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श्रीकृष्णायन देसी गौरक्षा एवं गौलोक धाम सेवा समिति की गौरक्षाशाला

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‘श्रीकृष्णायन देसी गौरक्षा एवं गौलोक धाम सेवा समिति’ भारत में देसी गायों की बड़ी गौरक्षाशाला (गोशाला) में से एक है. यहाँ बीमार, भूख से मर रही, बेसहारा और आवारा देसी गायों को संरक्षण, चारा और आश्रय दिया जाता है. इन गायों में से अधिकांश को उनके मालिकों द्वारा छोड़ दिया जाता है या इन्हें कसाई से बचाया जाता है. इनमें से अधिकतर बिनदुधारू गायें हैं. सैकड़ों गौसेवक इनकी देखभाल के लिए चौबीसों घंटे काम करते हैं. गौशाला संतों द्वारा संचालित की जाती है. इस गोशाला की विशेषता ये है कि यहाँ हम दूध या दुग्ध उत्पाद नहीं बेचे जाते हैं. 

वर्ष 2010 में हरिद्वार में सिर्फ 11 गायों के साथ गौरक्षाशाला की शुरुआत की गई थी. वर्तमान में विभिन्न स्थानों पर 18 हज़ार से अधिक गायों को आश्रय दिया गया है और यह संख्या लगातार बढ़ती रही है. 

‘श्रीकृष्णायन देसी गौरक्षा एवं गौलोक धाम सेवा समिति’ की  गौरक्षाशाला भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (चेन्नई) और विभिन्न राज्यों में पशु कल्याण बोर्ड के साथ पंजीकृत है.

कामधेनु गोशाला

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पंजाब राज्य के जालंधर में नूरमहल स्थित दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा संचालित ‘कामधेनु गोशाला’ की अपनी एक अलग पहचान है. यहाँ का कामधेनु संरक्षण एवं संवर्धन अनुसंधान केंद्र पूरे भारत में विशिष्ट प्रजातियों की उत्कृष्ट गुणों वाली गायों को विकसित करने और उनके संवर्धन के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रणालियों के उपयोग में अपनी अलग पहचान बना चुका है. 

कामधेनु गोशाला संवर्धन अनुसंधान केन्द्र की वैज्ञानिक प्रणाली और विश्व स्तरीय प्रबंधन को सीखने और जानने के लिए अन्य देशों से शोधकर्ता और कृषि व गोपालन के विद्यार्थी भी यहां आते है. 

कामधेनु गोशाला देसी गायों के संरक्षण एवं संवर्धन में पिछले 10 सालों से काम कर रही है. लगभग लुप्त हो गई नस्ल साहिवाल को बचाने व उसके नस्ल सुधार में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की कामधेनु गोशाला का योगदान अद्वितीय माना जाता है.

कामधेनु गोशाला में गायों का पुराना वंशज रिकॉर्ड साफ्टवेयर के माध्यम से अपडेट किया जाता है.

कोई गाय 20 लीटर दूध देती है, तो उसे क्या बीमारी थी दूध कैसे बढ़ाया गया, आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है, यह सारा रिकार्ड एक क्लिक पर नूरमहल स्थित गोशाला में सामने आ जाता है. उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी पूरा मिलान किया जाता है कि नई पैदा होने वाली गायों में क्या फर्क आ रहा है और इनका दूध कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है, आगे कैसे गायों की संख्या को बढ़ाया जाना है। यही वजह है कि जहां पहले नूरमहल की कामधेनु गोशाला में चार क्विंटल दूध रोजाना होता था, अब वह 13 क्विंटल तक पहुंच गया है।

गायों की रिसर्च के लिए अलग से सेक्शन तैयार किया हुआ है, जिसमें प्रोजनी सिलेक्शन काफी महत्वपूर्ण है। इसमें गायों का अपनी मां व दादी से पूरा प्रोफाइल मिलाया जाता है कि दादी का कितना दूध होता था और मां दो समय में कितना दूध देती थी। इस पूरी प्रक्रिया पर रोजाना टीम नजर रखती है।

यही वजह है कि केंद्र सरकार दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की गोशाला को देशभर की नंबर वन गोशाला से नवाजा गया है. 

नूरमहल की गोशाला में 800 गाय हैं, जिनकी देखभाल के लिए सेवादारों की लंबी चौड़ी संख्या है. सारी गायें देसी नस्ल की हैं, जिसमें साहीवाल, गीर (गुजरात), थारपाकर (राजस्थान नस्ल) व कांकरेज (कच्छ की नस्ल) हैं. इनका पूरा रिकार्ड कंप्यूटराइज है और यहां पर यह प्रयास चल रहा है कि देसी नस्ल की गायों की संख्या को बढ़ाया जाता रहे. इस वजह से गायों का पूरा रिकॉर्ड व डाटा तैयार किया जाता है. गायों की वंशावली पर पूरा ध्यान केंद्रित किया जाता है। 

गाय में वर्णसंकरता की समस्या से निपटने के लिए गोशाला में लगभग 25 गोत्र चलाए जा रहे हैं. हर गाय और साड की वंशावली बनाई जाती है, जिसका इस्तेमाल सेलेक्टिव ब्रीडिंग के लिए किया जाता है. कृत्रिम गर्भाधान, एब्र्यो ट्रासप्लाट टेक्नोलॉजी (ईटीटी) एवं आइवीएफ जैसी आधुनिक प्रणाली के प्रयोग से कामधेनु ने कम समय में उत्कृष्ट गुणों वाली दुधारू गाएं अच्छी संख्या में विकसित की है. 

कामधेनु संरक्षण एवं संवर्धन अनुसंधान केंद्र देश की देसी नस्लों के कृषि व डेयरी क्षेत्र में लाभ, उनके पालन व आर्थिक एवं पर्यावरण से जुड़े पक्षों पर प्रशिक्षण व जागरूक कार्यक्रम आयोजित करती है. कामधेनु केंद्र से प्रशिक्षण एवं प्रेरणा प्राप्त करके बहुत से किसानों ने देसी गोपालन शुरू किया है तथा उनको ए2 दूध का अच्छा खासा मूल्य भी मिल रहा है.

Website : https://kgsgnrm.com

श्री माताजी गौशाला

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बरसाना के समीप स्थित ‘श्री माताजी गौशाला’ देश की सबसे बड़ी गौशालाओं में से एक है। यह ‘मान मंदिर सेवा संस्थान ट्रस्ट’ द्वारा 7 जुलाई, 2007 को पूज्य संत श्री रमेश बाबा जी महाराज की प्रेरणा और मार्गदर्शन में स्थापित किया गया था। ‘श्री माताजी गौशाला’ 2007 से लगातार ‘गाय माता’ की महिमा की रक्षा और स्थापना के लिए काम कर रही हैं। गायों को वध से बचाने के लिए 5 गायों की सेवा के साथ शुरू हुई गौशाला अब मां की तरह 55 हज़ार से अधिक गायों का पालन-पोषण कर रही है. ये गायें  या तो उपेक्षित, बीमार या कसाई और तस्करों से बचाई गई थीं।

‘श्री माताजी गौशाला’ में बैल चालित चक्की, गाय के गोबर और मूत्र आधारित उत्पाद निर्माण केंद्र, खाद संयंत्र, पशु चिकित्सा औषधालय, पंचगव्य और आयुर्वेदिक फार्मेसी के अलावा गौशाला में कार्यरत श्रमिकों के लिए आवास सुविधा भी उपलब्ध है. 

Website : https://maanmandir.org/gaushala 

बंसी गीर गौशाला

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प्राचीन वैदिक ‘गोसंस्कृति’ को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से वर्ष 2006 में ‘बंसी गीर गौशाला’ की स्थापना श्री गोपालभाई सुतरिया द्वारा की गई थी।  

बंसी गीर गौशाला में 700 से अधिक गीर गौमाता और नंदी हैं. गोपालभाई के प्रयासों के परिणामस्वरूप गोपालन और गोकृषि के क्षेत्र में एक आदर्श बनी बंसी गीर गौशाला आयुर्वैदिक उपचार के क्षेत्र में प्रभावशाली अनुसंधान और निर्माण का कार्य भी कर रही है। 2017 में भारत सरकार द्वारा बंसी गीर गौशाला को ‘कामधेनु पुरूस्कार’ भी प्राप्त हो चुका है। यह भारत की पहली क्रमांकित गौशाला है और गीर गायों के संवर्धन के साथ इसकी पवित्रता और विश्वसनीयता के कारण बंसीगीर गौशाला भारत की ‘नंबर 1’ गौशाला घोषित की जा चुकी है।

बंसी गीर गौशाला में नंदी या वृद्ध गौमाता का साथ कभी नहीं छोड़ा जाता। कभी भी गौमाता को दिए जाने वाले भोजन और पानी की गुणवत्ता या मात्रा पर कोई समझौता नहीं किया जाता, भले ही वह कितना भी दूध दे। यहाँ प्रजनन के लिए या दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान या हार्मोन उपचार का उपयोग नहीं किया जाता। इस गौशाला में गौमाता की देखभाल के लिए 36 गोपालकों का एक अनुभवी कार्यबल है।

बंसी गीर गौशाला में ‘दोहन’ की प्राचीन भारतीय परंपरा का पालन किया जाता हैं, जिसके अनुसार बछड़ा दो आंचल से दूध पीने के लिए स्वतंत्र है, और शेष दो आंचल का उपयोग मनुष्यों सहित अन्य प्राणियों के लिए दूध प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।

आयुर्वेद का उपयोग-स्वास्थ्य और जीवनशक्ति बढ़ाने के लिए विभिन्न आयुर्वैदिक जड़ी बूटियों को मौसम और ऋतु  के आधार पर गौमाता के भोजन में मिलाया जाता है। जहां तक संभव हो, बीमार गौमाता का इलाज भारतीय आयुर्वैदिक प्रणाली का उपयोग करके किया जाता है, और आधुनिक चिकित्सा का उपयोग कम से कम किया जाता है।

बंसी गीर गौशाला में 4 लाख गज से अधिक खुली चराई की जगह है जिसका पोषण जैविक खाद द्वारा किया जाता है। इस गौशाला के शोध और अवलोकन के अनुसार गौमाता जिंजुआ किस्म की घास को पसंद करती है। यह घास अन्य व्यावहारिक लाभों के साथ, पोषण और औषधीय मूल्य में समृद्ध है। एक बार लगाए जाने के बाद, यह घास 30 से अधिक वर्षों तक भूमि नहीं छोड़ती है, और यह हर 20  दिनों में 2  से 2 .5 फीट तक बढ़ती है। अपनी ‘जिंजुआ घास योजना’ के तहत, किसानों के लिए मुफ्त जिंजुआ घास के बीज की व्यवस्था की जाती है। अब तक 5000 से अधिक किसानों ने इस योजना का लाभ उठाया है।

गौशाला अपने दिव्य वातावरण की पवित्रता को बनाए रखने के लिए दैनिक वैदिक हवन करती है। भक्ति संगीत और संस्कृत मंत्र भी हर दिन पृष्ठभूमि में बजाए जाते हैं, जो गौमाता को आनंदित और स्वस्थ रखने में मदद करता है।

बंसी गीर गौशाला भारतीय गौमाता की नस्ल को मजबूत करने के लिए नंदी को समग्र भारत में विश्वसनीय गौशाला और गांवों में प्रजनन के लिए देती है। यहाँ कभी गौमाता या नंदी को बेचा नहीं जाता बल्कि नंदी को सीमित अवधि के लिए आमतौर पर 3 साल तक के लिए दिया जाता है ।

बंसी गीर गौशाला ने औषधीय और साथ ही पंचगव्य आधारित अवयवों के संयोजन का उपयोग करके आयुर्वेदिक दवाओं की एक विस्तृत शृंखला विकसित की है। आम जनता के लिए इस गौशाला में मुफ्त आयुर्वैदिक निदान और उपचार क्लिनिक भी है।

गौशाला

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गौ संरक्षण-संवर्धन के लिए देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गौशालाओं का संचालन हो रहा है. ये गौशालाएं दुग्ध उत्पादन के साथ -साथ गोमूत्र और गाय के गोबर से विभिन्न प्रकार के उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं. ये गौशालाएं सरकार, संस्था या फिर व्यक्ति विशेष द्वारा संचालित हैं.      

हरियाणा की ‘गो संवर्धन-संरक्षण योजना’

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हरियाणा राज्य में गो पालन को बढ़ावा देने और आश्रय देने के लिए सरकार ने ‘गो संवर्धन – संरक्षण योजना’ शुरू की है. 

इस योजना के तहत तीन से 10 गाय तक खरीदने के लिए पशु पालक को 50 फीसद सब्सिडी पर ऋण दिया जाएगा. इस योजना से बेरोज़गार युवा डेयरी बनाकर स्वरोज़गार शुरू कर रहे हैं. 

गाय को पालने में लोगों की दिलचस्पी कम होने के कारण गाय आवारा पशु की तरह से घूमती रहती है. आए दिन गायों को गो तस्कर उठा कर ले जाते हैं और फिर उन्हें कसाई को बेच देते हैं. गाय की सुरक्षा और इसकी देखभाल की जा सके, इस उद्देश्य से सरकार ने गो संवर्धन – संरक्षण योजना शुरू की है.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा लगभग प्रत्येक ग्राम स्तर पर पशुओं के निःशुल्क इलाज के लिए पशु चिकित्सालय/पशु औषधालय की स्थापना की गई है. इन संस्थाओं में समय-समय पर बांझपन निवारण शिविरों तथा कृमिनाशक दवा वितरण शिविरों का भी आयोजन किया जाता है.

रोग नियन्त्रण एवं टीकाकरण के तहत विभाग द्वारा पशुओं में फैलने वाली विभिन्न बीमारियों के बचाव के लिए निःशुल्क टीकारण किया जाता है. इसके लिए समय-समय पर जागृति कैम्प लगाकर पशुपालकों को टीकाकरण के प्रति जागरूक किया जाता है ताकि पशुधन स्वस्थ रह सके.

गाय में नस्ल सुधार व दुग्ध उत्पादन वृद्धि के लिए कृत्रिम गर्भाधान सुविधा के अन्तर्गत उत्तम नस्ल के सांडो का वीर्य लेकर गाय को कृत्रिम विधि से गर्भ धारण कराया जाता है जिसके कारण नस्ल सुधार व अधिक दुग्ध उत्पादन को बढावा मिला है. 

इच्छुक लोगों द्वारा गौशालाओं का आवेदन हरियाणा गौ-सेवा आयोग, पंचकूला को भेजकर उनका पंजीकरण करवाया जाता है तथा पंजीकृत गौशालाओं को हरियाणा गौ-सेवा आयोग, पंचकूला तथा भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड, चैन्नई से अनुदान दिलवाया जाता है.

राजस्थान गोपालन निदेशालय

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राजस्थान गोपालन निदेशालय गौवंश के संरक्षण, संवर्धन और वृह्‌द स्तर पर नस्ल सुधार का कार्य कर रहा है. 

निदेशालय के प्रमुख उद्देश्य हैं – गौशालाओं व चारागाहों की भूमि पर अन्य विभागों के सहयोग से वृहद स्तर वृक्षारोपण कर अधिक चारा उत्पादन करना. नवीनतम तकनीक द्वारा गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रोत्साहित करना एवं राजकीय सहायता उपलब्ध करवाना. गौवंश तस्करी के प्रभावी नियंत्रण हेतु आवश्यक वैधानिक नियम तैयार कर कठोरतापूर्वक पालना करवाना. गायों एवं गौ उत्पादों के विपणन की व्यवस्था एवं सूचना तंत्र विकसित करवाना. गौशाला अधिनियम 1960 के अन्तर्गत गौशालाओं का पंजीकरण कर विभाग द्वारा देय अनुदान का लाभ लेने हेतु प्रोत्साहित करना.

राजस्थान गोपालन निदेशालय के अनुसार राज्य में कुल 1304 पंजीकृत गौशालाएं हैं, जिनमें लगभग 5.47 लाख गौवंश आश्रित हैं. उन्नत गौवंश नस्लों के संवर्धन एवं संरक्षण को ध्यान में रखते हुए ‘गौ-सेवा निदेशालय’ स्थापित करने का निर्णय लिया गया है. 

राजस्थान में करीब 1.21 करोड़ गौवंश हैं, जहां नागौरी, थारपारकर, राठी, कांकरेज, गिर जैसी उत्तम देशी गौवंशीय नस्लें उपलब्ध हैं. प्रदेश के इस बहुमूल्य गोधन की दुग्ध उत्पादन क्षमता विश्व विखयात है. प्रदेश की प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद यहां के गौवंश द्वारा लम्बे अरसे से देश में रिकार्ड दुग्ध उत्पादन किया जा रहा है. देश व प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था में पशुधन में गौवंश का एक महत्वपूर्ण स्थान है. यदि गोधन का वैज्ञानिक ढंग से संरक्षण व संवर्धन कर उचित दोहन किया जाये तो यह प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की काया पलट कर सकता है.

Website : https://gopalan.rajasthan.gov.in/overview-hin.htm

मध्य प्रदेश : गो आश्रय स्थल

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मध्य प्रदेश सरकार की नई गौशालाएं खोलने के ‘प्रोजेक्ट गौशाला’ के अंतर्गत 1000 गौशालाओं का निर्माण कराया जा रहा है. आवारा पशुओं से मुक्ति दिलाने एवं गौवंश को सरंक्षित करने के उद्देश्य से शुरू की गई इस योजना के तहत  सितम्बर 2020 तक 700 गौशालाओं का निर्माण कार्य पूरा हो चुका था. इनमें से 260 गौशालाओं में लगभग 20 हज़ार गौवंश को रखा गया है. इसके अतिरित्क 627 गौशालाएं पहले से पंजीकृत हैं, जिनमें एक लाख 66 हज़ार गौवंश के लिए प्रतिदिन प्रति गोवंश 20 रुपए की दर से राशि प्रदान की जा रही है.

योजना के अनुसार मध्य प्रदेश में लोग सरकारी जमीन पर गौशाला खोल सकते हैं. सरकार निजी संस्थाओं या प्रायवेट कंपनियों को गौशाला खोलने के लिए निशुल्क जमीन देगी। 100 गायों की गौशाला खोलने के लिए एक हेक्टेयर जमीन और 1000 गायों को पालने के लिए बड़ी गौशाला के लिए 10 हेक्टेयर सरकारी जमीन दी जाएगी। जमीन मिलने के साथ ही नौ महीने में संस्था को अपना 40 फीसदी काम पूरा करना होगा।

आश्रय स्थल

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उत्तर प्रदेश : गो आश्रय स्थल

उत्तर प्रदेश राज्य के ग्रामीण व शहरी इलाकों में 5146 गो आश्रय स्थल बनाये गये हैं. इनमें 4452 अस्थायी गो वंश स्थल, 148 कान्हा गोशाला, 402 कांजी हाउस और 144 वृहद गो संरक्षण केन्द्र हैं. इन गो-आश्रय स्थलों में 5,19,816 गोवंश संरक्षित हैं। 

राज्य में निराश्रित-बेसहारा गोवंश की सुरक्षा के लिये शेड का निर्माण कराया गया है. साथ ही इनकी सुरक्षा, पीने का पानी, प्रकाश, पशु चिकित्सा, हरा चारा उत्पादन आदि कार्य भी कराए जा रहे हैं.

गोवंश की पहचान के लिये उन्हें यूआईडी इयर टैग लगाया गया है. उनके भरण-पोषण के लिये विभिन्न गो-आश्रय स्थलों में 9.80 लाख कुन्तल भूसा एकत्र कर संरक्षित किया गया है. 

मुख्यमंत्री निराश्रित/बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना के तहत इच्छुक किसानों को गोवंश देकर लाभान्वित किया गया है. साथ ही, राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत 519 कुपोषित परिवारों को गोवंश आश्रय स्थलों से गोवंश उपलब्ध कराया गया है.

प्रदेश में अस्थायी गोवंश आश्रय स्थलों से पृथक निराश्रित गोवंश को स्थायी रूप से सरंक्षित किए जाने एवं आश्रय केन्द्रों को स्वावलम्बी बनाए जाने के उद्देश्य से ‘वृहद गो-संरक्षण केन्द्र’ बनाये गए है. इसके साथ ही बुन्देलखण्ड के 07 जिलों में पशु-आश्रय गृह का निर्माण भी किया गया है. जहाँ गोवंश को संरक्षित किया गया है.

गो-आश्रय स्थलों को स्वावलम्बी बनाए जाने के लिये गोबर, गोमूत्र के विविध प्रयोग एवं अन्य कार्यक्रम के तहत मनरेगा से गो-आश्रय स्थलों पर कुल 3,112 परियोजनाएं संचालित हैं, जिसके द्वारा 4,10,644 मानव दिवस का सृजन किया गया है। इन गो-आश्रय स्थलों पर जैविक खाद तैयार की जा रही है। 

आश्रय स्थल

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निराश्रित और बेसहारा गायों के संरक्षण-संवर्धन के लिए देश भर में आश्रय स्थल बनाये गए हैं. इनका संचालन सरकारी अथवा गैरसरकारी संस्थाएं करती हैं. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत रूप से भी आश्रय स्थलों का संचालन किया जाता है.