मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के दर्जनों गांवों के किसानों के लिए गाय से मिलने वाला घी-दूध नहीं बल्कि गोबर आमदनी का जरिया बन गया है। पारंपरिक रूप से खाद के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे गोबर से देवी-देवताओं की मूर्तियां, दीपक, राखी, गमले, सजावट के सामान, अगरबत्ती, धूपबत्ती, चूड़ियां और कंगन जैसे श्रृंगार प्रसाधन की सामग्री बनाकर लाखों रुपये कमा रहे हैं।
गोबर जैसे अपशिष्ट पदार्थ को अच्छी कमाई कजरिया बनाया जा सकता है, इसे छिंदवाड़ा जिले के सौंसर में मोहगाव स्थित स्वानंद गोविज्ञान अनुसन्धान केंद्र के संचालक डॉ. जितेंद्र भकने ने साबित कर दिखाया है। एक मुलाकात में डॉ. जितेंद्र ने बताया कि उनके यहाँ देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से बने उत्पादों की मांग विदेशों तक से आ रही है। स्वानंद गोविज्ञान अनुसन्धान केंद्र में आसपास के किसान भी गोमय से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त करने आते हैं। डॉ. जितेंद्र बताते हैं कि अबतक 10 हजार के आसपास किसानों ने उनके यहाँ से प्रशिक्षण लिया है। गोबर से बनाये जानेवाले रोजमर्रा के सामानों जैसे धूपबत्ती, मच्छरमार अगरबत्ती, हवन सामग्री, के अलावा गमले, देवी-देवताओं की मूर्तियां, राखी, सजावट के सामान, चूड़ियां, कंगन, झुमके आदि श्रृंगार प्रसाधन के सामान सहित शुभ-लाभ, स्वास्तिक की आज बाजार में बहुत मांग है। त्योहारों के समय प्रशिक्षित किसानों के यहाँ से गोबर के उत्पाद मंगाकर डॉ. जितेंद्र बड़े शहरों में भेजते हैं। इस प्रकार किसानों की भी अतिरिक्त आय हो जाती है। स्वानंद गोविज्ञान केंद्र में बनाये जाने वाले सामानों के सांचे (मोल्ड) के डिजाइन भी डॉ. जितेंद्र अपनी देखरेख स्वयं बनवाते हैं और इच्छुक किसानों को बहुत कम मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं।
डॉ. जितेंद्र भकने लाखों के पैकेज वाली अपनी नौकरी छोड़कर 2013 में जब 24 गायों से गौशाला शुरू की तो लोग उनका उपहास उड़ाने से नहीं चूकते थे। आज जो लोग उनका उपहास उड़ाते थे वही उनकी नक़ल कर गोबर और गौमूत्र से दवाइयां और अन्य सामान बनाकर लाखों कमा रहे हैं। शुरुआत में डिजाइनदार कंडे से अपना व्यवसाय शुरू करनेवाले डॉ. जितेंद्र आज लाखों रुपये महीने कमा रहे हैं और युवाओं के रोलमॉडल बने हुए हैं।