वैदिक काल से ही गायों के धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए उन्हें “कामधेनु” कहा जाता है।
भारतीय संस्कृति में देशी गायों की भूमिका, मानव पोषण में उनकी उपयोगिता, आयुर्वेदिक चिकित्सा उपचार, पंचगव्य (गाय से प्राप्त पारंपरिक औषधि) और टिकाऊ कृषि प्रथाओं पर प्रकाश डालते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने देशी गायों को “राज्यमाता-गोमाता” घोषित किया है।
सरकार ने कहा कि राज्य के विभिन्न भागों में गायों की विभिन्न देशी नस्लें पाई जाती हैं (जैसे, मराठवाड़ा में देवनी, पश्चिमी महाराष्ट्र में लाल कंधारी, शिलारी, उत्तरी महाराष्ट्र में डांगी और विदर्भ में गाओलाओ)। सरकार ने कहा कि यह निर्णय उनकी घटती संख्या को लेकर चिंता के कारण लिया गया है।
प्राचीन काल से ही गायों का मानव जीवन में बहुत महत्व रहा है। देशी गायों के दूध में उच्च पोषण मूल्य होता है। इस दूध में मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं और इसे संपूर्ण आहार माना जाता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा और टिकाऊ कृषि पद्धतियों में गाय के गोबर और मूत्र के उपयोग होता है।
सरकार ने प्रस्ताव में कहा कि इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, सरकार देशी गायों को राज्यमाता-गोमाता घोषित करके उनकी देखभाल और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए इच्छुक है।
राज्य मंत्रिमंडल ने देशी गायों के पालन-पोषण के लिए सब्सिडी योजना लागू करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है। सरकार ने बताया कि इस योजना के तहत गोशालाओं को प्रति गाय प्रतिदिन 50 रुपये दिए जाएंगे।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि इस योजना से देशी नस्लों का संरक्षण सुनिश्चित होगा। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि इससे गोशालाओं को गायों को चारा उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। इससे उन्हें देशी नस्लों को संरक्षित करने में मदद मिलेगी।