गौ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की धात्री होने के कारण कामधेनु है। गाय के अनिष्ट का चिन्तन ही विनाश का कारण है।
गाय को समस्त देवताओं कि जननी कहा गया है. ‘स्कन्द पुराण’ में त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश ने कामधेनु की स्तुति की है –
“त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।
त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।“
अर्थात् हे अनघे (गौमाता) ! तुम समस्त देवों की जननी तथा यज्ञ की कारणरूपा हो और समस्त तीर्थों की महातीर्थ हो, तुमको सदैव नमस्कार है।
गाय हिंदु धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है। इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है। पुराने समय से ही गौसेवा को धर्म के साथ ही जोड़ा गया है। गौसेवा भी धर्म का ही अंग है।
शास्त्रों के अनुसार गाय गाय में सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही सभी देव प्रसन्न हो जाते हैं। गोमूत्र में गंगाजी का और गोबर में लक्ष्मीजी का निवास है। इसीलिये सभी महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानो में गौ माता के गोबर का इस्तेमाल किया जाता है। गौ माता की एक आंख में सूर्यदेव और दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है। गौ माता के खुर्र में शेषनाग देवता का वास होता है । भवसागर से पार लगाने वाली गोमाता की सेवा करने पर गौकृपा से ही गोलोक की प्राप्ति होती है।
गौ के सम्बन्ध में ‘शतपथ ब्राह्मण’ में कहा गया है-
“गौ वह झरना है, जो अनन्त, असीम है, जो सैंकड़ों धाराओं वाला है।“
गोमाता को ‘वेदों’ में ‘अघ्न्या’ (अवध्या) बतलाया है। ‘ऋक्संहिता’ में कहा गया है –
“मा गामनागामदितिं वधिष्ट।“
अर्थात गाय निरपराधिनी है, निर्दोष है तथा पीड़ा पहुंचाने योग्य नहीं है और अखण्डनीय है। अत: गाय की किसी भी प्रकार हिंसा और उसे कैसा भी कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए।
शास्त्रों में गौ को ‘हविर्दुघा’ अर्थात हवि देने वाली कहा गया है। गोघृत देवताओं का परम हवि है और यज्ञ के लिए भूमि को जोतकर तैयार करने एवं गेहूं, चावल, जौ, तिल आदि हविष्यान्न पैदा करने का काम बैलों द्वारा किया जाता है। यज्ञभूमि को शुद्ध व परिष्कृत करने के लिए उस पर गोमूत्र छिड़का जाता है और गोबर से लीपा जाता है तथा गोबर के कंडों से ही यज्ञाग्नि प्रज्जवलित की जाती है। गोमय से लीपे जाने पर पृथ्वी पवित्र यज्ञभूमि बन जाती है और वहां से सारे भूत-प्रेत और अन्य तामसिक पदार्थ दूर हो जाते हैं।
यज्ञानुष्ठान से पूर्व प्रत्येक यजमान की देहशुद्धि के लिए पंचगव्य पीना होता है जो गाय के ही दूध, दही, घी, गोमूत्र व गोमय (गोबर) से तैयार होता है। जो पाप किसी प्रायश्चित से दूर नहीं होते, वे गोमूत्र के साथ अन्य चार गव्य पदार्थ (दूध, दही, घी, गोमय) से युक्त होकर पंचगव्य रूप में हमारे अस्थि, मन, प्राण और आत्मा में स्थित पाप समूहों को नष्ट कर देते हैं।
महाभारत में गौमाता का माहात्म्य, गौमाता के दैनिक जाप, प्रार्थना तथा प्रणाम के मन्त्र बताये गए हैं। महर्षि वसिष्ठ इक्ष्वाकुवंशी महाराजा सौदास से “गवोपनिषद्” (गौओं की महिमा के गूढ रहस्य को प्रकट करने वाली विद्या) का निरूपण महाभारत के अनुशासन पर्व में किया है –
“गावो ममाग्रतो नित्यं गाव: पृष्ठत एव च।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्।।“
अर्थात गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में रहूं।
महर्षि वसिष्ठ ने गौमाता की दैनिक प्रार्थना का मन्त्र बताया –
“सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥“
अर्थात सुन्दर और अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें।
महर्षि वसिष्ठ गोमाता को परमात्मा का साक्षात् विग्रह जान कर उनको प्रणाम करने का मन्त्र बताते हुए कहते हैं –
“यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥“
अर्थात जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
गौ माता अगर घर में आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है तो वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं । जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे, आनंदपूर्वक अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करे उस जगह ख़ुशियां निवास करती हैं। गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उस पर गौकृपा हो जाती है और कुछ ही दिनों में वो खुशहाल हो जाता है। गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है । ऐसे लोग सभी लोगो के प्रिय होते हैं ।
समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली ‘कामधेनु’ की महिमा अपार है। कामधेनु अर्थात गोमाता के पूजन और संरक्षण- संवर्धन से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मनुष्य अगर जीवन में गौमाता को स्थान देने का संकल्प कर ले तो वह हर संकट से बच सकता है। गौ माता सारे सुखों की भंडार है ।