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‘गौ धाम’ और ‘गौ रथ’ एकल श्रीहरि को समर्पित 

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एकल श्रीहरि को समर्पित ‘गौ धाम’ का गृह प्रवेश 10 अगस्त 2022 को परम पूज्य गुरुमां गीता भारती, दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा और एकल अभियान के अभिभावक श्यामजी गुप्त की उपस्थिति में संपन्न हुआ। ‘गौ धाम’ का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र नगरी वृन्दावन में परिक्रमा मार्ग, पानीघाट में किया गया है।

ज्ञातव्य है कि एकल हरि ने गौवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए ‘गौ ग्राम योजना’ प्रारंभ की है। योजना का मूल मंत्र है – “गाय का घर किसान का घर”।

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गाय भारत की संस्कृति है। हम गाय को मां की तरह पूजते हैं, लेकिन बूढ़ी, अपाहिज, बिनदुधारू गाय को अनुपयोगी समझ कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, या कसाई को बेच दिया जाता है। गाय की इस दुर्दशा को देखते हुए एकल श्रीहरि ने गौ ग्राम योजना के माध्यम से गाय को किसान के घर पहुंचाने का संकल्प लिया है। 

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गौ ग्राम योजना के अध्यक्ष श्रीनारायण अग्रवाल ने बताया कि अब तक 60 गाय किसान के घर पहुंचाई जा चुकी हैं। शीघ्र ही 8 हज़ार किसान परिवारों में गाय पहुंचा दी जाएगी। इन गायों को किसान न छोड़ें इसलिए गाय के गोबर और गोमूत्र से उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। इसके साथ ही ग्रामीण महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को लेकर ग्रामीण महिलाओं को गोबर के उत्पाद बनाना सिखाकर उन्हें स्वावलंबी बनाया जा रहा है। 

श्रीनारायण अग्रवाल ने बताया कि ‘गौ धाम’ गौ ग्राम योजना के मुख्यालय के रूप में कार्य करेगा।

योजना के उद्देश्यों से लोगों को अवगत कराने के लिए ‘गौ ग्राम योजना’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया।

गौ रथ 

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इसी अवसर पर गौ ग्राम योजना के प्रचार प्रसार के लिए योजना के अध्यक्ष श्री नारायणा अग्रवाल ने बहुउद्देशीय ‘गौ रथ’ योजना को समर्पित किया। ये पहला गौ रथ है जो एक एम्बुलेंस की तरह बनाया गया है। गौ रथ में गाय को पशु चिकित्सालय पहुंचाने के लिए हाइड्रोलिक मशीन की व्यवस्था भी है। गौ रथ द्वारा गांव – गांव घूमकर गाय का महत्त्व, गौ आधारित खेती और गौ उत्पाद के बारे में किसानों को बताया जाएगा। 

इस अवसर पर एकल श्रीहरि के कार्यकर्ता, विद्वजन सहित देश भर से आए गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।  

गोबर से होंगे मालामाल

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गोबर से होंगे मालामाल

दूध न देने वाली गाय से भी अब हर महीने लाखों की कमाई की जा सकती है। सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में हर साल लगभग 100 मिलियन टन गोबर मिलता है जिसकी कीमत 5,000 करोड़ रुपए है। इस गोबर से जैविक खाद, कागज़, बायो सीएनजी, वैदिक प्लास्टर, गौकाष्ठ और अन्य उत्पाद बनाकर गौपालक मालामाल हो सकते हैं।  

पेपर प्लांट

कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट में गाय के गोबर से पेपर बनाने की विधि इजाद की गई है। इस विधि को अब ‘प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम’ के तहत आम लोगों तक पहुंचाने की तैयारी की जा रही है। यानि अब आप भी इस प्‍लांट को लगाकर गोबर से पैसे बना सकते हैं।

गाय के गोबर से बने हैंडमेड पेपर की क्‍वालिटी बहुत अच्‍छी है। इससे कैरी बैग भी तैयार किया जा रहा है। जैसा कि प्‍लास्‍टिक बैग बैन हो रहे हैं, ऐसे में पेपर के कैरी बैग अच्‍छा विकल्‍प हैं। इस प्‍लांट से किसानों की आय भी बेहतर हो सकती है। साथ ही युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।

गोबर से पेपर बनायें

5 से 25 लाख तक में लगेगा प्‍लांट

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) से जुड़ने के बाद लोग गोबर से पेपर बनाने के प्‍लांट के लिए लोन और सब्सिडी पा सकेंगे। मात्रा के आधार पर ये प्लांट 5 लाख से लेकर 25 लाख तक में लगाए जा सकते हैं। चूंकि ये हैंडमेड पेपर हैं, इसलिए इससे हर प्‍लांट में इसमें 10 से 12 लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री गिरिराज सिंह ने गत 12 सितंबर को कुमारप्पा नेशनल हेंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट में गोबर से बने पेपर कैरी बैग को लॉन्‍च किया था। इस दौरान उन्‍होंने कहा कि गाय के गोबर से बने उत्पाद गुणवत्ता में बेहतर हैं और किफायती भी हैं. देश भर में इन्हें पसंद किया जा रहा हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच का ही परिणाम हैं कि किसान गाय के गोबर से भी पैसा कमा सकेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गोबर-गोमूत्र से कमाई की बात करते रहे हैं। पीएम मोदी ने मन की बात में कहा था, ”गोबर भी किसानों की कमाई का जरिया हो सकता है। किसान गोबर की खाद अपने खेतों के लिए ही नहीं बल्कि उसे ज्यादा मात्रा में उत्पादन कर कारोबार भी कर सकते हैं। सरकार की ‘गोबरधन स्कीम’ के जरिए ‘वेस्ट’ को ‘एनर्जी’ में बदलकर इसे आय का जरिया बनाया जा सकता है।”

गोबर से CNG

गोबर से बायो सीएनजी बनाने का प्लांट

गोबर से बायो सीएनजी भी बनाई जाने लगी है। ये वैसे ही काम करती है, जैसे हमारे घरों में काम आने वाली एलपीजी। ये उससे काफी सस्ती पड़ती है और पर्यावरण की भी बचत होती है। बॉयो सीएनजी को गोबर के अलावा सड़ी-गली सब्जियों और फलों से भी बना सकते हैं। ये प्लांट गोबर गैस की तर्ज पर ही काम करता है, लेकिन प्लांट से निकली गैस को बॉयो सीएनजी बनाने के लिए अलग से मशीनें लगाई जाती हैं, जिसमें थोड़ी लागत भी लगती है लेकिन ये आज के समय को देखते हुए बड़ा और कमाई देने वाला कारोबार है। बॉयो सीएनजी तो हाथो हाथ बिक ही जाती है. साथ ही अपशिष्ट के तौर पर निकलने वाली स्लरी यानी बचा गोबर खाद का काम करता है।

गोबर प्लास्टर

गोबर से बना वैदिक प्लास्टर

देसी गाय के गोबर से बनाये जा रहे ‘वैदिक प्लास्टर’ के प्रयोग से गांव के कच्चे घरों जैसा सुकून मिलता है। जबसे हमारे घरों से गोबर की लिपाई का काम खत्म हुआ तबसे बीमारियां बढ़नी शुरु हुईं। देसी गाय के गोबर में सबसे ज्यादा प्रोटीन होती है। जो घर की हवा को शुद्ध रखने का काम करता है, इसलिए वैदिक प्लास्टर में देसी गाय का गोबर लिया गया है। देसी गाय के गोबर में जिप्सम, ग्वारगम, चिकनी मिट्टी, नीबूं पाउडर आदि मिलाकर इसका वैदिक प्लास्टर बनाते हैं जो अग्निरोधक और उष्मा रोधी होता है। इससे सस्ते और इको फ्रेंडली मकान बनते हैं।

गोबर के चप्पल

गोबर की चप्पल  

गोबर से चप्पल बनाने का काम भी हो रहा है। यह चप्पल मजबूत और टिकाऊ तो है ही सेहत के लिहाज से भी लाभदायक है। इसका सीधा असर स्वास्थ्य पर होता है। अब घर गोबर से नहीं लीपे जाते, लेकिन गोबर की चप्पल का इस्तेमाल तो घर में किया जा सकता है। यह चप्पल आधे घंटे पानी में रख देने से भी न टूटता है और न ही खराब होता है।

धूपबत्ती

धूपबत्ती

एक गाय के दिनभर में जमा होने वाले आठ से दस किलो गोबर में पांच किलोग्राम लकड़ी का बुरादा, आधा किलोग्राम बाजार में मिलने वाला चंदन पाउडर, आधा लीटर नीम का रस, 10 टिकिया कर्पूर, 250 ग्राम सरसों, जौ का आटा और 250 ग्राम गौमूत्र (तीन बार उबाला हुआ) मिक्स कर लें। इंजेक्शन की सीरिंज को आगे से काटकर उसके जरिए गोबर एवं मिश्रण को इसके सांचे से निकालकर धूपबत्ती तैयार की जा सकती है। प्रतिदिन  500 पीस धूपबत्ती तैयार कर बाज़ार में बेची जा सकती है।

गोबर की मूर्तियाँ

ईकोफ्रेंडली मूर्ति

धार्मिक मान्यता है कि गाय के गोबर में लक्ष्मीजी का निवास है। गाय के गोबर से ही निर्मित लक्ष्मी प्रतिमा का पूजन श्रेष्ठ होता है। गोबर को सुखाकर तैयार किया एक-डेढ़ किग्रा बुरादा, आधा किलो मैदा लकड़ी, सौ ग्राम फेवीकोल मिक्स करके बाजार में मिलने वाली मूर्तियों के सांचे में भरकर रख दें। चार-पांच दिन में मूर्ति बनकर तैयार हो जाएगी। ऐसी मूर्तियों की मार्केट में काफ़ी डिमांड हो रही है।  

महाराष्ट्र की पांजरापोलों को 51 लाख के चेक वितरित

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महाराष्ट्र की पांजरापोलों को 51 लाख के चेक वितरित

मुंबई में ‘ऐनिमल हॉस्पिटल ऑन व्हील’ का शुभारंभ

महाराष्ट्र के पशुपालन मंत्री सुनील केदार ने प्रदेश की पांजरापोलों (गौशालाओं) को 51 लाख के चेक वितरित किये और मुंबई की पहली ‘ऐनिमल हॉस्पिटल ऑन व्हील’ का शुभारंभ किया.
इस अवसर पर पशुपालन मंत्री ने जानकारी दी कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से प्रदेश के 100 पांजरापोल (गौशाला) को 25 – 25 लाख रुपये दिए जाएंगे. इसके अलावा सरकार की तरफ़ से 80 नयी ऐनिमल एम्बुलेंस दी जाएंगी.
पशुपालन मंत्री के निवास स्थान पर संपन्न इस कार्यक्रम में मीरा भायंदर की विधायक श्रीमती गीता जैन, विजय वोरा, सुरेंद्र दस्सानि, निलेश गांधी, गिरीश सत्रा, परेश शाह, श्रीमती नीताबेन सहित महाराष्ट्र के विविध ज़िलों से 21 पांजरापोल के ट्रस्टी आदि उपस्थित रहे.

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‘समस्त महाजन’ के मैनेजिंग ट्रस्टी गिरीशभाई शाह ने बताया कि महाराष्ट्र में 716 पांजरापोल (गौशाला) में 1,65000 अबोल जीव सुरक्षित हैं. यदि महाराष्ट्र सरकार प्रति पशु प्रतिदिन 50 रुपये की सब्सिडी देती है तो पाँच लाख से अधिक पशु पांजरापोल (गौशाला) में सुरक्षित हो सकते हैं.
इस प्रकार गोबर और गोमूत्र के उपयोग से महाराष्ट्र में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा तथा महाराष्ट्र राज्य “ऑर्गेनिक स्टेट” के रूप में विकसित होगा.
उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में प्रतिदिन एक करोड़ 20 लाख लीटर दूध उत्पादन होता है. यदि महाराष्ट्र के सभी 43722 गाँव में गोचर विकास हो जाय, तालाब और नाले शुद्ध हो जाय, देशी वृक्षों का वृक्षारोपण हो जाय; तो प्रतिदिन 5 लाख लीटर दूध का अतिरिक्त उत्पादन हो सकेगा.

स्वाद और शुद्धता से भरपूर ‘सोहम नेचुरल ड्रॉप’

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स्वाद और शुद्धता से भरपूर ‘सोहम नेचुरल ड्रॉप’

अदरक, इलाइची, कालीमिर्च, दालचीनी, तुलसी आदि का इस्तेमाल हर घर में रोज़ ही होता है. इन्हें लाना और सहेजना पड़ता है. अब अगर ये सब अर्क के रूप में उपलब्ध हो जाएं तो कहना ही क्या. एक बूंद इस्तेमाल किया और ज़रुरत पूरी.

इस बात को ध्यान में रखते हुए पुणे निवासी प्रशांत चौधरी ने ‘सोहम नेचुरल ड्रॉप’ की शुरुआत की है. प्रशांत चौधरी ने बताया कि वह प्योर नेचुरल ड्रॉप बनाते हैं. इसे रूम टेम्प्रेचर में तैयार किया जाता है. जिससे नेचुरल न्यूट्रीशियन वैल्यू और विटामिन्स सुरक्षित रहते हैं.

इनकी एक बूंद का इस्तेमाल खाना बनाने में बखूबी किया जा सकता है. खाना बनाते समय इलाइची, अदरक, कालीमिर्च, दालचीनी आदि का इस्तेमाल करने के लिए न पहले से कोई तैयारी करनी पड़ती है और न ही इन्हें कूटने-पीसने की ज़रुरत होती है, क्योंकि ‘सोहम नेचुरल ड्रॉप’ के रूप में ये सब किचन में उपलब्ध है.  

प्रशांत चौधरी बताते हैं कि उनके पास जिंजर, लेमन ग्रास, ब्लैक पेपर, हल्दी, तुलसी, अदरक, लौंग, इलायची आदि अलग-अलग तरह के ड्रॉप्स हैं।

प्रशांत चौधरी का कहना है कि शुद्ध अर्क होने के कारण इनका मेडिकल बैनिफिट भी है. अदरक, इलाइची, लैमन ग्रास, लौंग और दालचीनी के मिश्रित अर्क से तैयार सोहम मसाला चाय इम्यूनिटी बूस्टर भी है. इसके अलावा वह अलग से भी इम्यूनिटी बूस्टर अर्क भी बनाते हैं, जिसका इस्तेमाल एक कप गरम पानी में किया जा सकता है.

अधिकतर लोग तुलसी, अदरक और इलाइची वाली चाय पीना पसंद करते हैं. मसाला चाय के अलावा ‘सोहम नेचुरल ड्रॉप’ ने इन तीनों का अलग – अलग अर्क भी तैयार किया है. जिसकी एक बूंद इम्यूनिटी बढ़ने के साथ – साथ एक कप गरम पानी में नेचुरल स्वाद देती है.  

संयंत्र

प्रशांत चौधरी ने बताया कि हमारे नए अत्याधुनिक विनिर्माण संयंत्र (सुपर क्रिटिकल फ्लूइड एक्सट्रैक्शन प्रोसेस) को पुणे, महाराष्ट्र के पास घर में स्थापित किया गया है। हमारे संगठन में सामान्य लक्ष्य के प्रति समर्पण के साथ तकनीकी रूप से सक्षम आर एंड डी और निर्माण टीम शामिल है। हमारी उत्पाद श्रृंखला में आवश्यक तेल और ओलेरोसिन जैसे अदरक, काली मिर्च, लौंग, इलायची आदि, मूल्य वर्धित मसाले, हर्बल अर्क और अनुकूलित Co2 निष्कर्षण शामिल हैं। हम स्थिरता पर केंद्रित कंपनी हैं। हमारे उत्पाद उतने ही प्रामाणिक और प्राकृतिक हैं जितने उपलब्ध हैं। हम अपने आवश्यक तेलों और अन्य उत्पादों की उच्च गुणवत्ता और शुद्धता बनाए रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। अनुरोध पर विश्लेषण, विनिर्देशों और एमएसडीएस का प्रमाण पत्र उपलब्ध हैं। हमारे सभी आवश्यक तेल नैतिक रूप से उत्पादित होते हैं। हम अपने व्यापार के दिल के लिए प्रतिबद्ध हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करते हैं कि हमारा व्यवसाय हमारे भागीदारों की अखंडता को बनाए रखता है।

गुणवत्ता

हमारी उत्पादन इकाई नवीनतम सुपर क्रिटिकल फ्लूइड एक्सट्रैक्टर्स से लैस है जो हमारे उत्पादों के लिए निर्विवाद मानकों को सुनिश्चित करती है। हमारे उत्पादों की गुणवत्ता कुछ ऐसी है जिसे हम कभी भी मौका नहीं छोड़ते हैं। कच्चे जड़ी-बूटियों से लेकर तैयार उत्पादों तक हर स्तर पर उत्पादों की जांच की जाती है ताकि पूर्ण दोषरहितता सुनिश्चित की जा सके।

आधारभूत संरचना

हमारे पास विविध प्रकार के उत्पादों के निर्माण के लिए सभी आवश्यक सुविधाओं के साथ व्यापक रूप से सुसज्जित प्रयोगशालाएं और संयंत्र हैं। हमारे पास अत्यधिक सक्षम रसायनज्ञ और तकनीशियन हैं, जो बहुत सस्ती और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बढ़ी हुई दक्षता और उच्च गुणवत्ता मानकों को प्राप्त करने के लिए नई प्रक्रियाओं को विकसित करने में लगातार शामिल हैं।

श्रीहरि सत्संग समिति द्वारा किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की योजना पर अमल शुरू

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श्रीहरि सत्संग की “गौ ग्राम योजना” के अंतर्गत किसानों को गाय दिए जाने के साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए गाय के गोबर से बनाये जाने वाले विभिन्न उत्पादों का प्रशिक्षण देने का कार्य शुरू हो गया है।  

उल्लेखनीय है कि गौ ग्राम योजना के अंतर्गत 12 नवंबर 2021 को पश्चिम बंगाल के नकाशीपाड़ा और 12 दिसंबर 2021 को झारखण्ड के दुम्मा में किसानों को गाय दी गई।

संस्था द्वारा गाय के साथ किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गौमूत्र और गोबर से जैविक खाद तथा अन्य विभिन्न उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

प्रशिक्षण के दौरान ग्रामीण महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।

गौ उत्पाद बनती हुई महिलाएं

इसके पहले चरण में 27 दिसंबर 2021 से 4 जनवरी 2022 तक नकाशीपाड़ा सहित अलग – अलग गाँवों में ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिया गया।

27 से 29 दिसंबर 2021 को नकाशीपाड़ा, 30 दिसंबर को पूर्व सोना तोला गाँव, 31 दिसंबर को वीरपुर, 1 जनवरी 2022 को  कुबेर नगर, 2 जनवरी को सत्यपुर, 3 जनवरी को वासुदेवपुर और 4 जनवरी को छोटा सिमुलिया में ग्रामीणों को गोमय दीपक, गमले, धूपबत्ती, संब्रानी कप, समिधा आदि उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।  

गोमय से गमला बनती हुई महिलाएं

गौ ग्राम योजना के अंतर्गत अगले कुछ वर्षों में देशभर की गोशालाओं से एक करोड़ गोवंश निकालकर उनकी असली जगह गांवों में गोपालक किसानों के घर तक पहुंचाने का लक्ष्य है।

गाय बचेगी तो देश बचेगा – राजेंद्र लुंकड़

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गौविज्ञान संशोधन संस्था के राजेन्द्र जवाहरलाल लुंकड़ कई दशकों से गौसेवा कर रहे हैं।  उन्होंने कामधेनु भारत को बताया कि पूरे भारत में गौविज्ञान को बढ़ाने का प्रयत्न करने वाले मोरोपंत जी पिंगले के आशीर्वाद से गौविज्ञान संशोधन संस्था का काम चल रहा है।

सबसे पहले हमने पंचगव्य औषधि की बिक्री शुरू की। मुंबई, नागपुर और अकोला में बनने वाली औषधियों को बेचने के साथ ही एक डॉक्टर के साथ हमने दवाखाना भी शुरू किया।

गौ आधारित खेती

इसके बाद हमने गौ आधारित खेती के लिए प्रयत्‍न किया और मांजनतुंबा नगर से काम शुरू किया। गौआधारित खेती के लिए किसानों की एक मीटिंग की जिसमें 300 किसान सम्मिलित हुये। इनमें से कुछ किसानों ने गौअधारित खेती करने का फैसला किया। उस साल 17 एमएम बरसात हुयी जिसके कारण सिर्फ़ उन्ही किसानों का उस पानी के अंदर अच्छा उत्‍पादन हुआ, जो जैविक खेती कर रहे थे। दूसरों के खेत में कुछ नहीं हुआ। इसके बाद बाकी के गांव वालों ने भी गौआधिरित खेती पर ध्यान दिया। उसके बाद 85 किसान हमसे जुड़ें। हमने वहां के किसानों से कहा था कि अगर वो गौआधिरित खेती करेंगे तो हम उन्हें एक गाय देंगे जो बिनादूध वाली होगी। जिसे उन्हें संभालना होगा और गौमूत्र तथा गोबर के आधार पर उन्हें जैविक खेती करनी होगी। इस प्रकार के प्रयास से हमने वहां पर 53 गाय दीं। हर गाय को नाम दिया गया और  उनका फोटो लिया गया।

बचत ही आपका मुनाफ़ा

इसी प्रकार फाल्टन के पास एक गांव है वहां पर भी हमने काम शुरू किया। वहां का काम भी बहुत अच्छे तरीके से चल रहा है। आसपास के 5-10 गांव और भी हमसे जुड गये हैं। गौ आधारित उत्पादन में काफ़ी आमदनी है। एक किसान ने हमें बताया कि जैविक खेती में उसके 3 हज़ार 500 रुपये ख़र्च हुये और तीन महीने में 17 हजार रूपये प्राप्त हुये।

हम लोग लोगों को समझाते हैं कि आपकी बचत ही आपका मुनाफा है। आप 10 से 15 टका मुनाफ़ा लो, इससे अधिक की आशा न करो। अगर आप केमिकल की खेती करते तो 10-15 हजार खर्चा करना पड़ता, परंतु यहां पर आपको 3500 में काम हो गया। हम तो कहते हैं कि 10 टके में काम हो सकता है। ये प्रेक्टिकल आपने खुद करके देखा है। इसके आधार पर आप खेती करो। आप सबल और संपन्न हो जायेंगे।

ताज़ी सब्ज़ियों से रोज़ हज़ारों का मुनाफ़ा 

वहां पर एक कमिन्स की फैक्टरी है। उनसे संपर्क करके हमने कहा कि किसान जैविक खेती से पैदा की गईं ताज़ी सब्ज़ियाँ रोज़ आकर आपको देगा। उन्हें वहां सब्ज़ी बेचने दी जाय। वहां किसानों नें सब्ज़ी बेचना शुरू किया तो रोज़ 3 से 4  हजार नक़द मिलने लगे।  हर दो दिन के बाद अलग-अलग किसान वहां पर स्टॉल लगाते थे और अपना माल बेचकर जाते थे। बारी बारी से सबको यह मौका मिला।  

कम मुनाफ़े में अधिक फ़ायदा

हम किसानों से कहते हैं कि आपने जो खर्चा किया है वह लिखकर रखो। आपका लडका भी दो घंटे के लिए गया तो दो घंटे का खर्चा लिखो, पत्‍नी भी अगर गई तो उसका भी एक दो घंटे का खर्चा लिखो। माता-पिता भी गये तो उनका खर्चा भी लिखो। यानि सब का खर्चा टोटल खर्चा आपको पूरा लिखना है और इसे बेचते समय आपको जितना मिलाउसमें से कम कर देना है। ये जो बचा हुआ पैसा है वो आपका मुनाफ़ा है। जब आप यही खेती रासायनिक खाद से करते थे तब आपको 2 से 5 हजार ही मिलते थे। अब जैविक खेती से  आपको दस हजार मिल रहे हैं। मैं फिर कहूँगा कि आप अधिक कीमत पर बेचने की कोशिश न करें। 10-15 टका आप मुनाफ़ा लेकर बेचो, क्योंकि लेने वाला आपके पास माध्यम वर्ग आता है। उसके मन में ये होना चाहिये कि सस्ता मिल रहा है। ज्यादा कीमत लोगे तो वह कभी भी खरीददारी नहीं करेगा। इससे अपना माल बिकेगा नहीं। अच्छा होगा तो भी नहीं बिकेगा। परंतु अगर आप अच्छा भी देते हो और  बाजार भाव से 10 टका ज्यादा लेते हो तो लोग खुशी से देते हैं। अगर आप 50 टका जाओगे तो वह विचार करेगा।

इस प्रकार हम गांव को प्रबोधन करते हैं और इसके माध्यम से लोगों को प्रबुत्‍व करते हैं और उनका माल बेचने की व्यस्था करते हैं। हम किसानों से कहते हैं कि एक ही चीज में पूरा मत लगाओं। कांदा (प्याज़) है तो पूरा कांदा न लगाना। आप एक एकड़ कांदा लगाओ, एक एकड़ सब्जी लगाओ। इस प्रकार विभाजन करोगे तो फ़ायदे में रहोगे। एकदम बाजार में अधिक माल आने से कीमत घटती है, इससे आपको उचित भाव नहीं मिलेगा, जिससे आपने जो मेहनत की है वो खेत में बर्बाद हो सकता है। इस प्रकार उन लोगों को प्रबोधन करते हैं।

काम बढ़ता जा रहा है

इस प्रकार का काम बढ़ता ही जा रहा है। इसी आधार पर हम और गांव जोड़ रहे हैं, जिससे किसान स्वाबलंबी बने और उसके साथ में धन संपन्न भी बने। उनकी सारी पारिवारिक समस्या धन के माध्यम से काफी हद तक कम हो जाये। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा अच्छे से हो, जिससे वह भी आगे बढ़ सकें। इस तरह का प्रोत्‍साहन हम लोग देते हैं।  

महिलओं का संगठन भी बना हुआ है। उनसे भी कुछ काम लिया जाता है। बच्चों को भी संस्कार वर्ग के माध्यम से जोड़ा गया है। जिससे कोई निष्क्रिय न रहे। हर कोई अपना काम करता रहे। 

फ़ोन पर समस्या का निवारण

हम 24 घंटे फोन पर उपलब्ध होते हैं। फोन मे माध्यम से जो भी खेती से संबंधित समस्या होती है हम सुलझाते हैं। एक आदमी को हम गांव में रखते हैं जो यह देखता है कि कोई केमिकल का इस्तेमाल न करे। बिना केमिकल के वह खेती करता है या नहीं, उसका हम निरीक्षण कराते हैं। फिर पूना से एक निरीक्षक जाता है, जो गांवों में निरीक्षण करता है  कि कितने घरों में कितना काम हुआ।

जैविक खेती के अलावा जो दूसरे गौ उत्पाद हैं उनको भी हम बढ़ावा दे रहे हैं। गौ उत्पाद बनाना भी हम सिखाते हैं।

गौमूत्र के माध्यम से कैंसर और डीएनए दोनों रिपेयर होते हैं। इसकी औषधि पेडों में डालों तो कीड़ा नहीं  लगता।

इस प्रकार का प्रबोध्न करके हम काम कर रहे हैं। लोग गाय के प्रति आकर्षित हों। गाय का प्रोडक्ट बेचें। यही जागृति लोगों तक जाये। गाय बचेगी तो देश बचेगा यह हमारी मान्यता है।

हम गीर गौवंश का पालन करते हैं – आयुष लोहिया

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मैं आयुष लोहिया गौ वरदान, नागपुर से। हम गीर गौवंश का पालन करते हैं और गीर गौवंश के दूध से नागपुर के नागरिकों को पौष्टिक दूध का आहार मिले, ऐसा प्रयास कर रहे हैं। हमारे यहाँ करीब 850 गौवंश है।

देसी गाय ही क्यों?

देसी गाय ही क्यों? इस सम्बन्ध में हम आपको बताना चाहेंगे कि 1970 में हिदुस्तान में जर्सी गाय आयी थी और जब से जर्सी आयी है तब से हिदुस्तान का दूध ख़राब हो गया।  फिर पैकेज दूध का चलन शुरू हुआ। जो कई मायने में ज़हरीला है, क्योंकि काफी प्रोसेसिंग होता है, केमिकल्स जाता है। पैकेज मिल्क में प्रायः 90 प्रतिशत दूध जर्सी गाय का होता है। जर्सी गाय का प्रोटीन है ‘ह्‌यूमन’ के लिए नहीं है। वह दूध को विषैला बना देता है। वर्ष 2015-16 में हम खोज में निकले थे कि लोगों को अच्छा दूध कैसे दे सकते हैं। इस खोज में यह समझ में आया कि देसी गाय का दूध ही पौष्टिक है।

काठियावाड़ी नस्ल

देसी गौवंश की कई नस्लें हैं, जिनमें अधिकतर ख़त्‍म हो चुकी हैं। कुछ नस्ल ही बची हैं।

फिर हमने सोचा कि ऐसी कौन सी नस्लें हैं जो हम रख सकते हैं। तो हमने पाया कि काठियावाड़ी नस्ल है, जो नागपुर के माहौल और यहाँ के टैंपरेचर में ‘सुटेबल’ हैं।

नागपुर के आसपास कई काठियावाड़ी नस्ल हैं। गौपालक मिले, तो हमने काम आगे शुरू किया। इसी बीच सौभाग्य से श्री सुनील मानसिंगका जी से जुड़ने और उनसे सीखने का मौका मिला। उनके देवलापार गौशाला में जाकर हमने ट्रेनिंग ली।

गीर ही क्यों

हमारे विदर्भ का असली गौवंश गावलो है। धीरे-धीरे गावलो खत्‍म हो गई। अधिकतर गावलो ‘क्रास वेडिंग’ में चली गई। जिसके कारण इसकी शुद्ध नस्ल खत्‍म हो गई। गावलो खत्‍म को गई तो हम कैसे देसी गौवंश को यहां पर बढावा दें, इसी खोज में निकलें। नागपुर में तकरीबन 150 गौपालक हैं, जिसमें कि 90 प्रतिशत लोगों ने  जर्सी के साथ ‘क्रॉस वेडिंग’ कर दी है। कुछ भैंस भी रखने लगे हैं। कुछ 10 से 12 प्रतिशत ऐसे गौपालक हमें दिखे, जिनके पास शुद्ध ब्रीड था।  

ऐसे ही गौपालक हमें मिले – हरी भैया, लाखा भैया, शैलेष भाई और बिठ्‌ठल भाई। इन चारों गौपालक भाइयों के साथ मिलकर हमने 2018 में काम शुरू किया। उस समय उनके पास तकरीबन 400 शुद्ध देसी गीर गौवंश था। अब हमारे पास 800 से अधिक गौवंश हो गया है। हमारी पूरी कोशिश है कि शुद्ध देसी गीर गाय को कैसे बढ़ाएं, उसे कैसे बचायें और कैसे हम आगे उसकी और अच्छी वेडिंग करके नस्ल को सुधारें।  इसके लिए हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।

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‘गो वरदान’

गाय की पहचान कैसे होती है, देसी गाय क्या होती है, ये समझने के बाद 2018 में हमने ‘गो वरदान’ का रूपरेखा बनाई। 2019 में हमने ‘गो वरदान’ को लॉच किया। हालांकि ‘गो वरदान’ एक कमर्शियल वेंचर है, जिसमें हम गीर गाय का शुद्ध दूध कांच की बोतल में लोगों को पिलाते हैं। दूध से बिलौना वैदिक घी बनाते हैं, पनीर श्रीखंड बनाते हैं, लेकिन ‘गो वरदान’ का मुख्य उद्देश्य है देसी गौवंश को हम कैसे बचा सकते हैं और कैसे देसी गौवंश का बढ़ावा दे सकते हैं।

देसी गाय की पहचान

देसी गाय को पहचानना बहुत आसान है। इसके कंधे पर हम्प होता है। जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाएगी यह बढ़ता जाएगा। इस हम्प में सूर्यकेतु नाड़ी है जो सूर्य और चन्द्रमा की किरणों आब्जॉर्ब करता है। चारा पचाने के दौरान ये दूध में ओमेगा फैटी एसिड मल्टीविटामिन डेवलप करती है। जर्सी के कंधे पर ये हम्प नही होता है। उसका कंधा फ्‌लैट होता है और जर्सी के दूध में कोई ओमेगा फैटी एसिड और मल्टीविटामिन एसिड नहीं होता है। प्रोटीन दोनों दूध में है, लेकिन फ़र्क ये है कि जर्सी का प्रोटीन ‘ए वन’ होता है,  जो ह्‌यूमन लीवर ऑब्जेर्व नहीं करता। देसी गाय के दूध में ‘ए टू’ प्रोटीन होता है, जिसे अपना लीवर ऑब्जर्व कर लेता है।

ओमेगा फैटी एसिड, मल्टीविटामिन, ‘ए टू’ प्रोटीन का जो कॉबिनेशन है वो दूध को दवा का भी रूप दे सकता है और इस दूध से बनाये घी, मक्खन, दही आदि जितने भी प्रकार के पदार्थ हैं वो अपने आप में लाभदायक आहार और दवा के रूप में होते हैं।

गीर गाय की सींग पीछे की तरफ जाते हैं, कान लंबे होते हैं। गला मुलायम और लटकता हुआ होता है। इससे गाय को हर तापमान में ‘प्रोटक्शन’ मिलता है।  

Ayush Lohia 3

गाय को हम छोड़ते नहीं

गाय बूढ़ी हो जाती है तो लोग उसे छोड़ देते हैं। हमारे यहाँ तकरीबन 50 से ज़्यादा गौमाता ऐसी हैं जो बूढ़ी हो चुकी हैं और जिनका दूध ख़त्‍म हो गया है। जिनकी उम्र 20 साल से ज्यादा हो गई है वह भी हमारे साथ हैं। ऐसी भी गौमाता हमारे पास हैं, जो अपाहिज हो गई है, जिनका पांव ख़राब हो गया है। हमने विटनरी डॉक्टर को दिखाया लेकिन इसका कोई इलाज नहीं है। ऐसी गौमाता जो अभी तक गर्भवती नहीं हो पायी हैं और शायद कभी जिंदगी में दूध नहीं दे पायेंगी, वह भी हमारे पास पल रहीं हैं।

हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हमारी तरफ से गौवंश को कोई हानि न हो। चाहे वह दूध दे या न दे, क्योंकि वो हमारे नस्ल का गौवंश है। उसका रख-रखाव हमारी ही ज़िम्मेदारी है। हम एक भी गाय को बांधते नहीं हैं। एक दिन का जो बछडा होता है, उसको भी नहीं बांधते हैं। जैसे हम अपने को नहीं बांधते हैं, वैसे ही हमारा मानना है कि गौमाता को भी नहीं बांधा जा सकता है। तो इस प्रकार हम अपने गायों की सेवा और रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं।

  • आयुष लोहिया


https://youtu.be/gFogcLGEluU

गोबर उत्पाद के लिए सांचे घर में बनायें

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गोबर उत्पाद के लिए सांचे घर में बनायें – मूर्तिकार महेश बोकडे

जो गाय दूध नहीं देती या बूढ़ी हो गई है उसके गोबर का उपयोग करके हम कई तरह के उत्पाद बनाकर जीविका चला सकते हैं। इससे गोपालक आत्मनिर्भर रहेगा और गाय के साथ उसका परिवार भी ख़ुशहाल रहेगा।      

सांचा और गोबर उत्पाद बनाने के लिए हम प्रशिक्षण देते हैं। घर बैठे ही आप सांचे या मोल्ड बनाकर गोबर के उत्पाद बना सकते हैं। 

गाय के गोबर से देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, दिये, राखी, स्वास्तिक आदि किसी भी उत्पाद के लिए के सांचे बनाये हैं। इन सांचों से कोई भी व्यक्ति मूर्तियाँ बना सकता है। ये सांचे भी आप खुद अपने घर में बना सकते हैं।

फ़ाइबर का सांचा

फ़ाइबर का सांचा बनाने के लिए तीन चीजों की जरूरत होती है। रेज़िन, कोबाल्ट और हार्डनर। रेज़िन यानि राल गोंद जैसा हाइड्रोकार्बन द्रव्य होता है जो वृक्षों की छाल और लकड़ी से निकलता है। अन्य पेड़ों की तुलना में चीड़ जैसे कोणधारी (कॉनिफ़ॅरस) पेड़ों से रेज़िन अधिक मात्रा में निकलता है। रेज़िन का प्रयोग गोंद, लकड़ी की रोग़न (वार्निश), सुगंध और अगरबत्तियाँ बनाने के लिए सदियों से होता आया है।

कोबाल्ट एक रासायनिक तत्व है और हार्डनर टिकाऊपन बढ़ाने के लिए पेंट या वार्निश में जोड़ा जाने वाला पदार्थ है। हार्डनर कुछ विशिष्ट चिपकने वाले और सिंथेटिक रेज़िन का एक घटक है जो सेटिंग को मज़बूत करता है।

सबसे पहले रेज़िन और कोबाल्ट को मिलाना है। फिर उसमें हार्डनर मिलाना है।

50 प्रतिशत रेज़िन के साथ उसमें 5 प्रतिशत कोबाल्ट मिलाकर पीस लें। हार्डनर बाद में मिलाना है। इस तरह से आप जो उत्पाद बनाना चाहें उसके लिए फ़ाइबर के सांचे बना सकते हैं।  

रबर का सांचा

रबर सांचों से भी मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। हम आपको बताते हैं कि ये सांचे घर बैठे कैसे बना सकते हैं। हार्डवेयर की दुकान से आपको रबर का केमिकल मिल जाएगा। जो पानी जैसा आता है एकदम पतला। वह लाने बाद में इसे कागज़ की पैकिंग देनी है। इसके बाद इस पर मिट्‌टी और रबर के कोड चढ़ाना है। रबर का कोड चढ़ाने के लिए सबसे पहले लकड़ी पर कपास यानि रुई लगाइये, फिर उसे रबर के कैमिकल में डूबों दीजिये। अब इससे 10 से 15 कोड लगाइए। एक दिन में तीन कोड चढ़ाकर उसे सूखने देना है। इस तरह हर दिन तीन-तीन कोड चढ़ाकर सुखाने से से रबर मोल्ड बनाने में कम से कम चार दिन लग जायेंगे। पूरी तरह सूखने के बाद उसका कवर निकालना है। अब सांचा बनकर तैयार है। इस प्रकार से मूर्तियाँ, राखी, दिए आदि के सांचे बनाए जा सकते हैं।

गोबर उत्पाद बनाना

गोबर के उत्पाद बनाने के लिए सबसे पहले प्रीमिक्स तैयार करते हैं। प्रीमिक्स एक गोबर पाउडर है। प्रीमिक्स बनाने के लिए गोबर को सुखाकर छान लीजिए। छानने के बाद उसका फाइन पाउडर बनेगा। फिर उसमें ग्वार गम और मुल्तानी मिट्टी मिलाते हैं।

एक किलो गोबर पाउडर में 40 ग्राम ग्वार गम मिलाना है। सब्जी में इस्तेमाल होने वाले बीजों के पाउडर से ग्वार गम बनता है। ये फूड केमिकल्स की दुकान पर मिल जाएगा।

इसके बाद 300 ग्राम मुल्तानी मिट्‌टी मिला लें। फिर  इन तीनों को अच्छे से मिलाकर आटे की तरह गूंथ लें। इसके बाद इस प्रीमिक्स को सांचे के अंदर भर देना है।

प्रीमिक्स को भरने से पहले सांचे में ब्रश से खाने वाला तेल लगाना है, इसके बाद उसमें दबा-दबाकर प्रीमिक्स भर देना है। इसके बाद सांचे को खोल देना है। सांचा खोलते ही मूर्ति निकल आएगी। ध्यान रखिये कि प्रीमिक्स भरने के बाद सांचे को तुरंत खोलना है। इसके बाद मूर्ति को सुखाने के लिए रख दीजिये। मूर्ति सूखने में कम से कम पांच से छह दिन लग सकते हैं। उसके बाद मूर्ति को अपने मान मुताबिक पेंट कर सकते हैं।

पेंटिंग

मूर्तियाँ आदि उत्पादों को रंगने के लिए फ्लोसेंट कलर और गोंद का इस्तेमाल करते हैं। खाने के गोंद को अच्छे से गरम पानी में मिला दीजिये और फिर उसमें फ्लोसेंट कलर मिला दीजिये। फ्लोसेंट कलर पाउडर जैसे रहते हैं। ये किसी भी हार्डवेयर की दुकान पर मिल जायेंगे।  

50 ग्राम कलर पावडर में 10 ग्राम गोंद मिलाना है। उसमें थोड़ा पतला रखना है। उसके बाद ब्रश से कलर चढ़ाना है।

इस तरह आप गोबर से कई तरह के उत्पाद बनाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं।

  • मूर्तिकार महेश बोकड़े

गोमाता का क़त्ल रुकेगा, तभी आएगा स्वराज – शंकर गायकर

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गोमाता का क़त्ल रुकेगा

तभी आएगा स्वराज

मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं कि मेरे नाम में ही गाय है। मैं किसान  के घर में पैदा हुआ हूं, मेरे पिताजी किसान थे। गाय के साथ मेरा नाता मां के रूप में है।

बचपन में जब भी समय मिलता था मैं गाय चराने जाया करता था। तब पता चला कि गाय का मां से भी ऊंचा स्थान है।  

धीरे-धीरे मैं ‘स्वयं सेवक संघ’ के कार्य में जुटा। उसकी जिम्मेदारी निभाते-निभाते ‘विश्व हिंदू परिषद’ का दायित्व मेरे पास आया, तभी से मैंने गौरक्षा प्रारंभ की। जब मुझे पता चला कि कसाई बड़ी संख्या में गौवंश लेकर जाते हैं। उबलते पानी को उसके शरीर पर डाला जाता है और गौ माता तड़प – तड़प कर अपनी जान दे देती है। देवनार कत्लखाना में यह सब मैंने प्रत्यक्ष देखा है।

तब मुझे पता चला कि आज गौमाता बड़े पैमाने पर यातना सह रही है और जिस प्रकार से उसकी कटाई हो रही है उसको रोकना जरूरी है। एक तो यह विषय और दूसरा जिस धर्म में मैं जीता हूं, मेरे धर्म का प्रथम कर्तव्य है गौ मां की सुरक्षा। गौ मां हमारा मानबिदुं है, हिंदू समाज का मानबिंदू है। हिंदू समाज में जितने भी कार्य होते हैं गृह प्रवेश हो, शादी हो उसमें गौ माता की जरूरत पड़ती ही पड़ती है।

आपको बताना चाहूंगा कि जब मेरी मां की सात साल की उम्र में शादी हुई थी, तब उनके साथ में एक गाय को भेजा गया था। उस समय दुल्हन के साथ गौदान करने की परंपरा थी । यह प्रथा आज भी कई जगह है, लेकिन बड़े पैमाने पर यह परंपराअब लुप्त हो गई है।

गौरक्षा आंदोलन प्रारंभ करते हुए ‘विश्व हिंदू परिषद’ और ‘बजरंग दल’ के द्वारा हमने हूंकार भरी कि “गाय नहीं कटने देंगे, देश नहीं बंटने देंगे।“   

इसी आधार पर मुंबई में हमने बड़े पैमाने पर काम शुरू किया। देवनार के कत्लखाने में गाय काटे जाने को लेकर संघर्ष किया। कत्लखाने ले जाई जा रही गौ माता के हमने रोका और भिवंडी के गौशाला में भेज दिया।  

उस समय महाराष्ट्र में इस सम्बन्ध में कानून भी नहीं था और जो कानून था भी,  वह आधा-अधूरा था। कई बार पुलिस से हमको झगड़ा करना पड़ा। जेल जाना पड़ा। इसके साथ-साथ कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर समाज में गौ माता को लेकर श्रद्धा जगाने का भी काम किया। आखिरकार महाराष्ट्र में सरकार को कानून पास करना पड़ा। फिर वही कानून 2015 में संसद में पास होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद महाराष्ट्र में लागू हुआ है।

ये खुशी की बात है, लेकिन इतनी सी खुशी पर्याप्त नहीं है। आज भी हजारो-लाखों की संख्या में गौमाता का कत्‍ल किया जा रहा है।

आज लोगों के मन में गौमाता को लेकर उसके प्रति भाव और श्रद्धा कम होती जा रही है। उसका कारण है कि आज किसानों को जीने के लिए हर दिन जो अर्थ की व्यवस्था होनी चाहिये वह प्राप्त नहीं हो रही है।

विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से पूरे देश भर में हजार से ऊपर गौशालाएं हैं, लेकिन वह प्रर्याप्त नहीं है। आज भी गौमाता चित्‍कार रही है। देश में जब तक गौमाता की खून गिरता रहेगा, तब तक इस देश में ‘स्वराज’ की बात करना व्यर्थ है। स्वराज तब आयेगा जब गौमाता का कत्‍ल रुकेगा।

गौमाता का क़त्ल रोकने के लिए घर-घर जाकर ‘विश्व हिंदू परिषद’ और ‘बजरंग दल’ के माध्यम से गांव-गांव में चौकियां लगायी गई हैं। हमने एक नारा दिया है कि ‘हर गांव में एक गौपाल।‘ इस प्रकार की एक सुरक्षा व्यवस्था खड़ी करने में हम लगे हुए हैं।

अगर गौ माता को बचाना है तो किसानों को समृद्ध करना पड़ेगा। किसानों को शक्तिशाली करना पड़ेगा। इसके साथ-साथ गौमूत्र और गोबर के उत्‍पादन, पंचगव्य के उत्‍पादन, गोबर की लकड़ी बनाकर उसके द्वारा शवदहन इत्‍यादि करने से गौमाता समृद्ध होगी, किसान समृद्ध होगा। गौ उत्पाद हमें घर-घर, गांव-नगर में फैलाने पड़ेंगे,  तब जाकर गौमाता की हत्या बंद होगी और गौमाता का उत्थान हो पायेगा।

– शंकर गायकर

अपने राज्य की देसी नस्ल की गाय का सम्मान करें – गोपाल सुतारिया

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अपने राज्यों में जो भी देसी नस्ल की गाय है, वहां उसी नस्ल को सम्मानपूर्वक रखा जाना चाहिए।

अधिकतर लोगों का मानना है कि गीर गाय पालनी चाहिए, क्योंकि वो अधिक दूध देती है, लेकिन मेरा मानना है कि गाय की सेवा और उसकी देखरेख अच्छी होगी तो किसी भी नस्ल की देसी गाय हो, गीर से अधिक दूध दे सकती है।

एक गोपालक के पास देसी नस्ल की छोटी गाय थी। उन्होंने हमसे कहा हमें गीर गाय रखनी है, क्योंकि हमारी गाय छोटी है और डेढ़ लीटर दिन का दूध देती है। तब हमने कहा कि हमारे सिस्टम से गाय को खाना देकर देखो। उन्होंने ऐसा ही किया, तब एक ही साल में वही डेढ़ लीटर वाली दस डांगी गायों का दूध चार लीटर हो गया। खाना खाया गीर के सामने सिर्फ तीस टका।

पूरे गुजरात में गीर गाय के दूध का एवरेज आठ से दस लीटर है। वो डांगी गाय उससे भी आगे चली गईं।

हम किसी भी गौमाता को बांधते नहीं हैं। सभी गायों का अपनी मर्जी से खाना होता है। कब खाना है और कितना खाना है यह गौ माता ही तय करेगी। देसी गाय कभी भी ज्यादा नहीं खाती है। हर एक वाड़े में पानी पीने की व्यवस्था है। वो अपनी  मर्जी से पानी पीती हैं, चारा खाती हैं।

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हर मौसम में गौ माता के पानी पीने का समय अलग अलग होता है तो हम कैसे तय करेंगे कि किस समय उनको प्यास लगी है। ठंड में उनको अलग क्वांटीटी चाहिये, अलग समय पर पानी चाहिये, गर्मी में अलग चाहिये। इसीलिये उनके सामने चारा और पानी खुला रखा है। ये गौ माता को तय करना है कि कब खाना है और कब पीना है।

उसको चारा के साथ दाना कैसे लगेगा, अगर जिसका दूध बहुत अच्छा है उसके कैसे दाना देना पडेगा, उसके पाचन सिस्टम होता है, बैलेंस फूडस कैसे बनाना है, इन सभी विषयों पर सूक्ष्म अभ्यास करना चाहिये।

उसके पाचन प्रक्रिया को समझना है। गोबर देखकर किसान को पता चल जाना चाहिये कि उसका स्वास्थ कैसा है, उसका पाचन तंत्र कैसा चल रहा है।

हमारी बंसी गौशाला में हर गौमाता को उसके नाम से पुकारते हैं। दूध देने के लिए जिस गौमाता को बुलाते हैं वही गौ माता बाहर आती है। दस दिन  का बच्चा भी दूध पीने के लिए मां का नाम सुनकर बाहर आता है।

मैं सभी से यह कहना चाहता हूं कि आप अपनी माता को सम्मान पूर्वक रखना सीखें। और  गाय, कृषि तथा गौ आधारित भारत का पुनःनिर्माण करें।

गोपाल सुतारिया

(बंसी गौशाला)