Homeसमाचार‘गौ ग्राम कुंभ’ गौ रक्षा के लिए  एक क्रांतिकारी कदम

‘गौ ग्राम कुंभ’ गौ रक्षा के लिए  एक क्रांतिकारी कदम

‘गौ ग्राम कुंभ’ गौ रक्षा के लिए  एक क्रांतिकारी कदम

एकल अभियान के अंतर्गत आज़ादी के अमृत काल में अमृतमयी गौ माताओं के संरक्षण – संवर्धन तथा उनके पुनर्वसन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को सामने रखकर धनबाद में एकल गौ ग्राम कुम्भ का आयोजन गौ रक्षा, गौ सेवा और गौ पालक की दृष्टि से एक क्रांतिकारी कदम है। ये निश्चित है कि एकल गौ ग्राम कुंभ से भारत के ग्रामीण जीवन को एक नयी दृष्टि मिलेगी और गौ माता के पालन पोषण तथा खेती में किये जाने वाले नये प्रयोगों से देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के एक नई ऊंचाई प्राप्त होगी।

इस कुंभ में लगभग 2000 किसान प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है और ये किसान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आज के आधुनिक परिपेक्ष्य में गौ पालन के माध्यम से विकास के पथ पर ले जाया जा सकता है। इस पर विचार मंथन करके देश के सामने एक माइल (प्रतिदर्श) प्रस्तुत करेंगे। एकल गौ ग्राम योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण अंचल में प्रत्येक ग्रामीण परिवार में कम से कम एक गाय के पालन के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित और अभिप्रेरित करना है, ताकि देश रासायनिक खेती के कुचक्र से निकलकर शुद्ध सात्विक आर्गेनिक खेती कर सके और इस प्रकार की खेती के लिए गौ और गौ प्रदत्त उत्पाद सबसे प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं।  

हमारी सनातन संस्कृति और मनीषा में कृषि और गोपालन के लिए बड़ी ही विस्तृत, वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ चर्चा की गई है। हमारी सनातन परंपरा के दो कालजयी ग्रंथ हैं – रामायण और महाभारत। इन दोनों ही ग्रंथों में हमें अपनी जीवन-पद्धति, कार्य प्रणाली तथा सभी प्रकार के आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों तथा कर्तव्यों, दायित्वों का विस्तृत विवरण / निर्देश मिलते हैं। महाभारत ग्रंथ में कृषि, अन्नोत्पादन, गौ पालन-पशुपालन के संबंध में अनेक स्थानों पर दिशा-निर्देश दिए गए हैं। महाभारत के दानधर्म पर्व के इक्यानवें अध्याय में राजा नहुष और महर्षि च्यवन के बीच हुए संवाद का वर्णन है। च्यवन ऋषि वही थे, जिनके नाम से आज च्यवनप्राश पौष्टिक औषधि विगत पांच हजार वर्ष से भारत का ब्रांड बनी हुई है। राजा नहुष को कृषि तथा गोपालन के महत्व को प्रतिपादित करते हुए महर्षि च्यवन कहते हैं –

गावो लक्ष्म्याः सदा मूलं गोषु पाप्मा न विद्यते।

अन्नमेव सदा गावो देवानां परमं हविः।।

गौएं सदा लक्ष्मी के मूल (जड़) में हैं। उनमें कोई भी विकार नहीं है।

गौएं मनुष्यों को सर्वदा अन्न और देवताओं को हविष्य प्रदान करती हैं। च्यवन ऋषि गौओं के पालन के महत्त्व तथा उससे मिलने वाले लाभ के बारे में कहते हैं –

अमृतं ह्यव्ययं दिव्यं क्षरन्ति च वहन्ति च ।

अमृतायतनं चैताः सर्वलोकनमस्कृताः ॥

गौ माता विकार रहित हैं। उनके शरीर में सदैव अमृतत्व रहता है और दुहने पर वह अमृततुल्य दूध प्रदान  करती है। वे अमृत की आधारभूत हैं। संपूर्ण विश्व को वे पूज्य हैं, क्योंकि उससे सभी प्राणी पोषित होते हैं

तेजसा वपुषा चैव गावो वह्निसमा भुवि।

गावो हि सुमहत् तेजः प्राणिनां च सुखप्रदाः॥

इस पृथ्वी पर गौएं अपनी काया (शरीर) और कान्ति से अग्नि के समान है। वे महान तेज को राशि और समस्त प्राणियों को सुख देने वाली हैं।

महाभारत में ऋषि च्यवन द्वारा दिए गए गौ पालन संबंधी इन निर्देशों को हृदयंगम कहते हुए एकल गौ ग्राम योजना को पूरे देश में प्रभावी तौर पर लागू करने का संकल्प ही एकल गौ ग्राम कुंभ का मूलमंत्र है। हम सब जानते हैं कि धनबाद ही वह गंगोत्री है जहाँ से एकल विद्यालय की सुरसरि का प्रवाह वर्ष 1989 में निसृत हुआ था और आज वह देश के सभी राज्यों के वनवासी / सुंदर ग्रामीण क्षेत्रों को सनातन संस्कार की धारा से संस्कारित और आधुनिकता के आडंबर से मुक्त कर रहा है। अब एकल गौ ग्राम योजना के कार्यान्वयन से ग्रामीण परिवारों को आत्मनिर्भर और आत्म विश्वास से युक्त किया जाएगा। विगत 70 वर्षों के कालखंड में ग्रामीण अंचलों में खेती के आधुनीकरण के नाम पर बहुत अधिक भ्रांतियां फैलाई गई और उसके फलस्वरूप खेती और उसकी उपज पर आज विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। अतः एकल गौ ग्राम कुंभ में जहां लगभग 3000 किसान परिवारों का समागम होगा वहीं गोसेवा के साथ कृषि के पारंपरिक तरीकों को आधुनिक युगबोध के अनुसार उनके क्रियान्वयन पर भी विचार किया जाएगा। एकल गौ ग्राम कुंभ का बोध वाक्य है ‘हर किसार के घर में एक देशी गाय पलेगी।‘ गाय दूध देने वाली हो अथवा दूध न देने वाली, दोनों ही स्थितियों में गोमाता जिस घर में रहती है वह संकट से मुक्त और संपन्न होता है।

श्री वीरेन्द्र याज्ञिक

वरिष्ठ लेखक, विचारक और आध्यात्मिक प्रवक्ता

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