- गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं, इसलिए गाय की पूजा करने से इन सभी की पूजा हो जाती है और 33 करोड़ देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है.
- गाय के खुरों के दर्शन करने से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है.
- गौ माता के खुर में ऐसी शक्ति होती है कि उसके नीचे की भूमि के सारे जहरीले तत्व नष्ट हो जाते हैं.
- गौ माता के पैरों की रज (धूल) को माथे पर लगाने से मनुष्य का औरा आठ से नौ गुना बढ़ जाता है.
- गाय के पैर चार धाम हैं, इसलिए गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन का लाभ प्राप्त होता है.
- गाय एकमात्र ऐसा जीव है जो आक्सीजन छोड़ती है. एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते हुए कंडे पर डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन बनती है, इसलिए हमारे यहां यज्ञ हवन अग्नि-होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता है. प्रदूषण को दूर करने का ये सर्वोत्तम साधन है.
- गौ माता की रीढ़ की हड्डी में सूर्य नाड़ी एवं केतुनाड़ी साथ हुआ करती है, गौमाता जब धूप में निकलती है तो सूर्य का प्रकाश गौमाता की रीढ़ की हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्वारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है जिसे स्वर्णक्षार कहते हैं. यह पदार्थ नीचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है. इसी कारण गाय का दूध हल्का पीला नज़र आता है. इसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है.
- घर से बाहर जाते हुए गौमाता के दर्शन होने से कार्य में निश्चित ही सफ़लता मिलती है.
- गाय के शरीर से सदैव गुग्गुल नामक सुगंधित तत्व निकलता है, जो पृथ्वी में पॉजीटिव एनर्जी देता है.
महत्त्व
गौ माता की महिमा
गौ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की धात्री होने के कारण कामधेनु है। गाय के अनिष्ट का चिन्तन ही विनाश का कारण है।
गाय को समस्त देवताओं कि जननी कहा गया है. ‘स्कन्द पुराण’ में त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश ने कामधेनु की स्तुति की है –
“त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।
त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।“
अर्थात् हे अनघे (गौमाता) ! तुम समस्त देवों की जननी तथा यज्ञ की कारणरूपा हो और समस्त तीर्थों की महातीर्थ हो, तुमको सदैव नमस्कार है।
गाय हिंदु धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है। इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है। पुराने समय से ही गौसेवा को धर्म के साथ ही जोड़ा गया है। गौसेवा भी धर्म का ही अंग है।
शास्त्रों के अनुसार गाय गाय में सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही सभी देव प्रसन्न हो जाते हैं। गोमूत्र में गंगाजी का और गोबर में लक्ष्मीजी का निवास है। इसीलिये सभी महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानो में गौ माता के गोबर का इस्तेमाल किया जाता है। गौ माता की एक आंख में सूर्यदेव और दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है। गौ माता के खुर्र में शेषनाग देवता का वास होता है । भवसागर से पार लगाने वाली गोमाता की सेवा करने पर गौकृपा से ही गोलोक की प्राप्ति होती है।
गौ के सम्बन्ध में ‘शतपथ ब्राह्मण’ में कहा गया है-
“गौ वह झरना है, जो अनन्त, असीम है, जो सैंकड़ों धाराओं वाला है।“
गोमाता को ‘वेदों’ में ‘अघ्न्या’ (अवध्या) बतलाया है। ‘ऋक्संहिता’ में कहा गया है –
“मा गामनागामदितिं वधिष्ट।“
अर्थात गाय निरपराधिनी है, निर्दोष है तथा पीड़ा पहुंचाने योग्य नहीं है और अखण्डनीय है। अत: गाय की किसी भी प्रकार हिंसा और उसे कैसा भी कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए।
शास्त्रों में गौ को ‘हविर्दुघा’ अर्थात हवि देने वाली कहा गया है। गोघृत देवताओं का परम हवि है और यज्ञ के लिए भूमि को जोतकर तैयार करने एवं गेहूं, चावल, जौ, तिल आदि हविष्यान्न पैदा करने का काम बैलों द्वारा किया जाता है। यज्ञभूमि को शुद्ध व परिष्कृत करने के लिए उस पर गोमूत्र छिड़का जाता है और गोबर से लीपा जाता है तथा गोबर के कंडों से ही यज्ञाग्नि प्रज्जवलित की जाती है। गोमय से लीपे जाने पर पृथ्वी पवित्र यज्ञभूमि बन जाती है और वहां से सारे भूत-प्रेत और अन्य तामसिक पदार्थ दूर हो जाते हैं।
यज्ञानुष्ठान से पूर्व प्रत्येक यजमान की देहशुद्धि के लिए पंचगव्य पीना होता है जो गाय के ही दूध, दही, घी, गोमूत्र व गोमय (गोबर) से तैयार होता है। जो पाप किसी प्रायश्चित से दूर नहीं होते, वे गोमूत्र के साथ अन्य चार गव्य पदार्थ (दूध, दही, घी, गोमय) से युक्त होकर पंचगव्य रूप में हमारे अस्थि, मन, प्राण और आत्मा में स्थित पाप समूहों को नष्ट कर देते हैं।
महाभारत में गौमाता का माहात्म्य, गौमाता के दैनिक जाप, प्रार्थना तथा प्रणाम के मन्त्र बताये गए हैं। महर्षि वसिष्ठ इक्ष्वाकुवंशी महाराजा सौदास से “गवोपनिषद्” (गौओं की महिमा के गूढ रहस्य को प्रकट करने वाली विद्या) का निरूपण महाभारत के अनुशासन पर्व में किया है –
“गावो ममाग्रतो नित्यं गाव: पृष्ठत एव च।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्।।“
अर्थात गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में रहूं।
महर्षि वसिष्ठ ने गौमाता की दैनिक प्रार्थना का मन्त्र बताया –
“सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥“
अर्थात सुन्दर और अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें।
महर्षि वसिष्ठ गोमाता को परमात्मा का साक्षात् विग्रह जान कर उनको प्रणाम करने का मन्त्र बताते हुए कहते हैं –
“यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥“
अर्थात जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
गौ माता अगर घर में आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है तो वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं । जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे, आनंदपूर्वक अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करे उस जगह ख़ुशियां निवास करती हैं। गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उस पर गौकृपा हो जाती है और कुछ ही दिनों में वो खुशहाल हो जाता है। गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है । ऐसे लोग सभी लोगो के प्रिय होते हैं ।
समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली ‘कामधेनु’ की महिमा अपार है। कामधेनु अर्थात गोमाता के पूजन और संरक्षण- संवर्धन से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मनुष्य अगर जीवन में गौमाता को स्थान देने का संकल्प कर ले तो वह हर संकट से बच सकता है। गौ माता सारे सुखों की भंडार है ।
गोकशी के ख़िलाफ़ क़ानून
गोकशी को रोकने के लिए समय – समय पर आवाज़ उठती रही है. आज़ादी के बाद 1966 में हिंदू ऑर्गनाइजेशन ने गोकशी को पूरी तरह बंद कराने का कानून बनाने की मांग पुरज़ोर तरीके से रखी. शंकराचार्य निरंजनदेव तीर्थ ने इसके लिए अनशन किया. साथ में स्वामी करपात्री और महात्मा रामचंद्र वीर भी थे. रामचंद्र वीर ने तो 166 दिन लंबा अनशन किया था. गोकशी के खिलाफ कानून बनाने की मांग लेकर 7 नवंबर, 1966 को संसद का घेराव किया गया. प्रचंड आंदोलन हुआ. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गोकशी पर बैन लगाने की मांग खारिज कर दी.
केंद्रीय क़ानून की मांग
समय-समय पर गोहत्या के खिलाफ मज़बूत कानून बनाने की मांग होती रही. बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी राज्यसभा में ‘गो-संरक्षण बिल-2017’ पेश कर चुके हैं. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत गोहत्या के ख़िलाफ़ देशभर में एक क़ानून बनाने की पुरज़ोर वकालत करते रहे हैं. फिलहाल गोहत्या के खिलाफ कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है. कई राज्यों ने अपने यहां इन कानूनों में समय-समय पर बदलाव किया है.
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश गोवध निवारण क़ानून, 1955 (Uttar Pradesh Prohibition of Cow Slaughter Act, 1955) में संशोधन के बाद उत्तर प्रदेश में गाय की हत्या पर 10 साल तक की सज़ा और तीन से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. गोवंश के अंग-भंग करने पर सात साल की जेल और तीन लाख तक जुर्माना हो सकता है. दूसरी बार गोकशी का आरोप साबित होने पर सज़ा दोगुनी हो जाएगी. क़ानून में ‘गैंगस्टर एक्ट’ के तहत कार्रवाई और संपत्ति ज़ब्त करने का भी प्रावधान है.
बिहार
बिहार संरक्षण और पशु सुधार अधिनियम, 1955 (Bihar Preservation and Improvement of Animals Act, 1955) के तहत बिहार में गाय और बछड़े का वध पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर गोवंश 15 साल या उससे अधिक की उम्र का है, उसे कोई बीमारी है, स्थाई रूप से काम करने या प्रजनन के लिए अक्षम हो गया है, तो उसके वध के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी होगी. अगर कोई कानून का उल्लंघन करता है, तो उसे छह महीने की सजा और एक हजार रुपये का जुर्माना देना होगा. बिहार से गायों, बछड़ों, बैल के निर्यात की अनुमति नहीं है.
गुजरात
गुजरात ने गोवंश की हत्या से जुड़े कानून में 2017 में बदलाव किया था. गुजरात पशु संरक्षण संशोधन विधेयक के लागू होने के बाद गोहत्या के दोषियों को उम्रक़ैद की सज़ा, न्यूनतम 10 साल की जेल हो सकती है. किसी के पास गोमांस मिलता है, तो उसे सात से 10 साल की सज़ा होगी. गोवंश के साथ पकड़े जाने पर जमानत नहीं होगी. गोमांस की हेराफेरी करते हुए पकड़े जाने पर सात से 10 साल तक की सज़ा और एक से पांच लाख तक का जुर्माना. गाय की तस्करी पर सख़्त पाबंदी. गोमांस ले जाते हुए जो वाहन पकड़े जाएंगे, वो वाहन हमेशा के लिए जब्त हो जाएंगे.
हरियाणा
हरियाणा ने अपने यहां गोहत्या से जुड़े कानून में 2015 में बदलाव किया था. हरियाणा गोवंश संरक्षण और गोसंवर्धन विधेयक-2015 के कानून बनने के बाद गोहत्या पर तीन से 10 साल की कैद और एक लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है. ये गैरजमानती अपराध है. गोकशी के लिये गाय ले जाने वाले को कम से कम तीन साल की कैद और तीन हजार रुपये जुर्माना, अधिकतम सात साल की कैद व 70 हजार रुपये जुर्माना हो सकता है. गोमांस बेचने वाले को कम से कम तीन साल की कैद व तीस हजार रुपये जुर्माना, अधिकतम पांच साल की कैद और 50 हजार रुपये जुर्माना.
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र ने 2015 में महाराष्ट्र जीव संरक्षण विधेयक, 1995 में बदलाव किया. इस कानून के मुताबिक गोहत्या अपराध है. गोमांस बेचने वाले और रखने वाले को पांच साल तक की जेल और दस हजार तक का जुर्माना हो सकता है. राज्य के भीतर या बाहर वध किए गए गोवंश का मांस रखना अपराध है, इसके लिए दंड देने का प्रावधान है.
राजस्थान
राजस्थान में गोवंश की हत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध है. कानून का उल्लंघन करने पर कम से कम एक साल और अधिक से अधिक दो साल की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा 10 हज़ार रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना
आंध्र प्रदेश गोहत्या और पशु संरक्षण अधिनियम, 1977 (Andhra Pradesh Prohibition of Cow Slaughter and Animal Preservation Act, 1977) के तहत गाय की हत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध है, लेकिन गोवंश, जैसे बैल या बछड़े के काटने पर सख्त प्रतिबंध नहीं है. आर्थिक तौर पर या प्रजनन के लिए उपयोगी न होने पर प्रशासनिक अनुमति के बाद उनका वध किया जा सकता है. कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए छह महीने की सजा और एक हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.
तेलंगाना में भी आंध्र प्रदेश की तरह ही कानून लागू है.
जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर में गोवंश की हत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध है. कानून का उल्लंघन करने पर 10 साल की सजा हो सकती है. गोवंश की कीमत का पांच गुना जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
झारखंड
झारखंड में गोवंश की हत्या और गोवंश का मांस कहीं लाने-ले जाने पर प्रतिबंध है. कानून का उल्लंघन करने पर कम से कम एक साल और अधिक से अधिक 10 साल की सजा का प्रावधान है.
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ कृषि पशु परिरक्षण अधिनियम-2004 (Chhattisgarh Agriculture Cattle Prevention Act, 2004) के मुताबिक गोवंश की हत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध है. कानून का उल्लंघन करने पर सात साल की सजा या फिर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है.
दिल्ली
दिल्ली में भी गोवंश की हत्या पूरी तरह प्रतिबंधित है. कानून का उल्लंघन करने पर कम से कम छह महीने और अधिकतम पांच साल की सजा का प्रावधान है. ऐसे मामले में कम से कम एक हज़ार और अधिकमत 10 हजार का जुर्माना हो सकता है.
ओडिशा.
ओडिशा में गाय की हत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध है. 14 साल से ज्यादा उम्र के सांढ़ और बैल को अथॉरिटी से सर्टिफिकेट मिलने के बाद मारा जा सकता है. कानून का उल्लंघन करने पर अधिकतम दो साल की सज़ा और एक हज़ार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.
कर्नाटक
कर्नाटक में गाय और बछिया की हत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंधित है. 12 साल से ज्यादा उम्र के बैल और सांढ़ को अगर अथॉरिटी बूचड़खाने के योग्य मानती है, तो उन्हें काटा जा सकता है. कानून का उल्लंघन करने पर छह महीने की सजा या एक हज़ार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है.
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में गोहत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध है. अगर बैल या सांढ़ की उम्र 15 साल से ज्यादा है और वो न तो खेती के योग्य है और न ही प्रजजन के, तो उसे मारा जा सकता है. कानून का उल्लंघन करने पर तीन साल की सजा और पांच हज़ार रुपये का जुर्माना हो सकता है.
उत्तराखंड
उत्तराखण्ड गो वंश संरक्षण अधिनियम, 2007 (The Uttarakhand Protection of Cow Progeny Act, 2007) के मुताबिक गोवंश की हत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध है. कानून का उल्लंघन करने पर कम से कम तीन साल और अधिक से अधिक 10 साल की सजा हो सकती है. 10 हजार रुपये का जुर्माना भी हो सकता है.
गोवा
गोवा पशु संरक्षण अधिनियम, 1995 (Goa Animal Preservation Act, 1995) के मुताबिक राज्य में गाय की हत्या पर प्रतिबंध है. अगर गाय को दर्द है, उसे कोई संक्रामक बीमारी है या फिर मेडिकल रिसर्च के लिए उसकी ज़रूरत है, तो उसे मारा जा सकता है. गाय का मांस बेचना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. बैल, सांड या फिर बछड़े को अगर अथॉरिटी मारने योग्य करार दे देती है, तो उसे मारा जा सकता है. कानून का उल्लंघन करने पर दो साल की सजा या एक हजार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों ही हो सकता है.
पुडुचेरी
पुडुचेरी में गोवंश की हत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध है. 15 साल से ज्यादा उम्र के बैल और सांढ़ को सर्टिफिकेट मिलने के बाद मारा जा सकता है. बीफ के बेचने या कहीं ले जाने पर पूरी तरह से रोक है. कानून का उल्लंघन करने पर दो साल की सजा और 1,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है.
असम और पश्चिम बंगाल में कानून के तहत उन पशुओं को काटा जा सकता है, जिन्हें ‘फिट फॉर स्लॉटर सर्टिफिकेट’ मिला हो. ऐसे पशुओं की उम्र 14 साल से ज़्यादा हो, या वो प्रजनन या काम करने के योग्य न हों.
अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में गोवंश की हत्या को लेकर कोई कानून नहीं है. मणिपुर में गोवंश की हत्या पर आंशिक तौर पर प्रतिबंध है.
विलुप्त होते चरागाह
गोवंश के सामने आज सबसे बड़ी समस्या चारे की है। गांवों में अब न पहले की तरह चरागाह हैं और न ही जलाशय। गोवंश का पेट भरने के लिए किसानों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। पहले जो चरागाह हुआ करते थे, अतिक्रमण के कारण वो धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। सरकारी नक्शों से गोचर भूमि तेजी से गायब हो रही है। चरागाह न होने के कारण गायें कूड़ा-करकट खाने पर विवश हैं।
प्रत्येक गांव में पशुओं के लिए चरागाह की ज़मीन सुरक्षित होती है, लेकिन अधिकतर चरागाहों पर दबंगों का क़ब्ज़ा है। जिसे मुक्त कराना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है।
चरागाहों का क्षेत्रफल कम होने के कारण पशुओं की उत्पादकता घटती है। जिन किसानों की जीविका पशुओं पर ही निर्भर है, उन्हें मजदूरी करने के लिए विवश होना पड़ता है। चरागाह खत्म होने से पर्यावरण पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। राज्य सरकारों को चरागाहों को मुक्त करने और उनके रखरखाव की ठोस योजना बनानी होगी, इसके लिए चरागाहों की नए सिरे से गिनती और हदबंदी कराई जानी चाहिए। चरागाह होने पर गोवंश की सुरक्षा और संवर्धन पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।