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खुशहाल जीने की राह जैविक कृषि

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भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है. बढ़ती हुई जनसंख्या और आय की दृष्टि से उत्पादन बढाने के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको तथा कीटनाशक का उपयोग किया जाने लगा है. इससे छोटे किसानों के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लगती है. 

जल, भूमि, वायु और वातावरण प्रदूषित हो रहा है खाद्य पदार्थ भी ज़हरीले हो रहे हैं. इन सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है जैविक कृषि. 

जैविक कृषि से फसल और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता और अधिक पैदावार भी मिलती है.

जैविक कृषि से भूमि की उपजाऊ क्षमता बढती है. सिंचाई अंतराल में वृद्धि होने से वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक कृषि की विधि और भी अधिक लाभदायक है. 

रासायनिक खाद पर निर्भरता न होने से लागत में कमी आती है, फसलों की उत्पादकता बढती है और बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है.

अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं, जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा किसान और अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं. 

आधुनिक समय में निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शकि्त का क्षरण और मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक कृषि अत्यन्त लाभदायक है. 

मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए नितान्त आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हों, शुद्ध वातावरण रहे और पौषि्टक आहार मिलता रहे. इसके लिये जैविक खेती की कृषि पद्धतियाँ को अपनाना होगा जो कि हमारे नैसर्गिक संसाधनों एवं मानवीय पर्यावरण को प्रदूषित किये बगैर समस्त जनमानस को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकेगी तथा हमें खुशहाल जीने की राह दिखा सकेगी.

जैविक कृषि

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जैविक कृषि

‘जैविक कृषि’ ऐसी प्रणाली से है, जिसमें रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग नहीं होता है, बल्कि उसके स्थान पर जैविक खाद या प्राकृतिक खादों का प्रयोग किया जाता है। अधिक-से-अधिक उत्पादन के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों, ज़हरीले कीटनाशकों के उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति ख़राब हो जाती है। साथ ही, वातावरण दूषित होने से मनुष्य के स्वास्थ्य में भी गिरावट आती है। 

जैविक कृषि से भूमि की उर्वरता में सुधार होने के साथ ही पर्यावरण प्रदूषण भी कम होता है। जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन लागत कम होती है और आय अधिक प्राप्त होती है।

जैविक कृषि में गो वंश की अत्यंत महत्ता है। गोमूत्र और गाय के गोबर से सस्ती तथा सर्वश्रेष्ठ खाद बनाई जाती है।

गोमूत्र और गोबर से बनी खाद जमीन की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखती है। गोमूत्र और गोबर की खाद से पैदा होने वाली सब्ज़ियां और फ़सल रासायनिक खाद के मुकाबले स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। इसका इस्तेमाल करने से मनुष्य कीटनाशक के ज़हर से बच जाते हैं। कृषि वैज्ञानिक भी मानते हैं कि रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से नष्ट हुई ज़मीन की उपजाऊ शक्ति का एकमात्र विकल्प गोबर और गोमूत्र की खाद है।

गोमूत्र और गोबर से बनी खाद प्रदूषण रहित और सस्ती है, इसके लिए किसान को परावलंबी नहीं रहना पड़ता| 

किसानों को जैविक कृषि के लाभों से अवगत कराकर इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिये और उन्हें भविष्य में इसमें व्याप्त संभावनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।

पर्यावरण संबंधी लाभ के साथ-साथ स्वच्छ, स्वस्थ, गैर-रासायनिक उपज किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये लाभदायक है। जैविक कृषि भारतीय कृषि क्षेत्र के विकास के लिये काफी अधिक महत्त्वपूर्ण है।

गौशाला से गौ सेवकों तक पहुंचने लगी गायें

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गौ माता की सेवा हमारे देश के समाज के संस्कार का माध्यम

किसी भी देश के समाज की पहचान उसकी संस्कृति से होती है और संस्कृति बनती है संस्कारों से। भारत की सनातन संस्कृति में गौ माता की सेवा हमारे देश के समाज के संस्कार का माध्यम थी जिसमें हम प्रेम, स्नेह और समर्पण का संस्कार ग्रहण करते थे।

एकल अभियान की गौ ग्राम योजना के उद्घाटन अवसर पर 22 नवम्बर गोपाष्टमी को गोवर्धन तीर्थ क्षेत्र में दीदीमां साध्वी ऋतम्भरा के बताये गए इस संस्कार का असर का अब देश के कई हिस्सों में दिखने लगा है। अब समाज में यह भावना जोर पकड़ने लगी है कि गाय बिकेगी नहीं तो कटेगी नहीं। 

गाय भारतीय संस्कृति का मूलाधार है। 33 कोटि देवताओं का वास अपने भीतर रखने वाली गौ माता की पीड़ा को योजनाबद्ध तरीके से दूर करने के लिए ‘श्री हरी सत्संग समिति’ द्वारा संचालित एकल अभियान ने गौ ग्राम योजना बनाई है। इस गौ ग्राम योजना के प्रथम चरण की शुरुआत अप्रैल 2021 से झारखंड राज्य से की जाएगी। वनवासी बहुल 8 हजार गावों के 8 लाख परिवारों को 8 लाख गायें दी जाएंगी। दूध ना देने वाले गौवंश को पालने वाले गौ पालक को गौ उत्पाद निर्माण का प्रशिक्षण शुरुआत में एकल अभियान द्वारा संचालित एकल विद्यालय में दिया जाएगा। गौ ग्राम योजना से असंख्य गौशालाओं पर खर्च होने वाली राशि बचेगी।

गौ ग्राम योजना में सहयोग करने के लिए दिल्ली, कलकत्ता, मुंबई, नागपुर, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उड़ीसा आदि में कार्यरत गौ प्रेमी संस्थाएं आगे आई हैं। इन सभी शहरों और राज्यों में गौ पालकों को गौ उत्पाद निर्माण का विधिवत प्रशिक्षण देने की सुविधा उपलब्ध है और गौशाला की बिन दुधारू गायें दत्तक ग्रहण कर किसानों व गौ पालकों को दी जाने लगी हैं।एकल गौ ग्राम योजना के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुनील मानसिंहका ने बताया कि देशभर में गौ विज्ञान अनुसंधान केंद्र, गायत्री परिवार, आर्ट ऑफ़ लिविंग, वनवासी कल्याण आश्रम, सूर्या फाउंडेशन, इस्कॉन आदि संस्थाओं के सहयोग से इस योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।  प्रशिक्षण के दौरान गौ पालक, वनवासी और किसानों को गौ आधारित कृषि, गौ आधारित ऊर्जा, गौ आधारित मानव चिकित्सा, गौ एवं कृषि आधारित ग्रोमोद्योग, गौसंवर्धन एवं नस्ल सुधार का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

किसानों की अर्थव्यवस्था सुधारेंगी गौ माता

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भारत मे एक भी गाय की हत्या नहीं होगी

ग्रामीण भारत और किसानों की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से श्री हरि सत्संग समिति ने एकल अभियान के अंतर्गत गायों के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौ ग्राम योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत चयनित गाँवों के किसानों को निःशुल्क गौवंश उपलब्ध कराए जाएंगे साथ ही किसानों को गोबर और गौमूत्र से जैविक और अन्य उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। किसानों के बनाये जैविक उत्पादों को एकल अभियान उचित मूल्य पर क्रय भी करेगा। इससे किसानों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी।

एकल अभियान द्वारा गौ ग्राम योजना की औपचारिक शुरुआत विगत 22 नवंबर 2020 को गोपाष्टमी पर्व के दिन बृंदावन के गोवर्धन धाम पर की गई। कार्यक्रम का उद्घाटन साध्वी ऋतंभरा दीदी तथा महामंडलेश्वर मोहनीदास ने संयुक्त रूप से की।

गोवर्धन धाम स्थित सुर श्याम गौशाला में आयोजित इस भव्य उद्घाटन कार्यक्रम का शुभारंभ गोवर्धन परिक्रमा तथा गिरिराज मंदिर में पूजा अर्चना से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुषमा अग्रवाल ने की तथा मुख्य अतिथि तरुण शर्मा थे।

इस अवसर पर एकल अभियान के संस्थापक अध्यक्ष श्याम गुप्ता ने योजना की रूपरेखा के बारे के विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि आदि काल से ही भारतीय संस्कृति के केंद्र में हमारी गौमाता रही हैं। हमारी अर्थव्यवस्था भी गौ वंश पर आधारित थी। वर्तमान में भारत गौ मांस निर्यात का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। हमारा लक्ष्य गौ वंश को बचाना है सतज ही किसानों की अर्थव्यवस्था को गौ वंश के मध्यम से बढ़ाना भी है। किसानों के बीच गाय वितरित करने कार्य आगामी मार्च 2021 से किया जाएगा। श्री गुप्ता ने बताया कि प्रथम चरण में झारखं के 10 तथा पश्चिम बंगाल के 6 प्रखंडों से इसकी शुरुआत की जाएगी जिसका चयन पूर्व में ही हो चुका है। सभी चयनित प्रखंडों के 8 हजार किसानों को गौवंश दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस योजना से देश भर के गौशालाओं पर होने वाले करोड़ों रुपये की भी बचत होगी।

भारत मे एक भी गाय की हत्या नहीं होगी

श्याम गुप्त ने कहा कि देश मे ऐसी परिस्थिति का निर्माण करने की योजना है जिससे अगले तीन चार वर्षों में भारत मे एक भी गाय की हत्या नहीं होगी। साथ ही आवारा घूम रहे गौवंश भी दिखाई नहीं देंगे। इस योजना से किसानों की फसलों को होने वाले नुकसान से भी निजात मिलेगी।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि एकल अभियान के इस पुनीत कार्य को मैं प्रणाम करती हूं। यह एक तप है और जीवन में तप किये बिना कुछ भी संभव नहीं है। गौ माता और धरती माता को पीड़ा से मुक्त कराने के लिए हमें तप से गुजरना पड़ेगा। साध्वी ने कहा कि हमने ऐसे भारत की परिकल्पना नहीं की थी जहाँ गौ माता की इतनी दुर्दशा हो, इसी का परिणाम है कि आज भारत की सनातन संस्कृति का लोप हो रहा है।इसे हमे वापस लाना है और इसकी शुरुआत एकल अभियान ने कर दी है। गौ सेवा द्वारा संस्कार देने के संकल्प के रूप में प्रत्येक ग्रामीण परिवार में गौ वंश को पहुँचाकर उसकी सेवा के द्वारा पुनः सनातन संस्कृति का प्रादुर्भाव करेंगे और इस देश को महान बनाएंगे।

इस अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी मोहनीशरण  दास जी ने कहा कि 33 कोटि देवताओं को अपने शरीर मे धारण करने वाली गौ माता की पीड़ा को योजनाबद्ध तरीके से दूर करने के लिए एकल अभियान ने गौ ग्राम योजना का आरम्भ किया है। इस योजना को ग्रामवासी और नगरवासी दोनों हाथ मिलाकर सफल बनाएंगे।

इस योजना से एक तरफ जहां गौवंश की रक्षा होगी वहीं दूसरी तरफ गाँव के लोग भी आत्मनिर्भर बनेमगे। गौ वंश से दूध के अलावा उसके गोबर और गौमूत्र से भी आमदनी होगी। गौ सेवकों को गौमूत्र से कीटनाशक और गोबर से अन्य उत्पाद जैसे दीपक अगरबत्ती जैविक खाद आदि बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।

कार्यक्रम में लायी गयी गायों का विधिवत पूजन कर उन्हें गौ सेवक परिवारों को सौंप दिया गया।

एकल श्रीहरि की गौ-ग्राम योजना

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भारतीय संस्कृति और जीवन का आधार

गौमाता की रक्षा हमारा परम कर्तव्य

// सुरभि देवी नमोस्तुते //

प्रेरणा – हमारी गौमाता 

भारतीय गाय सृष्टि के क्रमिक विकास का परिणाम नहीं है, यह समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में से एक है। शास्त्रोक्त वचन है- पृथ्वी पर गाय श्रीलक्ष्मी का स्वरूप है। इसके रोम-रोम में देवताओं का वास है। भारतीय वाङ्ग्‌मय का यह कथन आज दुनिया भर के विकसित देशों में भारतीय नस्ल की गाय पालन के रूप में चरितार्थ हो रहा है।

उद्देश्‍य – गौरक्षा से संस्कृति रक्षा 

गाय का घर गौशाला नहीं किसान का घर है। गाय को किसान की उन्नति का स्रोत बनाना है। गाय बिकेगी नहीं तो कटेगी नहीं। गायों का अवैध व्यापार न हो, इसके लिए किसानों को गौ-पालन के लिए प्रेरित करना होगा।

आह्वान – गौमाता की सेवा, धर्म की सेवा 

गौमाता की सेवा संस्कृति, धर्म और समाज की सेवा है। गौ-सेवा के अभियान में आप आहूत हैं अपने योगदान के लिए। 

आपका सहयोग गौसेवा का आधार 

योजनाएं :

गौ-ग्राम योजना : (गौ- सेवक परिवार)

ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले वे परिवार, जो गौशाला से वापस आयी हुई गाय का पालन कर सकें और उनसे अपनी आर्थिक उन्नति कर सकें ।

गायों की घर वापसी : (गौ-रक्षक परिवार)

शहरी क्षेत्र में निवास कर रहे ऐसे धर्म-निष्ठ परिवार, जो किसान को दी गयी गाय का एक वर्ष के भोजन और अन्य खर्च का वहन करें। नगरों में संचालित गौशालाओं से गायों को किसानों के घर पहुँचाने का कार्यक्रम।

गौशालाओं की जिम्मेदारी 

नगरों में संचालित गौ-शाला से देशी नस्ल की गाय ही किसानों को दी जायेंगी। गाय को किसान के घर भेजने का खर्च गौशाला प्रबंधन समिति ही करेगी। राष्‍ट्रीय पशु गणना में दर्ज गाय ही किसान को दी जाएगी। गौ-सेवा आयोग से औपचारिक कागजी कार्यवाही पूरी करनी होगी। 

संचालन 

श्री हरि सत्संग समिति के कथाकार योजना के कार्यकर्ताओं द्वारा। व्यास कथाकारों को पूर्व के कथा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में गौ-विज्ञान और गौ- महिमा के विषय भी जोड़े जाएंगे। प्रशिक्षण प्राप्त व्यास कथाकार गाँवों में गाय के प्रति धार्मिक भावना जगाकर किसानों को गौ-पालन के लिए प्रेरित करेंगे।

एक गाय पर होने वाले एक वर्ष का खर्च 25,000 रुपये दान स्वरूप प्रार्थनीय है

Account number : 39889455914

A/c Name : Shri Hari Satsang Samiti Mumbai Gau-Gram yojna 

Name of bank : State Bank of India

Type of A/c : Saving Account 

RTGS / IFSC Code : SBIN0018708

Pan No. : AAGTS5745Q

Regd. Mob. : 9820023374, 9322274093

आपके द्बारा संस्था को दिया गया अंशदान आयकर अधिनियम की धारा 80 G के अंतर्गत कर मुक्त है

नोट- जब भी आप पेमेंट करें, पेमेंट का स्क्रीन शॉट, आपका नाम, फोन नं., पता व PAN No. व्हाट्एप द्बारा मो. नं. 9820023374, 9322274093 और 8692950050 पर भेजें ताकि हम आपको रसीद भेज सकें।

मंशापूर्ण गोसेवा समिति

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मध्य प्रदेश के भिंड शहर के गोसेवकों ने ‘मंशापूर्ण गोसेवा समिति’ का गठन कर गायों की सेवा करने का संकल्प लिया है. उनके द्वारा शहर में घूम रहीं आवारा गायों की सेवा की जा रही है.

गोसेवक प्रतिदिन गायों को बाज़ार से हरा चारा खरीदकर खिला रहे हैं. 

समिति द्वारा दुर्घटनाग्रस्त गाय का उपचार भी किया जाता है. इस काम में पशु अस्पताल के कर्मचारी भी काफी सहयोग देते हैं. 

‘मंशापूर्ण गौसेवा सेवा समिति’ धार्मिक अवसरों पर गायों का पूजन भी करती है. 

हरियाणा नस्ल की गायों के विकास में यत्नशील जीतू रिवोल्यूशनरी फ़ार्मर

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जीतू रिवोल्यूशनरी फ़ार्मर (यदुवंशी गौशाला) हरियाणा नस्ल की गायों के संरक्षण-संवर्धन और विकास में निरंतर प्रयत्नशील है. जीतू द्वारा संचालित यदुवंशी गौशाला में हरियाणा नस्ल की विभिन्न श्रेणियों की गायों का संरक्षण और प्रजनन होता है. गौशाला की ओर से गोचर की विशेष व्यवस्था की गई है, जहाँ गायें स्वतंत्र होकर विचरण करती हैं. श्रेष्ठ क्रियात्मक ऊर्जा होने के कारण हरियाणा नस्ल की गाय के पंचगव्यों का अपना एक अलग महत्व है. आर्थराइटिस  और सर्वाइकल जैसी बीमारियों में पंचगव्य अमृततुल्य है. मंदबुद्धि बच्चों के लिए भी पंचगव्यों से चमत्कारी परिणाम मिले हैं. 6 फ़ीट की दीवार लांग पाने की अद्भुत क्षमता वाली हरियाणा नस्ल की गाय के संरक्षण-संवर्धन और विकास की दिशा में यदुवंशी गौशाला का प्रयास सराहनीय है.

सलमा की गौशाला: साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल

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लुधियाना (पंजाब) के पायल कस्बे में रहने वाली सलमा की गौशाला में तैंतीस से ज्यादा गायों को आश्रय प्राप्त है. इस गौशाला की नींव सलमा ने अगस्त 2007 में डाली थी। शुरुआत में सलमा एक लावारिस बूढ़ी गाय और फिर एक बैल अपने घर लेकर आईं. बैल का नाम रख दिया ‘नंदी’। कुछ दिन बाद दूसरी ऐसी गाय सड़क से घर ले आईं, उसका नाम ‘गौरी’ रखा. इस तरह एक-एक कर गायों की संख्या बढ़कर 33 हो गई। इस गौशाला की गायों को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है- जगदंबा, पार्वती, मीरा, सरस्वती, राधा, लक्ष्मी, एजाजा, आंसू, जान, गुलबदन, कुमकुम, हनी आदि। इस तरह यह गौशाला साम्प्रदायिक सौहार्द्र की भी मिसाल बन गई है। गायों के साथ गहरा लगाव रखने वाली सलमा ने अपने निकाह की शर्त रखी कि वह उसी व्यक्ति से शादी रचाएंगी, जो गौशाला चलाने में उनकी मदद करेगा। जब कोई कहता है कि मुस्लिम होकर वह गौशाला कैसे चला सकती हैं, तब सलमा का जवाब होता है – पशु-पक्षियों का धर्म-सम्प्रदाय से क्या लेना देना।

गोसेवा को समर्पित जर्मनी की फ्रेडरिक इरिन ब्रुइनिंग

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कान्हा की नगरी मथुरा में जर्मनी की फ्रेडरिक इरिन ब्रुइनिंग उर्फ सुदेवी दासी अपना घर परिवार सब कुछ छोड़कर मथुरा में लगभग चालीस साल से बीमार गायों की सेवा कर रही हैं.

पद्मश्री से सम्मानित फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग 19 साल की उम्र में दुनिया भर के तमाम देशों की यात्रा पर निकलीं थीं और 1977 में भारत पहुंची. फिर यहीं की होकर रह गईं. किसी ने उन्हें गाय पालने की सलाह दी तो उन्होंने गाय पाल ली. धीरे-धीरे उन्हें गाय से लगाव हो गया. एक दिन उन्होंने सड़क किनारे एक बीमार गाय को तड़पते हुए देखा. गाय की हालत देखकर उन्होंने उसकी सेवा का निर्णय लिया. इसके बाद उन्होंने गोवर्धन के समीप कोन्हाई गाँव में ज़मीन किराये पर ली और ‘राधा सुरभि’ नाम से गोशाला की शुरुआत की. फ्रेडरिक इरिन ब्रुइनिंग का पूरा जीवन गौसेवा को समर्पित है. लोग उन्हें ‘सुदेवी’ के नाम से पुकारते हैं. 

उनकी गोशाला में करीब दो हज़ार गायें रहती हैं, जिनमें से अधिकांश अपाहिज, नेत्रहीन और गंभीर रूप से बीमार हैं. गायों की देखरेख और सेवा-सुश्रुषा वह अपने कुछ गो सेवकों के साथ करती हैं. गोशाला की अपनी एम्बुलेंस है, जो रोज़ बीमार गायों को लाती है. सुदेवी ने अपनी गोशाला में करीब 80 लोगों को काम दिया हुआ है. गोशाला की आय से उनके परिवार चलते हैं.     

गोमाता के दूध को सुदेवी अपने निजी कार्य में नहीं लेतीं। बछड़े से बचे हुए दूध को अन्य अनाथ बछड़ों को पिलाया जाता है। गोवंश की जिंदगी बचने की संभावना नगण्य प्रतीत होती हैं, तो सुदेवी गोवंश को गंगाजल, राधाकुंड का जल, भगवान का चरणामृत पिलाती हैं। समीप हरे कृष्ण- हरे राम की धुन बजती है। मृत्यु उपरांत गोवंश का विधि विधान से अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।

सुदेवी कहती हैं कि प्रत्येक गांव में गोबर खरीदने के सेंटर खोले चाहिए. जिससे आर्थिक स्थिति के कारण लोग गोवंश को दूध बंद होने पर छोड़े नही. इस गोबर की खाद बनाकर किसानों को दिया जाए. इससे न सिर्फ गोवंश का पालन होगा, बल्कि फसल भी स्वास्थ्य वर्धक मिलेगी.

गौ सेवा

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‘गौ सेवा’ से बढ़कर कोई सेवा नहीं है और गौ सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है. वैदिककाल से ही गाय को माता की तरह पूजा जाता रहा है. गाय की सेवा करने से समस्त पुण्य प्राप्त होते हैं. गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास है, अतः गाय की सेवा-पूजा करने से इन सभी देवी-देवताओं की कृपा स्वतः प्राप्त हो जाती है. बिन दुधारू, बूढ़ी, अपाहिज, असहाय गोवंश की निःस्वार्थ सेवा से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है.