कुछ समय पहले तक गाँव के युवा खेती से मुंह मोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों का रुख कर रहे थे, लेकिन अब परिस्थितियों में बदलाव देखने को मिल रहा है। परंपरागत कृषि विकास के क्षेत्र में रूचि लेते हुए अब गाँव के युवा किसान आजीविका के लिए शहरों का मोह त्यागकर अब गाँव में ही जैविक खेती कर दोहरा लाभ ले रहे हैं।
महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के दर्जनों गांवों के किसान गौ आधारित जैविक खेती कर कर रहे हैं। गौ आधारित जैविक खेती के लिए आवश्यक उर्वरक और अन्य कीटनाशक गोबर और गोमूत्र से घर पर ही निर्मित कर लेते हैं। अतः खेती में इनकी लागत लगभग शून्य हो जाती है और अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं। जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही देसी गायों से मिलने वाले गोबर और गोमूत्र से जैविक उत्पाद बनाकर अन्य किसानों को उचित मूल्य पर बेचते हैं इससे इन्हें दोहरा लाभ प्राप्त होता है।
महाराष्ट्र के गोंदिया जिला के तिरोड़ा स्थित अडानी फाउंडेशन के सहयोग से देवलापार अनुसन्धान केंद्र में गौ आधारित जैविक कृषि का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके इन किसानों में से एक हीरानंद पटले ने हमें बताया कि उन्होंने आज से चार पांच वर्ष पहले ही जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। साथ ही उन्होंने गौमूत्र से अन्य औषधीय उत्पाद जैसे कि जीवामृत,अमृतपानी आदि बनाने का प्रशिक्षण लिया था। जैविक खाद स्वयं बनाते हैं जिसका उपयोग हमारे खेतों में होता है। इससे अच्छी उपज के साथ गुणवत्तापूर्ण अनाज और सब्जियाँ प्राप्त होती हैं।
इससे पूर्व एक और किसान मधुकर हजारे ने अपने लहलहाते धान के खेत को दिखाते हुए बताया कि उन्होंने अपने खेत में जैविक खाद और पञ्चगव्य आधारित उर्वरक का उपयोग कर धान की रोपाई की है।
जिले के सुकड़ी तालुका के बालापुर नामक गाँव के एक अन्य किसान दंपत्ति श्रीमती स्वाति संजय बिसेन जैविक खेती के साथ साथ गौपालन भी कर रहे हैं। श्रीमती स्वाति बिसेन अपने पति संजय बिसेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गौ पालन के साथ-साथ पंचगव्य आधारित जैविक खेती कर रही हैं। संजय बिसेन ने बताया कि वे कीटों से फसल की सुरक्षा के लिए गौमूत्र और अन्य जड़ी के साथ मिलाकर घर पर ही बनाये गए आग्नेयास्त्र नामक कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि धान की अच्छी पैदावार के लिए खेतों में जीवामृत का छिड़काव करते हैं। संजय ने बताया कि उन्होंने गाँव के अन्य किसानों को भी प्रोत्साहित किया है और वे उनकी खेती देखकर पञ्चगव्य आधारित जैविक खेती की ओर उन्मुख भी हो रहे हैं। वहीं श्रीमती स्वाति संजय बिसेन ने हमें बताया कि खेती के लिए आवश्यक गौवंश देवलापार से नि:शुल्क प्राप्त हुए हैं जिनसे हमें दूध के साथ-साथ गोबर भी उपयुक्त मात्रा में प्राप्त होता है। गोबर से घर पर केचुआ खाद का निर्माण करते हैं, जिसका उपयोग हम अपने खेतों में करते हैं। श्रीमती बिसेन ने बताया कि पंचगव्य आधारित जैविक खेती से हमें प्रति एकड़ 20 कुंतल तक धान की उपज प्राप्त हो जाती है।
बता दें कि अडानी फॉउंडेशन के सहयोग से प्रशिक्षण प्राप्त कर जैविक खेती करने वाले सभी किसानों को गायें और गौवत्स निःशुल्क प्रदान किये जाते हैं।