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गोसेवा को समर्पित जर्मनी की फ्रेडरिक इरिन ब्रुइनिंग

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कान्हा की नगरी मथुरा में जर्मनी की फ्रेडरिक इरिन ब्रुइनिंग उर्फ सुदेवी दासी अपना घर परिवार सब कुछ छोड़कर मथुरा में लगभग चालीस साल से बीमार गायों की सेवा कर रही हैं.

पद्मश्री से सम्मानित फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग 19 साल की उम्र में दुनिया भर के तमाम देशों की यात्रा पर निकलीं थीं और 1977 में भारत पहुंची. फिर यहीं की होकर रह गईं. किसी ने उन्हें गाय पालने की सलाह दी तो उन्होंने गाय पाल ली. धीरे-धीरे उन्हें गाय से लगाव हो गया. एक दिन उन्होंने सड़क किनारे एक बीमार गाय को तड़पते हुए देखा. गाय की हालत देखकर उन्होंने उसकी सेवा का निर्णय लिया. इसके बाद उन्होंने गोवर्धन के समीप कोन्हाई गाँव में ज़मीन किराये पर ली और ‘राधा सुरभि’ नाम से गोशाला की शुरुआत की. फ्रेडरिक इरिन ब्रुइनिंग का पूरा जीवन गौसेवा को समर्पित है. लोग उन्हें ‘सुदेवी’ के नाम से पुकारते हैं. 

उनकी गोशाला में करीब दो हज़ार गायें रहती हैं, जिनमें से अधिकांश अपाहिज, नेत्रहीन और गंभीर रूप से बीमार हैं. गायों की देखरेख और सेवा-सुश्रुषा वह अपने कुछ गो सेवकों के साथ करती हैं. गोशाला की अपनी एम्बुलेंस है, जो रोज़ बीमार गायों को लाती है. सुदेवी ने अपनी गोशाला में करीब 80 लोगों को काम दिया हुआ है. गोशाला की आय से उनके परिवार चलते हैं.     

गोमाता के दूध को सुदेवी अपने निजी कार्य में नहीं लेतीं। बछड़े से बचे हुए दूध को अन्य अनाथ बछड़ों को पिलाया जाता है। गोवंश की जिंदगी बचने की संभावना नगण्य प्रतीत होती हैं, तो सुदेवी गोवंश को गंगाजल, राधाकुंड का जल, भगवान का चरणामृत पिलाती हैं। समीप हरे कृष्ण- हरे राम की धुन बजती है। मृत्यु उपरांत गोवंश का विधि विधान से अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।

सुदेवी कहती हैं कि प्रत्येक गांव में गोबर खरीदने के सेंटर खोले चाहिए. जिससे आर्थिक स्थिति के कारण लोग गोवंश को दूध बंद होने पर छोड़े नही. इस गोबर की खाद बनाकर किसानों को दिया जाए. इससे न सिर्फ गोवंश का पालन होगा, बल्कि फसल भी स्वास्थ्य वर्धक मिलेगी.

गौ सेवा

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‘गौ सेवा’ से बढ़कर कोई सेवा नहीं है और गौ सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है. वैदिककाल से ही गाय को माता की तरह पूजा जाता रहा है. गाय की सेवा करने से समस्त पुण्य प्राप्त होते हैं. गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास है, अतः गाय की सेवा-पूजा करने से इन सभी देवी-देवताओं की कृपा स्वतः प्राप्त हो जाती है. बिन दुधारू, बूढ़ी, अपाहिज, असहाय गोवंश की निःस्वार्थ सेवा से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है.  

गो संरक्षण-पर्यावरण संरक्षण

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पृथ्वी पर ग्रीन कवर अर्थात हरित पट्टी के निरंतर विनाश को गोवंश के संरक्षण से रोका जा सकता है. गोवंश से प्राप्त गोबर की खाद और गौमूत्र के भूमि पर छिडकाव से पेड़-पौधे और वनस्पतियाँ हरी रहेंगी. किसानों की आमदनी बढ़ेगी, अरबों रुपये के डीजल के आयात पर रोक लगेगी. परिणामस्वरूप देश के लिए राजस्व की बचत होगी और पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी. 

गाय का गोबर और गोमूत्र हानिकारक रसायनों को अवशोषित करके लाखों लोगों की जान बचाएगा. 

एक गाय से 8 से 10 लीटर गोमूत्र और गोबर प्रतिदिन प्राप्त होता है. जिसमे पूरे देश की ग्रामीण आबादी को बायोगैस और बिजली प्रदान करने की क्षमता है. 

‘गोसंरक्षण पर्यावरण संरक्षण है.’ इसलिए गौरक्षा, गोपालन और गौसंवर्धन अत्यंत आवश्यक है. गाय का दिव्य सार वातावरण को 15-20 मीटर तक शुद्ध और स्वच्छ रखता है. पर्यावरण की शुद्धता के अलावा, यह मन की शांति और पवित्रता को बढ़ावा देता है और बुरे विचारों, बुरे स्पंदनों को रोकता है. गौमाता में व्यक्ति, परिवार, समाज और वैश्विक भाईचारे की भावना के वास्तविक अर्थ को सार्थक करने का वैज्ञानिक गुण है. गाय ऑक्सीजन का भी सर्वोत्तम स्रोत है.  इससे जीवन रक्षा के साथ – साथ प्रदूषण भी नियंत्रण में लाया जा सकता है. गाय के गोबर से सीमेंट, पेंट और ईंट बनाकर भी पर्यावरण नियंत्रण में योगदान किया जा सकता है.

पर्यावरण संरक्षण में गौवंश का योगदान

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सच्चा सुख-शांति और आरोग्य प्रदान करने वाली गौमाता का पर्यावरण संरक्षण में विशेष महत्व है.   

पर्यावरण संरक्षण का अर्थ है भूमि, जल, वन्य जीवन, जंगलों और हर जीव की सुरक्षा. इस संदर्भ में, भूमि, जल, वन्यजीवों, वनों और प्रत्येक जीवित प्राणी की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान गौमाता का है. इसीलिए गाय को “मातर :सर्वभूतानां गावः सर्व सुखप्रदाः” कहा जाता है.

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की चुनौतियों निरंतर बढ़ती जा रही हैं. आज पर्यावरणीय उपेक्षा के कारण ही पूरी दुनिया प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रही है. भूकंप, सुनामी, तूफान, सूखा, मौसम-चक्र, हिमखंडों का पिघलना, ओजोन परत में अंतराल, जंगलो में आग जैसी प्राकृतिक आपदाएं आम हो गई हैं. 

गो उत्पाद मधुमेह, हृदय रोग, लकवा, कैंसर, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं आदि को कम करने में मददगार है. इससे उत्तम आहार और स्वास्थ्य के लिए दवाओं पर ख़र्च हो रहे लाखों रुपये भी बचेंगे. परिणामस्वरूप रासायनिक दुष्प्रभाव बहुत कम हो जाएंगे, जो पर्यावरण की रक्षा में सहायक सिद्ध होगा.  

गोमाता के स्पर्श मात्र से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है. इसके उत्पाद सर्वश्रेष्ठ और अत्यंत लाभप्रद हैं. गाय के घी से जलाये गए दिए और हवन से एसीटिलिक एसिड, फॉर्मलाडिहाइड और कई ऐसी गैसों का उत्पादन होता हैं जो पर्यावरण को शुद्ध रखने में उपयोगी हैं, ओजोन परत की रक्षा होती हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को कम करते हैं।

गोमूत्र में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल, एंटीकैंसर गुण हैं. गोमूत्र का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है. यह अन्य रसायनों के हानिकारक और खतरनाक प्रभावों को कम करने के साथ-साथ दवाओं के उपयोग को कम करने में मदद करता है. गोमूत्र के छिड़काव से घर के आसपास का वातावरण स्वच्छ रहता है. गोमूत्र जैविक खाद्य पदार्थ के लिए कीटनाशक के रूप में उपयोगी है. इसके अलावा रासायनिक दवाओं के जहरीले प्रभाव से और मिट्टी की ताकत बढ़ाकर लाखों जीवों की जान बचाता है.

गाय के गोबर को जैव-उर्वरक के रूप में उपयोग करने से रासायनिक उर्वरक के घातक प्रभावों से बचा जा सकता है. कारखानों से प्रदूषण कम होगा, करोड़ों जीवन स्वस्थ रह सकेंगे और मिट्टी की नमी पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा.

गौ काष्ठ से पर्यावरण संरक्षण

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पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. पर्यावरण सुरक्षा के लिए पेड़ों को संरक्षित रखना अत्यंत आवश्यक है. पेड़ काटने से जल संकट, शुद्ध वायु और ऑक्सीजन का संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. हर साल लाखों पेड़ लकड़ियां पाने के लिए काट दिये जाते हैं. ऐसे में लकड़ी का विकल्प ही पेड़ों की कटाई पर अंकुश लगा सकता है. 

लकड़ी का विकल्प पाने के लिए गोवंश को बचाना होगा, क्योंकि गोवंश के गोबर से लकड़ियाँ बनाई जा सकती हैं. कई राज्यों में गोबर के इस्तेमाल से लकड़ियां बनाने का काम किया जाने लगा है. इसे और अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इससे पर्यावरण के साथ ही गायों का संरक्षण भी किया जा सकेगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

गाय के गोबर से हवन सामग्री से लेकर व्यक्ति के अंतिम संस्कार तक में प्रयोग की जाने वाली लकड़ियां बनाई जा सकती हैं. धार्मिक और सामाजिक क्रियाकलापों में गाय के गोबर से बनी लकड़ी का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है. लकड़ियों के लिए पेड़ों की कटाई रोकने का ये सबसे अच्छा विकल्प है.

गौ काष्ठ बनाने के लिए रोज़गार के अवसर खुलने पर लोग सड़कों पर आवारा घूमती, बिनदुधारू, बूढ़ी गाय को पालेंगे और गाय के गोबर को बेंचकर आर्थिक लाभ प्राप्त करेंगे.  

गौ काष्ठ ऊर्जा का सर्वोत्तम वैकल्पिक साधन है. 

गौ काष्ठ हस्थ चलित और विद्युत मशीन दोनों तरीके से तैयार की जा सकती है. 

गाय के गोबर में सूखा भूसा और घास मिलाकर मशीन से प्राकृतिक लकड़ी तैयार की जाती है. ये ईको-फ्रेंडली ईंधन बेहद सस्ता और प्रदूषण रहित है. ये घरेलू और औद्योगिक दोनों प्रकार की जरूरतों को पूरा करता है.  

गौ काष्ठ बनाने के लिए मशीन में गोबर का मिश्रण डाला जाता है जिसे 4 से 5 फिट लंबे लकड़ी के आकार में ढ़ाला जाता है. इसको 5 से 6 दिन तक सुखाया जाता है और गौ काष्ठ जलाने के लिये तैयार हो जाता है.  की लागत करीब 7/- रुपये प्रति किलो पड़ती है।

पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण गौ काष्ठ में, एक ओर जहां ईंधन के बेहतर विकल्प के रूप में उपयोग की अत्यधिक  संभावनाऐं विद्यमान हैं, वहीं गौ काष्ठ को स्थानीय बाजार में बेचने से कृषक और गौशालाओं को आर्थिक लाभ भी प्राप्त होगा. गो काष्ठ से पर्यावरण और पेड़-पौधे सुरक्षित रहेंगे, धुएं से निजात मिलेगा और प्रदूषण पर नियंत्रण होगा.

गाय के गोबर से पर्यावरण सुरक्षा

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पृथ्वी पर पर्यावरण सुरक्षा की एक विकट समस्या है. ग्लोबल वॉर्मिंग के गंभीर असर से संपूर्ण विश्व चिंतित है. शुद्ध वायु और ऑक्सीजन का संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, जो जीवन के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है. शुद्ध वायु प्राप्त करने के लिए पेड़ लगाना अत्यंत आवश्यक है। अधिक से अधिक पेड़ लगाने से जल संकट एवं दूषित वायु के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है. 

पर्यावरण की सुरक्षा में गोवंश की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इसलिए पर्यावरण को बचाने के लिए गौसंरक्षण  आवश्यक है.

पर्यावरण संरक्षण में गौवंश का 

भारतीय कृषि परंपरा में गौवंश का गोबर युगों से खाद के रुप में प्रयुक्त होता आया है. गौवंश से ‘बाय प्रोडक्ट’ के रुप में, बिना किसी खर्च के चौबीस घंटों में मिलने वाला गोबर कृषि भूमि को सर्वश्रेष्ठ पोषण प्रदान करता है. गाय के गोबर से बनी खाद का खेती में इस्तेमाल करने से प्रदूषण रहित और पर्यावरण को कोई हानि पहुँचाये बिना पौष्टिक व शुद्ध अनाज प्राप्त होता है.  

गौवंश की अंधाधूंध कत्ल के कारण गोबर की खाद की बेहद कमी हो गई है. विकल्प के रुप में किसान खेती के लिए रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास होता है. इस खाद से भूमि में गहराई तक जा कर उसके रसायन भूगर्भ जल को प्रदूषित करते हैं, खेत में बिखेरने पर वायु प्रदूषित होती है और उसके उपयोग से उत्पन्न अनाज भी प्रदूषित होता है, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. 

कारखानों में बनने वाले अत्यंत ज़हरीले कीट नाशक भयंकर प्रदूषण फैलाते हैं. उनके उत्पादन से जुड़े किसानो की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है. जब ये ज़हरीले कीट नाशक खेतों में अनाज सब्जियों और फलों पर छिड़के जाते हैं तब ये उनको प्रदूषित करते हैं और  जहरीले भी बनाते हैं.  छिटकाव क्रिया के दौरान वायू प्रदूषित होती है. 

गोबर का एक महत्वपूर्ण उपयोग ईंधन के रुप में है. गौवंश प्रतिदिन 12 से 15 किलो गोबर देता है. इस गोबर से कंडे बनाये जाते हैं. इन कंडो का उपयोग रसोई पकाने के लिए ईंधन के रुप में किया जाता है. मुफ़्त मिलने वाले इस ईंधन का उत्पादन सर्वथा प्रदूषण मुक्त है, जबकि पेट्रोलियम उत्पादों आधारित ईंधन-मिट्टी का तेल या रसोई-गैस के उत्पादन के साथ जुड़े प्रदूषण के बारे में सभी जानते हैं। गोबर के ईंधन से पैसों की बचत तो होती ही है, साथ ही प्रदूषण से मुक्ति मिलती है और पर्यावरण की भी सुरक्षा होती है।

गोबर का ईंधन के रुप में उपयोग करने से ईंधन के लिए काटे जाने वाले जंगल की रक्षा होती है. एक पशु के गोबर से बनने वाले कंडे, ईंधन के लिये काटे जाने वाले 6 वृक्षों को बचाते हैं. पर्यावरण सुरक्षा में गोवंश के सिर्फ़ गोबर का ही अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है. 

गाय से पर्यावरण संरक्षण

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गाय का गोबर और गौमूत्र पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत उपयोगी है। वेदों में कहा गया है कि वनों और कृषियोग्य भूमि की रक्षार्थ गायों को चरने के लिए खुला छोड़ा जाना चाहिए। देश में वनक्षेत्र काफी विस्तारित था, जो पर्यावरण और वर्षा को सुरक्षित और नियमित बनाए रखता था। साथ ही कृषिभूमि भी काफी उपजाऊ हुआ करती थी। दुर्भाग्यवश अंग्रेजों की नीतियों के कारण गायों का वनों में चरने जाना प्रतिबंधित कर दिया गया और गौमांस का व्यापार बढ़ाने के लिए कत्लखानों को प्रोत्साहन दिया जाने लगा। परिणाम स्वरुप आज देश का वनक्षेत्र कम होता जा रहा है और कृषि भी बर्बाद हो रही है। वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं कि वनों के संरक्षण में गायों का महत्वपूर्ण योगदान है। इस बात को प्रमाणित करने में एलन सेवरी का नाम उल्लेखनीय है।
गायों के वन में विचरने से गोचर और वन क्षेत्र हरे भरे रहते हैं, जिससे पर्यावरण का संरक्षण होता है। गाय का गोबर और गोमूत्र गाय के पैरों से मिट्टी में जब अच्छी तरह से मिल जाते हैं, तब ऐसी मिट्टी वर्षा के जल को समेट कर रखती है, बह कर जाने नहीं देती। जिस भूमि में गाय विचरण करती हों वह भूमि अपनी आर्द्रता बनाए रखती है और हरी भरी रहती है। ऐसे वन क्षेत्र मरुस्थल नहीं बनते।
इस प्रकार जितनी अधिक गाय भूमि पर घूम-घूम कर चरते हुए गोबर छोड़ेंगी, उतनी ही भूमि की वर्षा के जल को रोकने की क्षमता बढ़ती है। इसके साथ ही भूमि में कार्बन डाइऑक्साइड गैस को रोकने की क्षमता बढ़ती है जिसके परिणामस्वरूप ओजोन आच्छादन सुरक्षित होता है। 

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रकार गौओं की संख्या बढ़ा कर गोचरों में छोड़ने के साथ-साथ अन्य गैर पारम्परिक ऊर्जा के सौर ऊर्जा जैसे स्रोतों के उपयोग से विश्व में पर्यावरण की पूर्ण रूप से सुरक्षा सम्भव हो सकेगी। 

ऋग्वेद में बंजर भूमि को गायों द्वारा कृषि योग्य बनाने की बात कही गयी है।   

वनों में गायों के चरने से स्वास्थ्य लाभ भी होता है। 

गाय के बारे में कथन

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  • वेदों में कहा गया है-‘माता रूद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यनाममृत्स्य नाभि:, प्रश्नु वोचं चिकितुषे जनायमा गामनागादितिं वधिष्ट।‘ अर्थात् गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन और धृतरुप अमृत का खजाना है. गाय परोपकारी एवं वध न करने योग्य है.
  • कुरान शरीफ के अनुसार – ‘अकर्मुल बकर फाइनाहा सैयदूल बहाइसाँ’ अर्थात- गाय की इज्जत करो क्योंकि वह चौपायों का सरदार है. गाय का दूध, घी और मक्खन (शिफा) अमृत है. गोस्त बीमारियों का कारण ह.| (कुरान शरीफ़ पारा 14 रुकवा 7-15)
  • ईसाई धर्म के अनुसार – ईसा मसीह ने कहा है – ‘तू किसी को मत मार. तू मेरे समीप पवित्र मनुष्य बनकर रह. एक बैल या गाय को मारना एक मनुष्य के क़त्ल के समान है.’ (ईसाई हयाद 66-3)
  • सिक्ख धर्म के अनुसार – ‘यही देव आज्ञा तुर्क, गाहे खपाऊँ| गउ घात का दोष जग सिउ मिटाऊँ||’ यही गुरु आज्ञा है कि गाय की सेवा में जीवन बिताऊँ और गोवध के दोष को जग से मिटाऊँ. 
  • आर्य समाज के अनुसार – महर्षि दयानद सरस्वती ने कहा है ‘गाय अपने पूरे जीवन काल में 20 हज़ार लोगों को अमृत तुल्य दूध से तृप्ति प्रदान कर सकती है.’
  • बौद्ध धर्म के अनुसार – जैसे माता-पिता, भाई कुटुंब के परिवार के लोग हैं, वैसे ही गायें भी हमारी परम मित्र हैं, परम हितकारिणी हैं, जिसके गव्य से दवा बनती है.
  • जैन आगमों में कामधेनु को स्वर्ग की गाय कहा गया है और प्राणिमात्र को अवध्या माना है. भगवान महावीर के अनुसार गौ रक्षा बिना मानव रक्षा संभव नहीं. 
  • गोस्वामी तुलसीदासजी रामचरितमानस में लिखते हैं- ‘विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार, निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।’
  • महात्मा गाँधी ने भी कहा है – ‘गोवंश की रक्षा ईश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है. भारत की सुख- समृद्धि गाय के साथ जुड़ी हुई है. गाय प्रसन्नता और उन्नति की जननी है, 
  • पं. मदनमोहन मालवीय के मतानुसार- ‘गौ वंश की रक्षा में देश की रक्षा समायी हुई है. यदि हम गायों की रक्षा करेंगे तो गाएं हमारी रक्षा करेंगी। उनकी अंतिम इच्छा थी कि भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने।
  • बाल गंगाधर तिलक ने कहा है. ‘चाहे मुझे मार डालो, पर गाय पर हाथ न उठाओ’. 
  • प्रसिद्ध मुस्लिम संतकवि रसखान कहते हैं – ‘जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥‘
  • महर्षि अरविंद ने कहा ‘गौ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है. इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव का कारण है.

मंत्र

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अथर्ववेद – ‘गावो भगो गाव इन्द्रो मे’ अर्थात गायें ही भाग्य और गायें ही मेरा ऐश्वर्य हैं.

अथर्ववेद – ‘भद्रम गृहं कृणुभ भद्रवाचो ब्रहद्वो वय उच्यते सभासु’ अर्थात मधुर बोली वाली गायें घर को कल्याणमय बना देती हैं. 

ऋग्वेद – ‘स्व आ दमे सुदुधा पस्य धेनु:’ अर्थात अपने घर में ही उत्तम दूध देने वाली गौ हो.

ऋग्वेद – ‘गाय का नाम दिति वधिष्ट’ अर्थात अघ्न्या गाय को कभी मत मार। 

अथर्ववेद – ‘गाव सन्तु प्रजा: सन्तु अथाअस्तु तनूबलम्’ अर्थात घर में गायें हों, बच्चे हों और शरीर में बल हो, ऐसी प्रार्थना की गयी है।

शतपथ ब्राह्मण – ‘सहस्रो वा एष शतधार उत्स यदगौ:’ अर्थात भूमि पर टिकी हुई जितनी जीवन संबंधी कल्पनाएं हैं उनमें सबसे अधिक सुंदर सत्य, सरस, और उपयोगी यह गौ है. 

गौ माता के शरीर में विभिन्न देवों की स्थिति

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गौमाता के देह में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है. वेदों के साथ ही वृहत्पाराशर स्मृति, पद्म पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, स्कन्द पुराण और महाभारत में भी गौ माता के शरीर में विभिन्न देवों की स्थिति का वर्णन विस्तार से उपलब्ध है. 

यहाँ हम भविष्य पुराण के उत्तर पर्व (69/25-37) में वर्णित मन्त्रों की चर्चा कर रहे हैं – 

शृगमूले गवां नित्यं ब्रह्मा विष्णुश्च संस्थितौ।

शृगाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावराणि चराणि च ।।25।।

गौओं के सींग के मूल में सदा ब्रहमा और विष्णु प्रतिष्ठित हैं। अग्रभाग में चराचर समस्त तीर्थ स्थित हैं।

शिवो मध्ये महादेवः सर्वकारणकारणम्।

ललाटे संस्थिता गौरी नासावंशे च षण्मुखः।।26।।

सभी कारणों के कारण महादेव शिव सींगों के मध्य में, ललाट में गौरी तथा नासिकास्थि में भगवान कार्तिकेय स्थित हैं।

कम्बलाश्वतरौ नागौ नासापुटसमाश्रितौं।

कर्णयोऽश्विनौ देवौ चक्षुम्र्यां शशिभास्करौ।।27।।

नासिका छिद्रों में कम्बल व अश्वतर नाग, कानों में अश्विनी देव व आँखों में चन्द्र व सूर्य स्थित हैं।

दन्तेषु वसवः सर्वे जिह्वायां वरूणः स्थितः।

सरस्वती च कुहरे यमयक्षौ च गण्डयोः।।28।।

गौ के दांतों में आठों वसु, जीभ में वरूण, कण्ठ में माता सरस्वती व गण्डस्थलों में यमराज व यक्षगण स्थित हैं।

सन्ध्याद्वयं तथोष्ठाभ्यां ग्रीवायां च पुरन्दरः।

रक्षांसि ककुदे द्यौश्च पाष्र्णिकाये व्यवास्थिता।।29।।

दोनां होंठों में दोनों सन्ध्यादेवियाँ ग्रीवा में इन्द्र ककुद में राक्षस, पाष्र्णि भाग में आकाश व्यवस्थित है।

चतुष्पात्सकलो धर्मों नित्यं जंघासु तिष्ठति।

खुरमध्येषु गन्धर्वाः खुराग्रेषु च पलगाः।।30।।

चारों चरणों से युक्त धर्म जंघाओं में, खुरों में गन्धर्वदेवगण, खुरों के अग्रभाग में सर्प निवास करते हैं।

खुराणां पश्चिमे भागे राक्षसाः सम्प्रतिष्ठिताः।

रूद्रा एकादश पृष्ठे वरूणः सर्वसन्धिषु।।31।।

खुरों के पश्चिमी भाग में राक्षसगण, पीठ में ग्यारह रूद्र तथा सभी जोडों में वरूण देव प्रतिष्ठित हैं।

श्रोणीतटस्थाः पितरः कपोलेषु च मानवाः।

श्रीरपाने गवां नित्यं स्वाहालंकार माश्रिताः।।32।।

गौ की कमर में पितरगण, कपोलों में मानव, अपानभाग में स्वाहा देवी के साथ अलंकार रूप में लक्ष्मी जी आश्रित हैं।

आदित्या रश्मयो बालाः पिण्डीभूता व्यवस्थिताः।

साक्षाद्गंगा च गोमूत्रे गोमये यमुना स्थिता।।33।।

सूर्य किरणें केश समूहों में पिण्डीरूप में, गौ के मूत्र मेें साक्षात गंगा व गोबर में यमुना जी व्यवस्थित हैं।

चयस्त्रिंशद् देवकोट्यो रोमकूपे व्यवस्थिताः।

उदरे पृथिवीं सर्वा सशैलवन काननाः।।34।।

सभी रोमकूपों में तैंतीस कोटि देवता, पेट में पर्वतों व वनों से सुशोभित पूरी पृथ्वी व्यवस्थित हैं।

चत्वारः सागराः प्रोक्ता गवां ये तु पयोधराः।

पर्जन्यः क्षीरधारासु मेघा विन्दु व्यवास्थिताः।।35।।

चारों पयोधरों में चार महासागर, दूध की धारा में पर्जन्यदेव तथा दुग्ध बिन्दुओं में मेघ नामक देवता व्यवस्थित हैं।

जठरे गार्हपत्योग्निर्दक्षिणाग्नि हृदि स्थितः।

कण्ठे आहवनीयोऽग्निः सम्योऽग्निस्तालुनि स्थितः।।36।।

गौ की जठराग्नि में गाहिपत्याग्नि, हृदय में दक्षिणाग्नि, कष्ठ में आहवनीय अग्नि और तालु में सम्याग्नि स्थित हैं।

अस्थिव्यवस्थिताः शैला मज्जासु क्रतवः स्थिताः।

ऋग्वेदोऽथर्ववेदश्च सामवेदो यजुस्तथा।।30।।

गौ की अस्थियों में पर्वत, मज्जओं में यज्ञ देव तथा चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद) भी प्रतिष्ठित हैं।