गौसेवा और गौचर विकास बोर्ड, गुजरात सरकार ने आवारा और परित्यक्त पशुओं और देसी गायों की देखभाल और प्रबंधन के लिए “गुजरात गौसेवा मॉडल” विकसित किया है।
देसी गायों का महत्व
देसी गायें शारीरिक क्षमताओं के कारण भारतीय परिवेश का सामना करने में सबसे अधिक सक्षम हैं। धान और गेहूं के भूसे जैसे सूखे चारे पर निर्भर रहते हुए भी एक देसी गाय में स्वस्थ (ए-2) दूध देने की क्षमता होती है।
आज मिट्टी के क्षरण का सबसे बड़ा कारण रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग है। रासायनिक उर्वरकों के व्यापक उपयोग से मिट्टी में कार्बन का ह्रास हुआ है।
एक अनुमान के अनुसार गौशाला की खाद/गोबर मिट्टी को अन्य खादों और उर्वरकों की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक नाइट्रोजन और फॉस्फोरिक एसिड की आपूर्ति करती है। गाय के गोबर से बनी खाद सस्ती है और मिट्टी की सभी समस्याओं का समाधान है।
शोध अध्ययनों ने निष्कर्ष निकाला है कि गाय का गोबर सालाना 1,460 टन सूक्ष्म पोषक तत्व दे सकता है जो मिट्टी की संरचना और 14.6 एकड़ की उर्वरता को समृद्ध करने के लिए पर्याप्त है। जैविक फसल उत्पादन में गाय के गोबर की प्रमुख भूमिका रही है।
गौसेवा मॉडल
गौसेवा और गौचर विकास बोर्ड, गुजरात सरकार ने राज्य में 143 गौशालाओं की पहचान की है, जो 23 परियोजनाओं को मॉडल संस्थानों के रूप में कार्य करेंगी। ये गौशालाएं दवाओं, ऊर्जा / बिजली, जैव-उर्वरक के उत्पादन, कीटनाशक और दैनिक उपयोग की वस्तुओं के लिए गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग करके आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर हैं।
गुजरात सरकार ने 24 घंटे की एम्बुलेंस सेवा शुरू की है, जिसका टोल फ्री नंबर-1962 है। ये एम्बुलेंस इंसानों की तरह ही गायों के स्वास्थ्य देखभाल एवं आपातकालीन बचाव हेतु काम कर रही हैं।
गुजरात राज्य में गौशाला विकास के लिए किए गए प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं।
- नई गौशालाओं की स्थापना (विशेषकर जेलों, स्कूलों और मंदिरों में),
- देशी नस्लों (गिरि, कांकरेज और डांगी) के प्राकृतिक प्रजनन के लिए सहायता प्रदान करना
- गौशाला अनुसंधान पर छात्रवृत्ति प्रदान करना
- स्कूलों / कॉलेजों में गौ विज्ञान पाठ्यक्रम
- जैविक खेती पर जोर देना
- आदिवासी क्षेत्रों में गौशाला जागरूकता
- गायों के लिए माइक्रोचिप
- शहरी क्षेत्र में कामधेनु छात्रावास
- भविष्य की समस्याओं और चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए गौशाला विकास पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों/ संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन करना।
- गौशाला कार्यकर्ताओं का सम्मान, गौ प्रदर्शनी के माध्यम से जागरूकता एवं संवाद कार्यक्रम आयोजित करना
गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाकर गोवंश को बचाने के लिए ‘गुजरात गौसेवा मॉडल’ को पूरे देश में दोहराया जा सकता है। इस तरह के कार्यक्रम न केवल देशी नस्ल की गायों को बचाए रखेंगे बल्कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करके किसानों की अर्थव्यवस्था का भी समर्थन करेंगे।