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गोमाता का क़त्ल रुकेगा, तभी आएगा स्वराज – शंकर गायकर

गोमाता का क़त्ल रुकेगा

तभी आएगा स्वराज

मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं कि मेरे नाम में ही गाय है। मैं किसान  के घर में पैदा हुआ हूं, मेरे पिताजी किसान थे। गाय के साथ मेरा नाता मां के रूप में है।

बचपन में जब भी समय मिलता था मैं गाय चराने जाया करता था। तब पता चला कि गाय का मां से भी ऊंचा स्थान है।  

धीरे-धीरे मैं ‘स्वयं सेवक संघ’ के कार्य में जुटा। उसकी जिम्मेदारी निभाते-निभाते ‘विश्व हिंदू परिषद’ का दायित्व मेरे पास आया, तभी से मैंने गौरक्षा प्रारंभ की। जब मुझे पता चला कि कसाई बड़ी संख्या में गौवंश लेकर जाते हैं। उबलते पानी को उसके शरीर पर डाला जाता है और गौ माता तड़प – तड़प कर अपनी जान दे देती है। देवनार कत्लखाना में यह सब मैंने प्रत्यक्ष देखा है।

तब मुझे पता चला कि आज गौमाता बड़े पैमाने पर यातना सह रही है और जिस प्रकार से उसकी कटाई हो रही है उसको रोकना जरूरी है। एक तो यह विषय और दूसरा जिस धर्म में मैं जीता हूं, मेरे धर्म का प्रथम कर्तव्य है गौ मां की सुरक्षा। गौ मां हमारा मानबिदुं है, हिंदू समाज का मानबिंदू है। हिंदू समाज में जितने भी कार्य होते हैं गृह प्रवेश हो, शादी हो उसमें गौ माता की जरूरत पड़ती ही पड़ती है।

आपको बताना चाहूंगा कि जब मेरी मां की सात साल की उम्र में शादी हुई थी, तब उनके साथ में एक गाय को भेजा गया था। उस समय दुल्हन के साथ गौदान करने की परंपरा थी । यह प्रथा आज भी कई जगह है, लेकिन बड़े पैमाने पर यह परंपराअब लुप्त हो गई है।

गौरक्षा आंदोलन प्रारंभ करते हुए ‘विश्व हिंदू परिषद’ और ‘बजरंग दल’ के द्वारा हमने हूंकार भरी कि “गाय नहीं कटने देंगे, देश नहीं बंटने देंगे।“   

इसी आधार पर मुंबई में हमने बड़े पैमाने पर काम शुरू किया। देवनार के कत्लखाने में गाय काटे जाने को लेकर संघर्ष किया। कत्लखाने ले जाई जा रही गौ माता के हमने रोका और भिवंडी के गौशाला में भेज दिया।  

उस समय महाराष्ट्र में इस सम्बन्ध में कानून भी नहीं था और जो कानून था भी,  वह आधा-अधूरा था। कई बार पुलिस से हमको झगड़ा करना पड़ा। जेल जाना पड़ा। इसके साथ-साथ कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर समाज में गौ माता को लेकर श्रद्धा जगाने का भी काम किया। आखिरकार महाराष्ट्र में सरकार को कानून पास करना पड़ा। फिर वही कानून 2015 में संसद में पास होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद महाराष्ट्र में लागू हुआ है।

ये खुशी की बात है, लेकिन इतनी सी खुशी पर्याप्त नहीं है। आज भी हजारो-लाखों की संख्या में गौमाता का कत्‍ल किया जा रहा है।

आज लोगों के मन में गौमाता को लेकर उसके प्रति भाव और श्रद्धा कम होती जा रही है। उसका कारण है कि आज किसानों को जीने के लिए हर दिन जो अर्थ की व्यवस्था होनी चाहिये वह प्राप्त नहीं हो रही है।

विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से पूरे देश भर में हजार से ऊपर गौशालाएं हैं, लेकिन वह प्रर्याप्त नहीं है। आज भी गौमाता चित्‍कार रही है। देश में जब तक गौमाता की खून गिरता रहेगा, तब तक इस देश में ‘स्वराज’ की बात करना व्यर्थ है। स्वराज तब आयेगा जब गौमाता का कत्‍ल रुकेगा।

गौमाता का क़त्ल रोकने के लिए घर-घर जाकर ‘विश्व हिंदू परिषद’ और ‘बजरंग दल’ के माध्यम से गांव-गांव में चौकियां लगायी गई हैं। हमने एक नारा दिया है कि ‘हर गांव में एक गौपाल।‘ इस प्रकार की एक सुरक्षा व्यवस्था खड़ी करने में हम लगे हुए हैं।

अगर गौ माता को बचाना है तो किसानों को समृद्ध करना पड़ेगा। किसानों को शक्तिशाली करना पड़ेगा। इसके साथ-साथ गौमूत्र और गोबर के उत्‍पादन, पंचगव्य के उत्‍पादन, गोबर की लकड़ी बनाकर उसके द्वारा शवदहन इत्‍यादि करने से गौमाता समृद्ध होगी, किसान समृद्ध होगा। गौ उत्पाद हमें घर-घर, गांव-नगर में फैलाने पड़ेंगे,  तब जाकर गौमाता की हत्या बंद होगी और गौमाता का उत्थान हो पायेगा।

– शंकर गायकर

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