पशुओं के भोजन में हरे चारे की एक खास भूमिका होती है. हरे चारे के रूप में किसान अनेक फसलों को इस्तेमाल करते हैं.
बारिश में तो हरा चारा खेतों की मेंड़ या खाली पड़े खेतों में आसानी से मिल जाता है, परन्तु सर्दी या गरमी में पशुओं के लिए हरे चारे का इंतजाम करने में परेशानी होती है. ऐसे में खेत के कुछ हिस्से में हरे चारे की बोआई करने से साल भर चारा मिलता रहता है.
मक्का, ज्वार जैसी फसलों से केवल 4-5 माह ही हरा चारा मिल पाता है, इसलिए किसान कम पानी में 10 से 12 महीने हरा चारा देने वाली फसलों को चुन सकते हैं.
इसके लिए किसान बरसीम, नेपियर घास, रिजका वगैरह लगाकर हरे चारे की व्यवस्था साल भर बनाए रखते हैं।
बरसीम : पशुओं के लिए बरसीम बहुत ही लोकप्रिय चारा है, क्योंकि यह बहुत ही पौष्टिक व स्वादिष्ठ होता है. यह साल के पूरे शीतकालीन समय में और गरमी के शुरू तक हरा चारा मुहैया करवाती है. बरसीम सर्दी के मौसम में पौष्टिक चारे का एक उत्तम जरिया है. इसमें रेशे की मात्रा कम और प्रोटीन की औसत मात्रा 20 से 22 फीसदी होती है. इसके चारे की पाचनशीलता 70 से 75 फीसदी होती है. इसके अलावा इसमें कैल्शियम और फास्फोरस भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं. इसके चलते दुधारु पशुओं को अलग से खाली दाना वगैरह देने की जरूरत कम पड़ती है.
नेपियर घास : किसानों के बीच नेपियर घास तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इसे संकर हाथी घास भी कहते हैं. गन्ने की तरह दिखने वाली नेपियर घास लगाने के महज 50 दिनों में विकसित होकर अगले 4 से 5 साल तक लगातार पशुओं के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत को पूरी कर सकती है. इसे मेंड़ पर लगाकर खेत में दूसरी फसलें उगा सकते हैं. इसमें सिंचाई की जरूरत भी नहीं पड़ती है. प्रोटीन और विटामिन से भरपूर नेपियर घास पशुओं के लिए एक उत्तम आहार की जरूरत को पूरा करता है. दुधारु पशुओं को लगातार यह घास खिलाने से दूध उत्पादन में भी वृद्धि के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. खेत की जुताई और समतलीकरण यानी एकसार करने के बाद नेपियर घास की जड़ों को 3-3 फुट की दूरी पर रोपा जाता है. नेपियर घास का उत्पादन प्रति एकड़ तकरीबन 300 से 400 क्विंटल होता है. इस घास की खूबी यह है कि इसे कहीं भी लगाया जा सकता है. एक बार घास की कटाई करने के बाद उसकी शाखाएं फिर से फैलने लगती हैं और 40 दिन में वह दोबारा पशुओं के खिलाने लायक हो जाता है. प्रत्येक कटाई के बाद घास की जड़ों के आस-पास गोबर की सड़ी खाद या हल्का यूरिया का छिड़काव करने से इसमें तेजी से बढ़ोत्तरी होती है.
रिजका (लूर्सन) : यह किस्म चारे की एक अहम दलहनी फसल है, जो जून माह तक हरा चारा देती है. इसे बरसीम की अपेक्षा सिंचाई की जरूरत कम होती है. रिजका को 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 30 सेंटीमीटर के अंतर से लाइनों में बोआई करनी चाहिए. अक्टूबर से नवम्बर माह के मध्य का समय बोआई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. रिजका अगर पहली बार बोया गया है, तो रिजका कल्चर का प्रयोग करना चाहिए यदि कल्चर उपलब्ध न हो तो जिस खेत में पहले रिजका बोया गया है, उसमें से ऊपरी परत से 30 से 40 किलोग्राम मिट्टी निकालकर जिसमें रिजका बोना है, उसमे मिला देना चाहिए.
अधिक उत्पादन क्षमता के आधार पर चारा फसलों की उन्नत प्रजातियों का चयन करना चाहिए. चारा फसलों को उगाने के लिए उन्नत कृषि तकनीक का उपयोग करें. चारा फसलों की उचित बढ़वार के लिए खेत में संतुलित पोषक तत्वों का उपयोग आवश्यक है. इन फसलों में भी उचित जल प्रबन्ध व पौधसंरक्षण के उपाय अपनाना चाहिए. सूखा सहन करने वाली चारा फसलों एवं किस्मों की खेती करना चाहिए. सघन फसल चक्रों में कम अवधि वाली चारा फसलों का समावेश करना चाहिए.
खाली, परती अथवा बंजर भूमि में चारा फसलों की खेती को बढ़ावा देने के साथ ही ग्राम पंचायतों के सरंक्षण में गावों में उपलब्ध भूमि में आवश्यक रूप से चारागाह विकसित होना चाहिए.