्व सिखाता है। कुंभ का आयोजन प्रकृति और मानवता का संगम बनकर आस्था को फिर से जीवंत करता है और कुंभ के रूप में हमारे मन और शरीर को शाश्वत ऊर्जा देता है जो कभी समाप्त नहीं होती। कलशस्य मुखेविष्णु कण्ठे समाश्रितः | मुलेत्वस्य स्थितो ब्रम्हा मध्ये मातृगणः स्मृतः कुक्षौ तु सागरः सर्वे सप्त दीपा वसुन्धरा रुग्वेदो यजुर्वेदो सामवेदोह्रवण || अंगैच्छश्र सरितः सर्वे कलशं तु समाश्रितः |
ऐसा माना जाता है और पवित्र शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि कुंभ का मुंह श्री विष्णु की उपस्थिति का प्रतीक है, इसकी गर्दन भगवान रुद्र की है, पितामह ब्रह्मा इस कुंभ का आधार है, केंद्र में सभी देवी-देवता हैं और आंतरिक भाग में संपूर्ण महासागर हैं, चारों वेद कुंभ में समाहित हैं।
समुद्र, नदी, तालाब और कुएं कुंभ के प्रतीक हैं क्योंकि इन स्थानों का पानी सभी तरफ से ढका हुआ है। आकाश में हवा का आवरण है, सूर्य पूरे ब्रह्मांड को अपने प्रकाश से ढकता है, और मानव शरीर कोशिकाओं और ऊतकों से ढका होता है। कुंभ मेला आस्था और आध्यात्म से जोड़ता है। पौराणिक मान्यता है कि जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से अमृत का कलश निकला। देवताओं और राक्षसों के बीच इसे पाने के लिए संघर्ष होने लगा। इसी बीच देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयंत जब अमृत कुंभ लेकर भागने की चेष्टा कर रहा था, तब कुछ दैत्यों ने उसका पीछा किया। अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग में 12 दिन तक संघर्ष चलता रहा और उस कुंभ से 4 स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। देवताओं के 12 दिवस नरलोक में 12 वर्ष होते हैं।कुंभ से छलकी अमृत की बूँदें पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। इसीलिए प्रत्येक 12 वर्ष में महा कुंभ में स्नान करने के लिए यह महोत्सव होता है।
देवानां द्वादशाहोभिर्मर्त्यै द्वार्दशवत्सरै:। जायन्ते कुम्भपर्वाणि तथा द्वादश संख्यया:।।
सूर्य, चंद्र और बृहस्पति देवासुर संग्राम के समय अमृत कुंभ की रक्षा करते रहे। इन तीनों का संयोग जब विशिष्ट राशि पर होता है, तब कुंभ योग आता है।
एक अन्य कथा के अनुसार ऋषि कश्यप की दो पत्नियाँ थीं कद्रु और विनता। कद्रु ने 1000 नाग पुत्रों को जन्म दिया और विनता के दो पुत्र हुए, जिनमें से एक गरुड़ थे। गरुड़ ने अपनी मां विनता को कद्रु के नाग पुत्रों की दासता से मुक्त कराने के लिए वैकुंठ से अमृत कलश लाने का संकल्प लिया। विष्णु भगवान की अनुमति से गरुड़ ने अमृत कलश ले आये, भगवान विष्णु की शक्ति से नाग उस कलश नहीं पहुँच सके। इस दौरान अमृत की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं, जिससे इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन आरंभ हुआ।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो कुंभ मेले देश की उन कुछ खास जगहों पर आयोजित किये जाते हैं जहां पर एक संपूर्ण ऊर्जा मंडल तैयार किया गया था। हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है इसलिए यह एक ‘अपकेंद्रिय बल’ यानी केंद्र से बाहर की ओर फैलने वाली ऊर्जा पैदा करती है। पृथ्वी के 0 से 33 डिग्री अक्षांश में यह ऊर्जा हमारे तंत्र पर मुख्य रूप से लम्बवत व उर्ध्व दिशा में काम करती है। खास तौर से 11 डिग्री अक्षांश पर तो ऊर्जाएं बिलुकल सीधे ऊपर की ओर जातीं हैं। इसलिए हमारे प्राचीन गुरुओं और योगियों ने गुणा-भाग कर पृथ्वी पर ऐसी जगहों को तय किया, जहां इंसान पर किसी खास घटना का जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। इनमें से अनेक जगहों पर नदियों का समागम है और इन स्थानों पर स्नान का विशेष लाभ भी है। अगर किसी खास दिन कोई इंसान वहां रहता है तो उसके लिए दुर्लभ संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं। कहते हैं कि इस दौरान कुंभ की नदियों का जल अमृत के समान हो जाता है। इसीलिए इसमें स्नान और आचमन करने का महत्व बढ़ जाता है। कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। कुछ दस्तावेज बताते हैं कि कुंभ मेला 525 बीसी में शुरू हुआ था। गुप्त काल के दौरान से ही इसकी शुरुआत हुई थी। सम्राट हर्षवर्धन के काल में भी इसके प्रमाण देखने को मिलते हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार राजा हर्षवर्धन लगभग हर 5 साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे। जिसमें वह अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों को दान में दे दिया करते थे। बाद में आदि शंकराचार्य और उनके शिष्यों द्वारा संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर शाही स्नान की व्यवस्था की गई थी। पहले कुंभ उत्सव का स्वरूप छोटा था। कुंभमेला में भाग लेने वाले भक्तों और साधुओं की संख्या क्रमशः बढ़ती गई । शास्त्रों के अनुसार जब बृहस्पति वृषभ राशि में होता है और सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं, तो प्रयाग में कुंभ आयोजित किया जाता है।
मकरे च दिवा नाथे ह्मजुगे च बृहस्पतौ कुम्भ योगोभवेत्तात्र प्रयागे ह्यति दुलारभ मेष राशि गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ | अमावस्या तदा योगः कुम्भख्यस्तिरथ नायके || प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ का महत्व अधिक माना गया है। दरअसल, यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। जिस वजह से यह स्थान अन्य जगहों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। 144 वर्षों में पहली बार यह अद्भुत संयोग बना है जब महाकुंभ अमृत स्नान के शुभ अवसर पर है।
हमारे देश में हमेशा से मुक्ति ही परम लक्ष्य रहा है। हमारे संस्कृति में आंतरिक विज्ञान को जितनी गहराई से समझा गया है ऐसी समझ पृथ्वी पर किसी दूसरी संस्कृति में नहीं मिलती।
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥” गुरु की कृपा से ही सभी कार्य सफ़ल होते हैं, ऐसा मेरा मानना है। गुरु की कृपा हुई तो गौ धाम भी बन गया और मुझे गौ रक्षा की प्रेरणा मिली। गौ सेवा तो सभी लोग करते हैं, लेकिन आवश्यकता गौ रक्षा की है। भारतीय संस्कृति में हर जीव पर प्रेम और दया रखना ही मानवता है, किन्तु गाय एक ऐसा जीव है जिसके प्रति मनुष्य ह्रदय में प्रेम और दया के साथ श्रद्धा का भाव भी जागता है और इसीलिए गाय को देवतुल्य मानकर पूजा जाता है और गोमाता कहा जाता है । सदियों से यही होता आया है, लेकिन गोवंश को लेकर वर्तमान परिदृश्य बदल चुका है। आज भारत में देशी गोवंश की अनेक नस्लें या तो समाप्त हो चुकी हैं या फिर उनकी संख्या गिनी-चुनी ही रह गई है। देशी गोवंश की सुरक्षा, नस्ल सुधार और संवर्धन के लिए अब ‘गौ रक्षा’ करनी होगी। ‘गौ रक्षा’ में ही ‘गौ सेवा’ निहित है, इसलिए गोवंश की रक्षा करने से गौ सेवा का पुण्य भी प्राप्त होगा, जो कई गुना अधिक होगा, क्योंकि ‘जीवन रक्षा’ का कर्म सर्वोपरि है। इसलिए अब ‘गौ भक्ति’ और ‘गौ सेवा’ को ‘गौ रक्षा’ में बदलने का समय आ गया है।
उमा कल्याण ट्रस्ट ‘गौ रक्षा’ के अपने उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ रहा है। लेकिन इसके लिए समाज का सहयोग आवश्यक है, तभी गोवंश को सुरक्षित किया जा सकता है। सरकार योजनाएँ बनाती है, लेकिन उसके क्रियान्वयन के लिए सरकार की अपनी सीमाएँ हैं-बाध्यता है, इसलिए हमें सरकार के साथ क़दम से क़दम मिलाकर काम करना होगा। मथुरा जनपद में हम यही कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की सहभागिता योजना से किसानों को गोपालन के लिए गाय दी जा रही है। इसके साथ ही गाय के चारे के लिये प्रति माह 1500 रुपये भी दिये जा रहे है। उमा कल्याण ट्रस्ट सरकार की सहभागिता योजना के क्रियान्वयन में पूरा सहयोग कर रहा है। इसके लिए गौ धाम, वृंदावन में एक अलग से टीम बनाई है, जो इस कार्य को कर रही है। ये टीम सहभागिता योजना की कागज़ी कार्यवाही पूरी करती है, गाय दिलाती है और बाद में गोपालक किसान के घर में पल रही गाय के स्वास्थ्य, चारा आदि के बारे में भी देखभाल करती है तथा गोपालन में आ रही परेशानियों को दूर करने का प्रयास करती है। उमा कल्याण ट्रस्ट गोशालाओं में गोवंश के रख रखाव पर भी ध्यान दे रहा है। किसान को स्वस्थ गोवंश देने के लिए मथुरा जनपद के राया ब्लॉक में सियरा ग्राम पंचायत की गोशाला का कुछ समय तक संचालन भी किया। यहाँ आवारा गोवंश को आश्रय देखकर उनकी अच्छी तरह से देखभाल की गई और फिर स्वस्थ होने पर उन्हें किसान को पालने के लिए दे दिया गया। वर्तमान में उमा कल्याण ट्रस्ट की गोधाम टीम मथुरा की राल गोशाला में गोवंश के रख रखाव, स्वास्थ्य, आहार आदि के लिए अपनी सेवाएँ दे रही है। गोशाला में काम करने वाले ग्वालों और किसान परिवार के बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करने के लिए गुरुकुल बनाने की योजना पर भी काम चल रहा है। नेपियर घास उगाने का प्रयास भी कर रहे हैं, जिससे गोवंश को पर्याप्त हरा चारा उपलब्ध हो सके। महाराष्ट्र में देशी गाय को ‘राज्य माता’ का दर्ज़ा दिया गया है। ऐसा करने वाला महाराष्ट्र देश का पहला राज्य है। हम आशा करते हैं कि शीघ्र ही पूरे देश में गौ माता को उसका सम्मान और दर्ज़ा अवश्य मिलेगा। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने गोशालाओं में स्वदेशी गायों के पालन-पोषण के लिये प्रति गाय 50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से प्रतिमाह 1500 रुपये की सब्सिडी योजना भी लागू की है। इससे गायों को चारा उपलब्ध कराने और देशी नस्ल के संरक्षण में गोशालाओं को काफ़ी मदद मिलेगी। गोवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए गोशाला आदर्श आश्रय स्थल हो, ये आवश्यक है; लेकिन गोवंश का स्वाभाविक परिवार किसान का घर ही है, जहाँ वो सुखी और सुरक्षित रह सकता है। किसान भी इस वास्तविकता से परिचित हो रहा है कि गोवंश उसके लिए कितना उपयोगी है। किसानों और गोवंश दोनों का कल्याण हो, उमा कल्याण ट्रस्ट इस दिशा में भी निरंतर प्रयास कर रहा है। इस प्रयास में सभी का सहयोग मिलेगा और गोसेवा- गोरक्षा के यज्ञ में आप सभी योगदान देंगे, ऐसा विश्वास है।
गोवंश की पीड़ा को योजनाबद्ध रूप से दूर करने के लिए गौ रक्षा – धर्म रक्षा और राष्ट्र रक्षा के संकल्प के साथ उमा कल्याण ट्रस्ट ने ‘गौ धाम योजना’ प्रारंभ की है। ‘गौ’ सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है, लेकिन दुर्भाग्यवश आज गोवंश की दशा अत्यंत दयनीय है। गाय जब दूध देना बंद कर देती है, तब उसे छोड़ दिया जाता है। यही स्थिति नर गोवंश की है। अनुपयोगी होने पर गोवंश कसाई को बेच दिया जाता है, या फिर सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। इन दोनों ही स्थिति में गोवंश का रक्त बहता है। गोवंश के रक्त की बूंद जब तक पृथ्वी पर गिरेगी तब तक न धर्म सुरक्षित रहेगा, न संस्कृति और न ही राष्ट्र। गोवंश के जीवन की सुरक्षा हो और वो सुख से रह सकें, इसलिए ‘गौ धाम योजना’ के अंतर्गत किसान को गोपालक बनाकर गोवंश दिया जा रहा है। किसान परिवार गोवंश का पालन – पोषण भली भांति कर सके इसके लिए उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया जा रहा है। अधिकांश लोग गाय की उपयोगिता दूध तक ही सीमित समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। गोबर और गोमूत्र की उपयोगिता किसी भी मायने में दूध से कम नहीं है। गौ धाम योजना के अंतर्गत किसानों को गोपालक बनाकर गोवंश पालने के लिए दिया जा रहा है और उन्हें गोबर और गोमूत्र का उपयोग बताकर आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। गौ वंश को किसान आसानी से पाल सकें, इसके लिए प्रशिक्षक गांव-गांव जाकर उन्हें गोबर और गोमूत्र से गौ उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। जिन किसानों को गोपालक बनाया जा रहा है उन्हें गौ उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ मोल्ड (सांचे) भी निःशुल्क दिये जा रहे हैं। गौ उत्पाद के प्रशिक्षण और गौ उत्पाद बनवाने के लिए आवश्यकतानुसार सेंटर बनाये गये हैं। दीपक, धूपबत्ती आदि उत्पाद बनाकर ग्रामीण महिलायें स्वावलंबी हो रही हैं। गोवंश को चराने के लिए गांव से ही गौ सेवक तैयार किये जा रहे हैं। इस प्रकार ग्रामीणों को रोज़गार मिल रहा है। सेंटर द्वारा गोवंश के स्वास्थ्य की देखरेख के लिए डॉक्टर और एंबुलेंस की व्यवस्था की जाती है। गोवंश को लाने ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था की जाती है। आवश्यकता के अनुसार गौवंश के चारे की व्यवस्था की जाती है। वृंदावन में उत्तर प्रदेश सरकार की सहभागिता योजना के अंतर्गत किसानों को गोवंश दिलवाया जा रहा है। मथुरा जनपद के राया ब्लॉक के सियरा गाँव में ग्राम पंचायत के सहयोग से गोशाला का संचालन किया गया। इस गोशाला से सहभागिता योजना के अंतर्गत किसानों को स्वस्थ गाय दी जाती रही है। गौ धाम योजना के प्रचार – प्रसार गौ रथ का संचालन किया जा रहा है, गौ धाम संदेश पत्रिका का प्रकाशन किया जा रहा है और किसानों / गोपालकों का डेटा तैयार किया जा रहा है। गौ धाम योजना का मुख्य केंद्र गोपाल श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन – मथुरा है। शीघ्र ही इस योजना का विस्तार अन्य राज्यों में भी किया जाएगा। ‘गौ सेवा और गौ रक्षा’ के लिए समर्पित ‘गौ धाम योजना’ गोवंश और किसान परिवार के मध्य सेतु निर्माण का कार्य भी कर रहा है। क्योंकि गोवंश की उचित देखभाल किसान ही कर सकता है, इसलिए उमा कल्याण ट्रस्ट द्वारा गोवंश की सुरक्षा और ख़ुशहाली के लिए किसान परिवार के सर्वांगीण विकास की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है, जैसे किसान को आत्मनिर्भर बनाना, किसान परिवार की महिलाओं को स्वावलंबी बनाना, उनको बच्चों को संस्कारित और शिक्षित करना आदि। गोवंश के संरक्षण-संवर्धन के लिये किए जा रहे कार्य
• आत्मनिर्भर किसान – गरीब किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गोवंश दिलाना तथा गोबर और गोमूत्र के उपयोग से आमदनी बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण देना • चारा प्रबंधन – गोवंश को पर्याप्त चारा उपलब्ध हो, इसके लिए नेपियर घास उगाना और किसानों को इसके लिए प्रेरित करना व प्रशिक्षण देना • जैविक कृषि – गोबर और गोमूत्र से जैविक खाद, जैव उर्वरक तथा कीटनाशक बनाने का प्रशिक्षण देकर किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करना • महिला सशक्तिकरण – कृषक महिलाएं स्वावलंबी बन सकें इसके लिए उन्हें गोबर से दीपक, धूपबत्ती, उपले आदि उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण देकर उनकी आय में वृद्धि करना • गोवंश संरक्षण – गोवंश की सुरक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से आदर्श गोशाला का मॉडल तैयार करना • स्वास्थ्य रक्षा – गोवंश के स्वास्थ्य की देखभाल और चिकित्सा सुविधा के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था करना और समय – समय पर गोशालाओं और गांवों में स्वास्थ्य शिविर का आयोजन करना अन्य गतिविधियां:- i) वृक्षारोपण करना ii) चारागाह विकसित करना (हर पंचायत में चारागाह की भूमि होती है, सरकार के सहयोग से उसे चिन्हित किया जा रहा है) iii) पोषण वाटिका तैयार करना iv) यदि कहीं पानी की समस्या है तो बारिश के पानी को स्टोर करने के लिए सम्बंधित अधिकारी से मिलकर इन गाँवों के लोगों को पानी स्टोर करने की जानकारी देना v) किसान परिवार बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए प्रयास करना
सफलता के 2 वर्ष :-
गौ धाम द्वारा विगत 2 वर्षों में गोवंश के संरक्षण और किसान परिवार के खुशहाल जीवन के लिए अनेक उल्लेखनीय कार्य किये गये:-
आवारा गोवंश को आश्रय : सड़कों पर भटकते आवारा, निराश्रित गोवंश को आश्रय देने के लिए उमा कल्याण ट्रस्ट ने गौ धाम के माध्यम से एक मुहिम चलाई, जिसके अंतर्गत किसानों द्वारा छोड़े गये गोवंश को पुनः किसानों के घर पहुँचाया गया। किसान दोबारा गोवंश को न छोड़े इसके लिए उन्हें गोमूत्र और गोबर का उपयोग सिखाया गया तथा जैविक कृषि और गौ उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण देकर किसान और किसान परिवार की महिलाओं को अतिरिक्त आय के साधन से जोड़ा गया।
सियरा गोशाला : बीमार, अपाहिज और वृद्ध गोवंश की देखभाल के लिए मथुरा ज़िले के सियरा ग्राम पंचायत (राया ब्लॉक) में गोशाला का सफलतापूर्वक संचालन किया गया। उमा कल्याण ट्रस्ट द्वारा संचालित इस गोशाला में गोवंश के रहने तथा उनके चारा, पौष्टिक आहार और उपचार आदि का समुचित प्रबंध किया गया।
सहभागिता योजना : निराश्रित गोवंश के रख-रखाव के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की सहभागिता योजना द्वारा किसानों को निःशुल्क गोवंश दिया जा रहा है। साथ ही गोवंश के चारे के लिए प्रतिदिन 50 रुपए के हिसाब से प्रतिमाह 1500 रुपए का अनुदान दिया जा रहा है। सहभागिता योजना का लाभ अधिक से अधिक किसानों को मिल सके इसके लिए उमा कल्याण ट्रस्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। गौ धाम टीम के सदस्य मथुरा जनपद के अलग अलग ब्लॉक में जाकर किसानों को सहभागिता योजना की पूरी जानकारी देते हैं और उन्हें गोवंश रखने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके लिए आवश्यक दस्तावेज़ से लेकर गोशाला से गाय दिलाने में गौ धाम टीम किसानों की पूरी मदद करती है। गाय दिलाने के बाद उसके रख रखाव, दाना – चारा, स्वास्थ्य आदि को लेकर गौ धाम टीम लगातार उन गोपालक किसानों के संपर्क में रहती है और सरकार से मिलने वाली धनराशि दिलाने में उनकी सहायता करती है।
कृष्णं वंदे जगत गुरुं। पूरे विश्व के गुरु भगवान श्रीकृष्ण का वंदन करते हुए गौ रक्षा के लिए किए जा रहे श्रीनारायण अग्रवाल जी के प्रयासों की हम सराहना करते हैं और ‘गौ धाम संदेश’ पत्रिका के प्रकाशन के लिए उन्हें हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं। गौ रक्षा का लक्ष्य बड़ा है, लेकिन असंभव नहीं है। हमारा मानना है कि तीन एजेंसियों – सरकार, लोगों की भावना और निजी उद्यमियों के बीच सही तालमेल से इस लक्ष्य को पाया जा सकता है। इसी तालमेल से उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने विहार क्षेत्र के राल गांव में गो रक्षा का एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया है जो गोवंश के प्रति लोगों की धार्मिक भावनाओं के बिल्कुल अनुरूप है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण इन जंगलों में घूमते थे, विहार करते थे, जिन्हें ‘वन’ के नाम से जाना जाता है। भगवान कृष्ण के इस विहार वन क्षेत्र में सरकारी जमीन का एक बड़ा हिस्सा (136 एकड़) उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद को हस्तांतरित किया गया है। दिल्ली के एक प्रमुख व्यवसायी राजेश अग्रवाल जी ने यहाँ गोशाला के निर्माण और संचालन में अपना योगदान दिया है। अब मुंबई के व्यवसायी श्रीनारायण अग्रवाल जी भी इस कार्य को आगे बढ़ाने में पूरी तरह से समर्पित भाव से जुड़ गए हैं। हमें प्रसन्नता है कि राल गोशाला में गुरुकुल की नींव पड़ रही है, जो शीघ्र ही भारतीय शिक्षा, संस्कृति और संस्कार के प्रमुख केंद्र के रूप में अपनी विशेष पहचान बनाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है। पूज्य गुरुदेव ब्रह्मर्षि देवराहा बाबा का सर्वप्रिय शिष्य होने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ है। ये उन्हीं की कृपा थी। उस समय हम मथुरा के एसपी थे और बाबा की कृपा से ही आज भी मथुरा में रहकर ब्रज की सेवा कर रहे हैं। बाबा ने उसी दौरान कह दिया था कि शैलेज बच्चा तुमको रिटायर होने के बाद फिर दोबारा मथुरा में आकर ब्रज की सेवा करनी है। बाबा के कहे वचन के अनुसार हमें ब्रज क्षेत्र के विकास के बारे में योजना बनाने एवं उसे क्रियान्वित करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। चौरासी कोस के विराट विस्तार में फैला यह ब्रज क्षेत्र प्रभु श्री कृष्ण एवम् भगवती राधारानी की लीला स्थली है। यहां रज-रज में राधा-कृष्ण बसते है। इस स्थली को विश्व का गौरव बनाना हमारा प्रण है। बाबा जी की कृपा और शासकीय तंत्र एवं जनसहयोग के माध्यम से हम अतिशीघ्र इस उद्देश्य को प्राप्त करेंगे। जिस समय बाबा ने अपनी देह त्यागी थी, उन्होंने हमें बुला लिया था तथा जब बाबा मचान पर देह त्याग रहे थे, उस समय भी हम मचान के नींचे मौजूद थे। भले ही आज सशरीर बाबा हमारे मध्य नहीं हैं, किंतु उनकी दिव्यात्मा ब्रज के कण-कण में आज भी विद्यमान हैं। बाबा की कृपा से ब्रज वासियों के लिए, गौ माता के लिए, देश के लिए हम कुछ कर पायें तभी हमारा ये जीवन सार्थक होगा। श्री शैलजा कांत मिश्र (उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद)
जिस प्रकार जंगली जानवरों की संख्या में कमी होती जा रही है उससे भी कहीं अधिक भारतीय पशु धन अर्थात ‘इंडियन ब्रीड लाइवस्टॉक्स’ की संख्या में कमी हो रही है। संपूर्ण देश के मैदानी भागों से भारतीय नस्ल के गोवंश (गाय, बैल) की संख्या घटते – घटते समाप्ति पर है। खेती एवं ग्राम जीवन में अंधाधुंध मशीनीकरण हावी है। आज सोची समझी योजना के तहत पशु आधारित खेती को मशीन आधारित बनाया जा रहा है ताकि भारत के सभी गाय, बैल, बछड़े किसानों के लिए अनुपयोगी होकर कत्लखानों की ओर जाने को सहज हो सकें। आज भारत में प्रति वर्ष केवल भारतीय नस्ल की गायें काटी जाती हैं और भारत दुनिया के सबसे बड़े गौ मांस एक्सपोर्टर का पुरस्कार प्राप्त करके अपने को धन्य मानता है।
गौ धाम, वृंदावन ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कई प्रकार के देशव्यापी कार्यक्रम लिए हैं। घर घर में सघन वृक्षारोपण अभियान, हर घर पोषण वाटिका अभियान, नदी बचाओ अभियान, जैविक खेती का विस्तार एवं जैविक उत्पादन का प्रमोशन आदि।
अब दूसरे चरण में ‘गौ धाम योजना’ की शुरुआत हुई है जिसमें दूध नहीं देने वाली गायों को चाहे वह गौशालाओं में कष्ट झेल रही हों या फिर कसाई के हांथ कटने जा रही हों, उन्हें पुनः किसानों के यहाँ घरवापासी करवाई जा रहा है, क्योंकि गाय का असली घर किसान का घर ही है। वहां गाय के गोबर गोमूत्र से गोसेवक परिवार की महिलाओं के माध्यम से दीपक एवं धूपबत्ती बनवाने का काम किया जा रहा है। एक ओर जहां यह बिनदुधारू गायें बच रही हैं, वहाँ दूसरी ओर ग्रामीण एवं वनवासी महिलाओं को रोज़गार मिलता है। मान्यता है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है और यह पर्यावरण सम्मत भी है। आज भारतीय गाय के गोमूत्र से कई प्रकार की दवाएं बनने लगी हैं।
जब हम जागे तभी सवेरा, जो अब तक भूल हो गई सो हो गई, अब भूल को दोहरायेंगे नहीं।
इस बार दीपावली के अवसर पर गाय के गोबर से बने दीपकों से ही घर में, ऑफिस में, फैक्ट्री में, मंदिरों में रोशनी की जगमगाहट हुई। अब से अपने घर, ऑफिस, फैक्ट्री, मंदिर हर कहीं गाय के गोबर से बनी धूपबत्ती ही काम में लेंगे।
बता दें कि अगरबत्ती बांस की लकड़ी से बनती है जिसको जलाना नहीं चाहिए। यह हमारी भारतीय संस्कृति एवं पर्यावरण के विरुद्ध भी है। पर इस बात की गारंटी है कि यदि हम अपने अपने घर और मंदिर में पूजा के लिए केवल गाय के गोबर से बनी धूपबत्ती और दीपक ही प्रयोग में लेंगे तो गाय माता कटेगी नहीं और हर भारतीय भी तो यही चाहता है कि सबकी माता गाय माता कटनी नहीं चाहिये।
बिना दूध देने वाली गाय भी अपने गोबर और मूत्र से प्रति माह 4000-5000 रुपये कमा सकती है फिर कौन किसान बिना दूध देने वाली गाय को बेचेगा ? गाय बिकेगी नहीं तो कटेगी नहीं। आप स्वयं भी गाय के गोबर से बने दीपक और धूपबत्ती के मध्यम से भारतीय नस्ल की गायों को बचाने के अभियान में भागीदार बन सकते हैं। अभियान की सफलता के लिए हम सभी को इस महायज्ञ में आहुति डालने भर की ज़रूरत है।
ध्यान रहे गोबर से बने यह दीपक आप गमले या खेती बारी के पौधों में ही डालें। यह पानी के संपर्क में आते ही तुरंत गलकर खाद बन जाते हैं, जबकि मिट्टी के दीपक गलते नहीं हैं। अतः एक ओर मिट्टी के दीपक से जहां चिकनी एवं उपजाऊ मिट्टी की बड़े पैमाने पर बर्बादी होती है वहीं दीपक जलाने के बाद उन्हें खेतों या तालाबों में ही डाला जाता है जो वहां प्रदूषण का ही कार्य करती हैं, पर गोबर के बने दीपक और धूपबत्ती पर्यावरण सम्मत हैं।
देशी गाय के गोबर के कई उपयोग बताए जाते हैं । प्राचीनकाल में घर की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। देशी गाय के गोबर में 86 प्रतिशत तक द्रव पाया जाता इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैंगनीज़, लोहा, सिलिकन, ऐल्यूमिनियम, गंधक आदि खनिज कुछ अधिक मानी में विद्यमान रहते हैं तथा आयोडीन, कोबल्ट, मोलिबडिनम आदि भी थोड़ी थोड़ी मात्रा में रहते हैं ।
खेती के लिए अमृत
देशी गाय के गोबर से बनी खाद भूमि और फ़सल दोनों के लिए लाभप्रद है। खेती के लिए गाय का गोबर अमृत समान माना जाता है। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मांगलिक कार्यों में किया जाता है।
खुजली से राहत
त्वचा संबंधी रोगों में गुणकारी त्वचा से सम्बंधित किसी भी रोग में गोबर का लेप 8-10 मिनट तक हफ्ते में दो से तीन बार उपयोग करने पर कुछ दिनों में ही त्वचा संबंधी समस्या से छुटकारा मिल जाता है।
एड़ी दर्द से निजात
जिन लोगों की एड़ियों में सूजन या फिर दर्द रहता है, वो लोग गाय के गोबर को अपनी एड़ियों पर लगाएं और इस लेप को 10-15 मिनट बाद धो लें। इसे हफ्ते में 2 से 3 बार करे। इससे जल्दी ही राहत मिल जाएगी।
पेट के कीड़ों से
अगर पेट में कीड़े हैं, तो गोबर के उपलों को जलाकर उसकी एक चम्मच राख को पानी में मिलाकर रोजाना शाम के समय सेवन करें। इससे पेट के कीड़ों से राहत मिल जाएगी और पाचन तंत्र भी स्वस्थ रहेगा। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है। कीटनाशक के रूप में गोबर और गोमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गोमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्ज़ी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। बैलों से जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और मूत्र से भूमि में स्वतः खाद पड़ जाती है। प्रकृति के 99 प्रतिशत कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गोमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गोवंश के गोबर व मूत्र भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। साभार – गौ ग्राम संदेश
वैदिक काल से ही गायों के धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए उन्हें “कामधेनु” कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में देशी गायों की भूमिका, मानव पोषण में उनकी उपयोगिता, आयुर्वेदिक चिकित्सा उपचार, पंचगव्य (गाय से प्राप्त पारंपरिक औषधि) और टिकाऊ कृषि प्रथाओं पर प्रकाश डालते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने देशी गायों को “राज्यमाता-गोमाता” घोषित किया है। सरकार ने कहा कि राज्य के विभिन्न भागों में गायों की विभिन्न देशी नस्लें पाई जाती हैं (जैसे, मराठवाड़ा में देवनी, पश्चिमी महाराष्ट्र में लाल कंधारी, शिलारी, उत्तरी महाराष्ट्र में डांगी और विदर्भ में गाओलाओ)। सरकार ने कहा कि यह निर्णय उनकी घटती संख्या को लेकर चिंता के कारण लिया गया है। प्राचीन काल से ही गायों का मानव जीवन में बहुत महत्व रहा है। देशी गायों के दूध में उच्च पोषण मूल्य होता है। इस दूध में मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं और इसे संपूर्ण आहार माना जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा और टिकाऊ कृषि पद्धतियों में गाय के गोबर और मूत्र के उपयोग होता है। सरकार ने प्रस्ताव में कहा कि इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, सरकार देशी गायों को राज्यमाता-गोमाता घोषित करके उनकी देखभाल और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए इच्छुक है।
राज्य मंत्रिमंडल ने देशी गायों के पालन-पोषण के लिए सब्सिडी योजना लागू करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है। सरकार ने बताया कि इस योजना के तहत गोशालाओं को प्रति गाय प्रतिदिन 50 रुपये दिए जाएंगे।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि इस योजना से देशी नस्लों का संरक्षण सुनिश्चित होगा। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि इससे गोशालाओं को गायों को चारा उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। इससे उन्हें देशी नस्लों को संरक्षित करने में मदद मिलेगी।