गोवंश के सामने आज सबसे बड़ी समस्या चारे की है। गांवों में अब न पहले की तरह चरागाह हैं और न ही जलाशय। गोवंश का पेट भरने के लिए किसानों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। पहले जो चरागाह हुआ करते थे, अतिक्रमण के कारण वो धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। सरकारी नक्शों से गोचर भूमि तेजी से गायब हो रही है। चरागाह न होने के कारण गायें कूड़ा-करकट खाने पर विवश हैं।
प्रत्येक गांव में पशुओं के लिए चरागाह की ज़मीन सुरक्षित होती है, लेकिन अधिकतर चरागाहों पर दबंगों का क़ब्ज़ा है। जिसे मुक्त कराना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है।
चरागाहों का क्षेत्रफल कम होने के कारण पशुओं की उत्पादकता घटती है। जिन किसानों की जीविका पशुओं पर ही निर्भर है, उन्हें मजदूरी करने के लिए विवश होना पड़ता है। चरागाह खत्म होने से पर्यावरण पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। राज्य सरकारों को चरागाहों को मुक्त करने और उनके रखरखाव की ठोस योजना बनानी होगी, इसके लिए चरागाहों की नए सिरे से गिनती और हदबंदी कराई जानी चाहिए। चरागाह होने पर गोवंश की सुरक्षा और संवर्धन पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।