Homeसंस्थाएंकसाइयों से गोवंश को बचाने में लगी है गोपाल गौशाला

कसाइयों से गोवंश को बचाने में लगी है गोपाल गौशाला

विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्गत अनगांव, भिवंडी, महाराष्ट्र में ‘श्री भारतीय गोवंश संरक्षण संवर्धन परिषद’ द्वारा ‘गोपाल गौशाला’ का संचालन किया जा रहा है. मैं त्रिलोकचंद गनेशमुख जैन सचिव के नाते से यहाँ पर काम देख रहा हूँ. श्री अशोक सिंघल की प्रेरणा से वर्ष 2000 में इस गौशाला की शुरुआत हुई. गौशाला का मुख्य उद्देश्य है, कसाइयों द्वारा अवैध क़त्लखानों में काटे जाने वाले गोवंश को बचाना.

गौशाला की शुरुआत में अवैध क़त्लखानों से गोवंश को बचाने का काम एडवोकेट ललित जैन देखते थे, लेकिन वर्ष 2002 में कसाइयों ने ललित जैन की कोर्ट के बाहर हत्या कर दी. इसके बाद गौशाला के काम में काफ़ी उतार-चढ़ाव शुरू हो गया. तब मनोज भाई राईचा ने इस संघर्षपूर्ण काम को सँभालने की ज़िम्मेदारी ली.

गौशाला की शुरुआत 200 गोवंश से हुई थी. अब तक 25 हज़ार से ज़्यादा गोवंश कसाइयों से पकड़कर हमारे पास आये हैं. उनके केस कोर्ट में चल रहे हैं. जो केस किलियर हो गए हैं, उन गोवंशों को हमने महाराष्ट्र की गौशालाओं में पालने के लिए भेजा हुआ है.

वर्तमान में श्री गोपाल गोशाला में 2 हज़ार 21 सौ गोवंश रखने की व्यवस्था है. ये गौशाला 21 एकड़ ज़मीन पर है. गायों को रखने के लिए डेढ़ लाख स्क्वायर फिट के शेड हैं. 50-60 हज़ार फिट के गोडाउन हैं. 70 कर्मचारी यहाँ काम करते हैं. उनके रहने के लिए खोली की व्यवस्था है. एक बायोगैस का प्रोजेक्ट है, 4-5 बोरवेल हैं, एक बावड़ी है.

गौशाला का मासिक ख़र्च 30 से 40 लाख रुपए है. गौशाला के माध्यम से 10 से 12 लाख की आय हो जाती है. बाकी का ख़र्च डोनेशन के माध्यम से चलता है.

Trilokchand Jain

गौशाला को आत्मनिर्भर बनाने का हमारा प्रयत्न चल रहा है. इसके लिए ‘काऊ टूरिज्म’ की योजना पर विचार किया जा रहा है. देसी खाद तैयार करने का प्रोजेक्ट लगाया हुआ है. पहले हम गोबर की बिक्री करते थे, लेकिन अभी यहाँ पर पीताम्बरी और अन्य विविध व्यासपीठ वालों के सहयोग से यहाँ पर देसी खाद का प्रोजेक्ट लगाया हुआ है और महीने में दो – ढाई लाख की इनकम हो जाती है.

इस तरह साल में 30 लाख रूपये गोबर के माध्यम से मिलता है, 7 – 8 लाख रुपये देसी गोमूत्र के माध्यम से मिलता है. करीब 100 गाय दूध देने वाली हैं. 8 – 9 लाख रुपये दूध के माध्यम से मिल जाता है. इस तरह साल में तीन – साढ़े तीन करोड़ के ख़र्च के अन्दर से सवा से डेढ़ करोड़ की इनकम गौशाला की चल रही है.

विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल के माध्यम से आस पास के किसानों के संपर्क में रहते हैं और उन्हें गोकृपा अमृत का प्रशिक्षण देते हैं. मेडिकल सुपरवीजन के बाद डॉक्टर के कहने पर किसान को बैल की जोड़ी फ्री में देते हैं.

लोगों को जोड़ने के लिए ‘एक गाय गोद लो’ योजना पर भी काम चल रहा है. इस योजना में युवाओं का काफ़ी सहयोग मिल रहा है.

युवाओं को गौशाला से जोड़ने के लिए पिछले चार साल से ‘गौशाला प्रीमियम लीग क्रिकेट’ का आयोजन हमारे युवा करते हैं. एक दिन के आयोजन में 50-60 टीमें आती हैं.

युवाओं ने भिवंडी और भिवंडी से बाहर की टीमों से संपर्क करके हर साल 2-3 सौ गाय गोद लेने का काम कर रहे हैं. इस तरह हर साल 30 से 40 लाख रुपये एकत्र हो जाते हैं. गोद लेने वाला व्यक्ति महीने दो महीने में गौशाला आकर अपनी गाय देखकर जाता है और गौशाला के लिए कुछ न कुछ सहयोग भी देता है.

एक गाय का प्रतिदिन का सिर्फ़ चारे का ख़र्च 40 से 50 रुपये है. पचास से एक करोड़ का चारा हम गोडाउन में रखते हैं.

सुबह सात बजे चुन्नी की व्यवस्था रहती है. जो नाश्ते के रूप में गायों को मिलती है. दोपहर के समय हरे घास की व्यवस्था, और शाम को सूखे घास की व्यवस्था रहती है.

जिन किसानों के पास ज़मीन रहती है – घास रहती है, तो उसको 50 रुपये का भी ख़र्च नहीं आता है. उस पर भी वो चाहे तो गोबर से भी बहुत सारे डेवलेपमेंट कर सकता है. गोबर गैस का प्लांट लगा सकते हैं, गोबर की खाद बना सकते हैं. गोमूत्र का खेती को उपजाऊ बनाने के लिये उपयोग कर सकते हैं.किसान को इंडिपेंडेंट होने के लिए गाय से अच्छा माध्यम कोई नहीं है.

  • त्रिलोकचंद जैन
विशेष

लोकप्रिय