मैं आयुष लोहिया गौ वरदान, नागपुर से। हम गीर गौवंश का पालन करते हैं और गीर गौवंश के दूध से नागपुर के नागरिकों को पौष्टिक दूध का आहार मिले, ऐसा प्रयास कर रहे हैं। हमारे यहाँ करीब 850 गौवंश है।
देसी गाय ही क्यों?
देसी गाय ही क्यों? इस सम्बन्ध में हम आपको बताना चाहेंगे कि 1970 में हिदुस्तान में जर्सी गाय आयी थी और जब से जर्सी आयी है तब से हिदुस्तान का दूध ख़राब हो गया। फिर पैकेज दूध का चलन शुरू हुआ। जो कई मायने में ज़हरीला है, क्योंकि काफी प्रोसेसिंग होता है, केमिकल्स जाता है। पैकेज मिल्क में प्रायः 90 प्रतिशत दूध जर्सी गाय का होता है। जर्सी गाय का प्रोटीन है ‘ह्यूमन’ के लिए नहीं है। वह दूध को विषैला बना देता है। वर्ष 2015-16 में हम खोज में निकले थे कि लोगों को अच्छा दूध कैसे दे सकते हैं। इस खोज में यह समझ में आया कि देसी गाय का दूध ही पौष्टिक है।
काठियावाड़ी नस्ल
देसी गौवंश की कई नस्लें हैं, जिनमें अधिकतर ख़त्म हो चुकी हैं। कुछ नस्ल ही बची हैं।
फिर हमने सोचा कि ऐसी कौन सी नस्लें हैं जो हम रख सकते हैं। तो हमने पाया कि काठियावाड़ी नस्ल है, जो नागपुर के माहौल और यहाँ के टैंपरेचर में ‘सुटेबल’ हैं।
नागपुर के आसपास कई काठियावाड़ी नस्ल हैं। गौपालक मिले, तो हमने काम आगे शुरू किया। इसी बीच सौभाग्य से श्री सुनील मानसिंगका जी से जुड़ने और उनसे सीखने का मौका मिला। उनके देवलापार गौशाला में जाकर हमने ट्रेनिंग ली।
गीर ही क्यों
हमारे विदर्भ का असली गौवंश गावलो है। धीरे-धीरे गावलो खत्म हो गई। अधिकतर गावलो ‘क्रास वेडिंग’ में चली गई। जिसके कारण इसकी शुद्ध नस्ल खत्म हो गई। गावलो खत्म को गई तो हम कैसे देसी गौवंश को यहां पर बढावा दें, इसी खोज में निकलें। नागपुर में तकरीबन 150 गौपालक हैं, जिसमें कि 90 प्रतिशत लोगों ने जर्सी के साथ ‘क्रॉस वेडिंग’ कर दी है। कुछ भैंस भी रखने लगे हैं। कुछ 10 से 12 प्रतिशत ऐसे गौपालक हमें दिखे, जिनके पास शुद्ध ब्रीड था।
ऐसे ही गौपालक हमें मिले – हरी भैया, लाखा भैया, शैलेष भाई और बिठ्ठल भाई। इन चारों गौपालक भाइयों के साथ मिलकर हमने 2018 में काम शुरू किया। उस समय उनके पास तकरीबन 400 शुद्ध देसी गीर गौवंश था। अब हमारे पास 800 से अधिक गौवंश हो गया है। हमारी पूरी कोशिश है कि शुद्ध देसी गीर गाय को कैसे बढ़ाएं, उसे कैसे बचायें और कैसे हम आगे उसकी और अच्छी वेडिंग करके नस्ल को सुधारें। इसके लिए हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।
‘गो वरदान’
गाय की पहचान कैसे होती है, देसी गाय क्या होती है, ये समझने के बाद 2018 में हमने ‘गो वरदान’ का रूपरेखा बनाई। 2019 में हमने ‘गो वरदान’ को लॉच किया। हालांकि ‘गो वरदान’ एक कमर्शियल वेंचर है, जिसमें हम गीर गाय का शुद्ध दूध कांच की बोतल में लोगों को पिलाते हैं। दूध से बिलौना वैदिक घी बनाते हैं, पनीर श्रीखंड बनाते हैं, लेकिन ‘गो वरदान’ का मुख्य उद्देश्य है देसी गौवंश को हम कैसे बचा सकते हैं और कैसे देसी गौवंश का बढ़ावा दे सकते हैं।
देसी गाय की पहचान
देसी गाय को पहचानना बहुत आसान है। इसके कंधे पर हम्प होता है। जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाएगी यह बढ़ता जाएगा। इस हम्प में सूर्यकेतु नाड़ी है जो सूर्य और चन्द्रमा की किरणों आब्जॉर्ब करता है। चारा पचाने के दौरान ये दूध में ओमेगा फैटी एसिड मल्टीविटामिन डेवलप करती है। जर्सी के कंधे पर ये हम्प नही होता है। उसका कंधा फ्लैट होता है और जर्सी के दूध में कोई ओमेगा फैटी एसिड और मल्टीविटामिन एसिड नहीं होता है। प्रोटीन दोनों दूध में है, लेकिन फ़र्क ये है कि जर्सी का प्रोटीन ‘ए वन’ होता है, जो ह्यूमन लीवर ऑब्जेर्व नहीं करता। देसी गाय के दूध में ‘ए टू’ प्रोटीन होता है, जिसे अपना लीवर ऑब्जर्व कर लेता है।
ओमेगा फैटी एसिड, मल्टीविटामिन, ‘ए टू’ प्रोटीन का जो कॉबिनेशन है वो दूध को दवा का भी रूप दे सकता है और इस दूध से बनाये घी, मक्खन, दही आदि जितने भी प्रकार के पदार्थ हैं वो अपने आप में लाभदायक आहार और दवा के रूप में होते हैं।
गीर गाय की सींग पीछे की तरफ जाते हैं, कान लंबे होते हैं। गला मुलायम और लटकता हुआ होता है। इससे गाय को हर तापमान में ‘प्रोटक्शन’ मिलता है।
गाय को हम छोड़ते नहीं
गाय बूढ़ी हो जाती है तो लोग उसे छोड़ देते हैं। हमारे यहाँ तकरीबन 50 से ज़्यादा गौमाता ऐसी हैं जो बूढ़ी हो चुकी हैं और जिनका दूध ख़त्म हो गया है। जिनकी उम्र 20 साल से ज्यादा हो गई है वह भी हमारे साथ हैं। ऐसी भी गौमाता हमारे पास हैं, जो अपाहिज हो गई है, जिनका पांव ख़राब हो गया है। हमने विटनरी डॉक्टर को दिखाया लेकिन इसका कोई इलाज नहीं है। ऐसी गौमाता जो अभी तक गर्भवती नहीं हो पायी हैं और शायद कभी जिंदगी में दूध नहीं दे पायेंगी, वह भी हमारे पास पल रहीं हैं।
हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हमारी तरफ से गौवंश को कोई हानि न हो। चाहे वह दूध दे या न दे, क्योंकि वो हमारे नस्ल का गौवंश है। उसका रख-रखाव हमारी ही ज़िम्मेदारी है। हम एक भी गाय को बांधते नहीं हैं। एक दिन का जो बछडा होता है, उसको भी नहीं बांधते हैं। जैसे हम अपने को नहीं बांधते हैं, वैसे ही हमारा मानना है कि गौमाता को भी नहीं बांधा जा सकता है। तो इस प्रकार हम अपने गायों की सेवा और रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं।
- आयुष लोहिया
https://youtu.be/gFogcLGEluU