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राजस्थान सरकार का गौ कल्याण मंत्रालय

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गो संरक्षण और गो संवर्धन के लिए राजस्थान सरकार ने गौ कल्याण मंत्रालय बनाने की औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं. यह मंत्रालय ‘काउ साइंस पर पहला विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय’ खोलने में मदद करेगा ताकि गाय को केंद्र बनाकर कृषि और दूसरे क्षेत्रों में रिसर्च हो सके.

मंत्रालय गाय की देसी किस्मों के संरक्षण और उनकी बेहतरी और गौवंश की तस्करी रोकने के लिए एक नीति भी बनाएगा. 

राजस्थान देश का एकमात्र राज्य है जिसने गो-कल्याण के लिए एक अलग मंत्रालय बनाया हुआ है.  इसकी गोशाला में हर दिन जयपुर नगर निगम द्वारा करीब 100 आवारा गायें लाई जाती हैं.

गायों की स्थिति में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. इनमें सांडों, कमज़ोर और बीमार मवेशियों को अलग करना, टीकाकरण, बेहतर गुणवत्ता वाले सूखे चारे, हरे चारे और अच्छे मवेशी आहार की आपूर्ति शामिल है.

बड़ी संख्या में गोसेवक गोशाला में चारा दान करने के लिए आते हैं. इसके अलावा राज्य सरकार हर दिन प्रत्येक वयस्क मवेशी के लिए 70 रुपये और बछड़ों के लिए 35 रुपये के हिसाब से देती है. साथ ही मजदूरों का वेतन और रखरखाव का ख़र्च भी सरकार उठाती है.

मध्य प्रदेश में गौ-केबिनेट

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मध्य प्रदेश में गौवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौ-केबिनेट के गठन किया गया है. इस केबिनेट में पशुपालन, वन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, राजस्व, गृह और कृषि विकास एवं किसान कल्याण विभाग को शामिल किया गया है.  

कृषि में खाद्यान्न के उत्पादन और कृषकों को फसलों का उचित मूल्य दिलाने के साथ गौ पालन की अहम भूमिका है. कृषि कार्य में संलग्न कृषकों को पशुपालन के लिए काफी समय मिलता है. ‘गौ-केबिनेट’ से गौ पालन की दिक्कतें दूर होंगी और इसे आर्थिक रूप से उपयोगी बनाने की दिशा में योजनाओं और कार्यक्रमों को गति मिलेगी. साथ ही गौधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए उपायों को अपनाया जायेगा.

मध्यप्रदेश में गौ-केबिनेट के गठन से पशुपालक, गौ-सेवकों, कृषकों और खेतिहर श्रमिकों के आर्थिक कल्याण की संभावनाएं बढ़ेंगी. भारतीय संस्कृति में गौ सेवा का प्रमुख स्थान है. आज भी लाखों परिवार घर में बनी पहली रोटी गौ माता को खिलाते हैं. गौ-माता के दूध से निर्मित घी और गाय के गोबर का पूजा अनुष्ठान में विशेष महत्व है. मध्यप्रदेश सरकार ने गौ-शालाओं के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाएं हैं.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गौ-केबिनेट के लिए आगर-मालवा जिले में स्थित गौ-अभ्यारण का चयन किया है. यह भारत में प्रारंभ होने वाला प्रथम गौ-अभ्यारण है. मध्यप्रदेश में गौ-सेवकों को गौ-शालाओं के संचालन के लिए सहायता दी गई. साथ ही अशक्त और अस्वस्थ गायों के लिए उपचार और पोषण की व्यवस्थाएं भी की गईं. गौ-सेवा आयोग के माध्यम से विभिन्न गतिविधियां आयोजित कर गौ- शालाओं के विकास के लिए सहयोग किया गया.

मध्यप्रदेश में छह विभाग मुख्य रूप से गौ-केबिनेट निर्णयों के क्रियान्वयन को अंजाम देंगे. गाय के गोबर के कंडों का उपयोग भी किस तरह बढ़े, इस दिशा में कार्य योजना को लागू किया जाएगा. छह विभागों की सक्रियता से क्रियान्वयन के स्तर पर कठिनाई नहीं होगी. समन्वय से कार्य पूरे किए जाएंगे. वर्तमान में गौ-काष्ठ के निर्माण को प्रोत्साहन मिल रहा है. इस उत्पाद के विपणन के नये आयामों पर विचार किया जाएगा. इसी तरह गौ-दुग्ध से निर्मित अन्य वस्तुओं के विपणन के लिए भी प्रयास होंगे.

उप्र में ‘बेसहारा गौवंश सहभागिता योजना’ 

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जुलाई 2019 में छुट्टा गायों की समस्या को लेकर ‘बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना’ शुरु की है।

उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. किसान परेशान हैं कि उनकी फसल को आवारा जानवर चौपट कर जाते हैं. सरकार का दावा है कि इस योजना से आवारा पशुओं की समस्या का समाधान होगा और रोजगार के मौके पैदा होंगे.

गोवंश सहभागिता योजना

कम दूध देने वाली, दूध नहीं देने वाली गाय और पशुपालकों द्वारा गाय के बछड़े को खुला छोड़ देने से गाँव में गोवंशों की संख्या काफी बढ़ जाती है जिससे खेती करना मुश्किल हो जाता है| यह सभी गोवंश सडक पर आ जाने के कारण दुर्घटना की स्थिति बनी रहती है| इसी को ध्यान में रखते हुये उत्तर प्रदेश सरकार बेसहारा गोवंश के लिए गोवंश सहभागिता योजना लेकर आई है| निराश्रित और बेसहारा गोवंश को पूर्ण रूप से भरण पोषण प्रदान किये जाने और गोवंश के संरक्षण-संवर्द्धन की ये एक महत्वाकांक्षी योजना है| 

इस योजना के तहत जिलाधिकारी जनपद के ऐसे इच्छुक कृषकों, पशुपालकों अथवा अन्य व्यक्तियों को चिन्हित करायेंगे जो निराश्रित गोवंश को पालने के लिए तैयार हैं| ऐसे इच्छुक व्यक्तियों को जिलाधिकारी द्वारा प्रति गोवंश 30 रूपये प्रति दिन की दर से 900 रुपये प्रति माह दिए जायेंगे|    

भरण – पोषण हेतु ये धनराशि पशु पालक के बैक खाते में प्रति माह डी.बी.टी. प्रक्रिया द्वारा हस्तांतरित की जायेगी | इन निराश्रित और बेसहारा गोवंश कि पहचान के लिए उनके  कान में छल्ला अनिवार्य होगा| पशुपालक सुपुर्द किये गए गोवंश को किसी भी दशा में विक्रय नहीं करेगा और न ही छुट्टा छोड़ेगा | 

गोपालक योजना

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बेरोजगार युवाओं के लिए गोपालक योजना शुरू की है. इसके तहत राज्य सरकार बेरोजगार युवाओं को डेयरी फार्म के द्वारा अपना रोजगार शुरू करने में मदद कर रही है. इसके लिए बैंक बहुत ही आसानी से लोन दे रहे हैं. योजना के तहत बैंक द्वारा 40 हजार रुपये प्रतिवर्ष 5 वर्षों तक प्रदान किए जाएंगे.

उत्तर प्रदेश गोपालक योजना का लाभ 10 -20 गाय रखने वाले पशुपालकों को मिलेगा. योजना में गाय या भैंस रखने का विकल्प खुला है. गोपालक योजना के तहत पशु दूध देने वाला होना चाहिए.

गुजरात गौसेवा मॉडल

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गौसेवा और गौचर विकास बोर्ड, गुजरात सरकार ने आवारा और परित्यक्त पशुओं और देसी गायों की देखभाल और प्रबंधन के लिए “गुजरात गौसेवा मॉडल” विकसित किया है।

देसी गायों का महत्व

देसी गायें शारीरिक क्षमताओं के कारण भारतीय परिवेश का सामना करने में सबसे अधिक सक्षम हैं। धान और गेहूं के भूसे जैसे सूखे चारे पर निर्भर रहते हुए भी एक देसी गाय में स्वस्थ (ए-2) दूध देने की क्षमता होती है। 

आज मिट्टी के क्षरण का सबसे बड़ा कारण रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग है। रासायनिक उर्वरकों के व्यापक उपयोग से मिट्टी में कार्बन का ह्रास हुआ है। 

एक अनुमान के अनुसार गौशाला की खाद/गोबर मिट्टी को अन्य खादों और उर्वरकों की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक नाइट्रोजन और फॉस्फोरिक एसिड की आपूर्ति करती है। गाय के गोबर से बनी खाद सस्ती है और मिट्टी की सभी समस्याओं का समाधान है। 

शोध अध्ययनों ने निष्कर्ष निकाला है कि गाय का गोबर सालाना 1,460 टन सूक्ष्म पोषक तत्व दे सकता है जो मिट्टी की संरचना और 14.6 एकड़ की उर्वरता को समृद्ध करने के लिए पर्याप्त है। जैविक फसल उत्पादन में गाय के गोबर की प्रमुख भूमिका रही है।

गौसेवा मॉडल

गौसेवा और गौचर विकास बोर्ड, गुजरात सरकार ने राज्य में 143 गौशालाओं की पहचान की है, जो 23 परियोजनाओं को मॉडल संस्थानों के रूप में कार्य करेंगी। ये गौशालाएं दवाओं, ऊर्जा / बिजली, जैव-उर्वरक के उत्पादन, कीटनाशक और दैनिक उपयोग की वस्तुओं के लिए गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग करके आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर हैं।

गुजरात सरकार ने 24 घंटे की एम्बुलेंस सेवा शुरू की है, जिसका टोल फ्री नंबर-1962 है। ये एम्बुलेंस इंसानों की तरह ही गायों के स्वास्थ्य देखभाल एवं आपातकालीन बचाव हेतु काम कर रही हैं।

गुजरात राज्य में गौशाला विकास के लिए किए गए प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं।

  • नई गौशालाओं की स्थापना (विशेषकर जेलों, स्कूलों और मंदिरों में),
  • देशी नस्लों (गिरि, कांकरेज और डांगी) के प्राकृतिक प्रजनन के लिए सहायता प्रदान करना
  • गौशाला अनुसंधान पर छात्रवृत्ति प्रदान करना 
  • स्कूलों / कॉलेजों में गौ विज्ञान पाठ्यक्रम 
  • जैविक खेती पर जोर देना 
  • आदिवासी क्षेत्रों में गौशाला जागरूकता 
  • गायों के लिए माइक्रोचिप 
  • शहरी क्षेत्र में कामधेनु छात्रावास 
  • भविष्य की समस्याओं और चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए गौशाला विकास पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों/ संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन करना।
  • गौशाला कार्यकर्ताओं का सम्मान, गौ प्रदर्शनी के माध्यम से जागरूकता एवं संवाद कार्यक्रम आयोजित करना

गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाकर गोवंश को बचाने के लिए ‘गुजरात गौसेवा मॉडल’ को पूरे देश में दोहराया जा सकता है। इस तरह के कार्यक्रम न केवल देशी नस्ल की गायों को बचाए रखेंगे बल्कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करके किसानों की अर्थव्यवस्था का भी समर्थन करेंगे।

गौ संरक्षण – संवर्धन

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आदि काल से ही गाय के महत्त्व को स्वीकार किया गया है, इसीलिये जीवन और जीविका के लिए गाय के संरक्षण और संवर्धन पर सदैव ज़ोर दिया जाता रहा है. लेकिन आज समाज की दिशा बदलने के साथ-साथ गाय की दशा भी बदलती जा रही है. गो वंश की उपयोगिता न समझने के कारण गो हत्या और तस्करी को बढ़ावा मिला है. हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने इसे रोकने के लिए क़ानून बनाये हैं. परन्तु इन कानूनों को कड़ाई से लागू करने की ज़रुरत है. इसके साथ ही गो उत्पाद को बढ़ावा देना और बिन दुधारू, बूढ़ी बीमार गायों की देखभाल और रखरखाव के लिए आश्रय स्थल बनाए जाने की भी ज़रुरत है. गौ संरक्षण और संवर्धन के लिए सरकार के साथ-साथ समाज के हर व्यक्ति को अपनी भूमिका तय करनी होगी. 

राजस्थान पशु चिकित्सा शिक्षा प्रबंधन एवं शोध संस्थान

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राजस्थान पशु चिकित्सा शिक्षा प्रबन्धन एवं शोध संस्थान वर्षों से पशुपालकों व पशुओं के हित में कार्य कर रहा है.  29 मई 2003 को राजस्थान सरकार ने नियमावली संख्या 28/1958 के तहत पंजीकरण संख्या 29 अंतर्गत अन्य उद्देश्यों के साथ कृत्रिम गर्भाधान एवं प्राथमिक उपचार के साथ पशु सेवा हेतु निबंधित किया है. संस्था राजस्थान सरकार अधिनियम 1958 के अंतर्गत पशु सेवा के क्षेत्र में पंजीकृत एक NGO है, जिसे भारतीय संविधान के अंतर्गत पशुओं की देख-भाल, चिकित्सा एवं प्राथमिक पशु चिकित्सा एवं उसके प्रशिक्षण का कार्य करने तथा उसके प्रबंधन का पूर्ण अधिकार है.  संस्थान का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण राजस्थान है. प्रदेश के विभिन्न भागों में संस्थान अपना कार्य-कलाप करने को पूर्णतया स्वतंत्र है. संस्थान अव्यवसायिक स्वैछिक स्वायतशासी गैर सरकारी संस्थान है.

यहाँ पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ता (AHW) के पाठ्यक्रम का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है.  इस के अंतर्गत कोई भी 10वीं पास योग्यताधारी व्यक्ति प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड में नियमानुसार रोजगार प्राप्त कर सकता है तथा स्वयं के स्तर पर पशुओं की चिकित्सा करके स्वरोजगार भी कर सकता है.  यह प्रशिक्षण कौशल विकास हेतु है. इस के जरिये सरकारी नौकरी मिलने का कोई भी दावा संस्थान नहीं करता है. संस्थान निगम की ओर से केवल प्रशिक्षण में प्रवेश करने को अधिकृत है.

संस्थान के उद्देश्य हैं – लाचार, बेबस, बेसहारा पशुओं की देखभाल करना, नि:शुल्क पशुचिकित्सा एवं प्राथमिक उपचार की व्यवस्था करना, संस्थान के सदस्यों को पशुपालन एवं पशु प्रबंधन में प्रशिक्षित करना, पशु चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा हेतु शिक्षण व्यवस्था करना, प्रदेश के प्रचुर अकुशल मानवीय संसाधनों के लिए पशु सम्पदा के क्षेत्र में सेवा व रोजगार के अवसरों की तलाश करना, पशु चिकित्सा के क्षेत्र को सामाजिक जाग्रति व जन चेतना के माध्यम से गति करना, कृत्रिम गर्भाधान व उन्नत नस्ल कार्यक्रम का ग्रामीण अंचल में प्रचार प्रसार करना, ग्रामीण अंचल में गंभीर व असाध्य रोगों का शोध व निराकरण करना, राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम में सक्रिय योगदान करना, बेबस एवं आवारा पशुओं तथा गरीब पशुपालकों को नि:शुल्क चिकित्सा सेवा प्रदान करना, पशुओं में टीकाकरण कार्यक्रम को बढ़ावा देना और पशुओं के प्रति क्रूरता व अत्याचारों के प्रति समाज में जागरूकता लाना.

घर पर ही खोला गो चिकित्सालय

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गोवंश को बचाने के लिए गो सेवी संस्थाएं और गो सेवक अपने-अपने स्तर पर  गायों का उपचार कर रहे हैं.  

ऐसे ही पशु प्रेमी हैं कैथल जिले के चित्र गांव निवासी चंद्रभान, जिन्होंने अपने घर पर ही गौ चिकित्सालय खोला हुआ है. गौशाला तो बहुत से लोग खोलते हैं, लेकिन गौ चिकित्सालय बहुत ही कम देखने को मिलते हैं.

चंद्रभान को नागौर गौ चिकित्सालय में घायल आवारा पशुओं का उपचार देखकर प्रेरणा मिली और उन्होंने अपने घर में ही गौ चिकित्सालय खो लिया. वह निशुल्क इलाज करते हैं. गोपालक अपनी बीमार गाय को उनके यहां छोड़ भी सकते हैं और बदले में उपचार के द्वारा ठीक हुई गाय लेकर जा सकते हैं.

चंद्रभान की इस मुहिम को उनके गांव के लोगों का भी साथ मिल रहा है. उनके गांव के कई पशु चिकित्सक भी फ्री में अपनी सेवा देकर इन आवारा पशुओं और गायों को ठीक करने में सहयोग कर रहे हैं.

श्री हरियाणा गो चिकित्सालय

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हिसार-दिल्ली बाइपास स्थित ‘श्री हरियाणा गो चिकित्सालय’ में बीमार, दुर्घटनाग्रस्त गोवंश की चिकित्सा की जाती है. 

पांच एकड़ में स्थापित इस गो चिकित्सालय में अल्ट्रासाउंड, मोबाइल अल्ट्रासाउंड एक्स-रे, आधुनिक लैब के साथ-साथ तीन आईसीयू भी स्थापित हैं। यहाँ पर भव्य और आधुनिक ऑपरेशन थियेटर भी स्थापित किया गया है। इसके अलावा एक गहन चिकित्सालय तथा 2 रिकवरी वार्ड बनाए गए हैं। ओपन वार्ड की व्यवस्था अलग है. चिकित्सालय में एम्बुलेंस की सुविधा भी है. 

इस गो चिकित्सालय के आधा एकड़ में फलों का बगीचा लगाया गया है। साथ ही सुंदर लाइट्स व फव्वारों के साथ पार्कों का निर्माण किया गया है। इस चिकित्सालय में बीमार और घायल गायों का उपचार किया जाता है. इसके अलावा गोशाला संचालकों को भी चिकित्सालय की ओर से सुविधा प्रदान की जाती है.

विश्व स्तरीय गो चिकित्सालय

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नागौर जिले में ‘विश्व स्तरीय गो चिकित्सालय’ के नाम से विख्यात ‘गोलोक महातीर्थ’ है, यहाँ दुर्घटनाग्रस्त, पीड़ाग्रस्त गौमाता की बडे़ स्तर पर सेवा एवं चिकित्सा की जाती है. ‘विश्व स्तरीय गो चिकित्सालय’ की स्थापना 23 फरवरी 2008 को की गई थी.

‘विश्व स्तरीय गो चिकित्सालय’ में स्वस्थ, दुधारू तथा घरेलु गोवंश नहीं रखा जाता हैं. केवल दुर्घटनाग्रस्त एवं पीड़ाग्रस्त गोवंश को ही रखा जाता हैं. 

यहाँ उठने में असमर्थ गोवंश एवं अनाथ बछड़ों को प्रतिदिन  आसपास के गाँवों से लाकर दूध पिलाया जाता है. वर्तमान में तीन केन्द्रों में विश्व स्तरीय गो चिकित्सालय की सेवाएं प्रदान की जा रही हैं. ये केंद्र हैं नागौर, जोधपुर (शाखा) ग्राम-रलावास और काँजी हाऊस ‘नगर परिषद् की गौशाला. 

 ‘विश्व स्तरीय गो चिकित्सालय’ का सबसे महत्वपूर्ण विभाग है ‘मेडिकल कक्ष’. यहाँ लाये गए पीड़ित, बीमार व दुर्घटनाग्रस्त गोवंशों को प्राथमिक उपचार हेतु सर्वप्रथम मेडिकल विभाग को सुर्पुद किया जाता है। मेडिकल विभाग में प्राथमिक जांच और  ईलाज के पश्चात गोवंश को उनकी शारीरिक स्थिति एवं सेवा सुरक्षा की आवश्यकता के अनुसार बनायी गयी श्रेणियों में भेज दिया जाता है. गंभीर रूप से लाचार, दुर्घटनाग्रस्त व वृद्ध गोवंश को ‘‘अत्यधिक घायल वार्ड (आई.सी.यू)’’ में पूर्ण स्वास्थ्य लाभ मिलने तक रखा जाता है। गोलोक महातीर्थ में गोमाता की पीड़ा शीघ्रतिशीघ्र दूर कैसे हो इस हेतु अनुभवी चिकित्सक, डिग्रीधारी कम्पाउडर, सेवाभावी गोसेवक हर समय हाजिर रहते हैं.

गोवंश के उपचार हेतु अलग अलग बीमारी के अनुसार वार्डो की व्यवस्था की गई है जैसे घायल वार्ड, अत्यधिक घायल वार्ड, कैंसर पीड़ित वार्ड, तीन पैर वार्ड, घायल साण्ड वार्ड, सिजेरियन वार्ड, शरीर पीड़ित वार्ड इत्यादि. 

अलग-अलग बीमारियों में दिऐ जाने वाले भोजन निश्चित माप के अनुसार गोमाता को निश्चित समय पर बदल-बदल कर दिया जाता है। सर्दियों में वृद्ध गोवंश को लापसी, मक्की, मैथी, अजवायन, बाजरी, खोपरा, गुड़, तेल आदि को पकाकर खिलाया जाता है, वही गर्मियों में ठण्डा रहने वाले जौ, खल व चापड़ खिलाये जाते है. वृद्ध व बीमार गायों को दिन में कई बार स्थान बदलवाना (पलटना), उनके सहारे के लिए छलनी से छानी हुई मखमली रेत के तकिये बाजू में लगाकर रखना आदि बैटन का भी ध्यान रखा जाता है। यहां पर गोमाताओं की सेवा जन्म देने वाली ‘‘माँ’’ की तरह आत्मीयता, प्रेम और सर्मपण भाव से होती है। 

विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय की विशेषता :-

  1. विश्व स्तरीय गो चिकित्सालय के लावारिस पीड़ाग्रस्त गोवंश को लाने हेतु 18 पशु एम्बुलेन्स की व्यवस्था की गई है.
  2. जिस स्थान से दुर्घटनाग्रस्त गोवंश लाये जाते हैं स्वस्थ होने के पश्चात् गोवंश को पुनः उसी स्थान पर छोड़ दिया जाता है.
  3. गोपालक अपने घरेलु बीमार गोवंश लेकर आता है तो उनको एक बीमार गोवंश के बदले में एक स्वस्थ गोवंश दिया जाता है. गौशालाओं को भी बीमार गोवंश के बदले में स्वस्थ गोवंश दिया जाता है.
  4. निजी वाहन, वन विभाग एवं पुलिस प्रशासन के वाहन से लाये गए वन्य जीवों का भी यहाँ उपचार किया जाता है.
  5. स्वस्थ होने पर वन्य जीवों को वन विभाग को सुपुर्द कर दिया जाता है.
  6. गो चिकित्सालय में स्वस्थ गोवंश एवं दूध देने वाली गायों को नहीं रखा जाता और न ही लिया जाता है.

Website : http://gaulokmahatirth.com

पशु चिकित्सालय

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पशुओं की चिकित्सा के लिए देश भर में पशु चिकित्सालय स्थापित हैं, जहाँ बीमार, दुर्घटनाग्रस्त पशुओं के इलाज़ और कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा उपलब्ध की जाती है. इसके अलावा कई राज्यों में गोवंश के उपचार के लिए ‘गो चिकित्सालय’ भी बनाये गए हैं.