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गोवंश को भी चाहिए रोटी और मकान

हमें गोवंश को बचाना हैऔर, गोवंश तभी बच सकता है जब उसे भरपूर खाने को मिलता रहे। जिस तरह हर इंसान को रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता होती है उसी तरह गोवंश को भी रोटी और मकान की आवश्यकता होती है। 

गोशालाओं और किसान के घर गोवंश को आश्रय तो मिल रहा है, लेकिन रोटी यानी चारा उसे भरपूर नहीं मिल पाता है। ऐसी हालत में गोवंश गोशालाओं में भूख से मर रहा है और किसान भूख से बेहाल गाय को सड़क पर छोड़ रहा है। 

फलस्वरूप गाय को रोटी के बदले कचरा – प्लास्टिक खाना पड़ता है और रहने के लिए खुली सड़क मिलती है; दोनों तरह से गाय मर रही है। कचरा-प्लास्टिक खाकर या फिर सड़क पर किसी गाड़ी के नीचे आकर। 

यदि इन गोवंश को हम गोशाला में लेकर जाते हैं तो वहाँ काम करने वालों के साथ – साथ चिकित्सा सुविधा और चारे का अभाव है; इसलिए ये गोशालाएं भी एक सीमित मात्रा में ही गोवंश को रख सकती हैं। 

एक गाय/ गोवंश को प्रतिदिन कम से कम 15 किलो हरा चारा और 5 किलो भूसा चाहिए, तभी वो अच्छी तरह से पल सकती है, मां बन सकती है और दूध दे सकती है। (ये औसतन चारे की मात्रा है। नस्ल के हिसाब से ये मात्रा कम या अधिक हो सकती है।)

ख़रीदने पर हरा चारा 3 से 4 रुपये प्रति किलो और भूसा 6 से 8 रुपए प्रति किलो मिलता है। मौसम (season) न होने पर हरे चारे का मूल्य और बढ़ जाता है। इसे किसान वहन (afford) नहीं कर पाता है और न ही छोटी गोशालाएं इसे वहन कर पाती हैं। यदि हमने चारे की समस्या हल कर ली। गाय की रोटी उसे पहुँचा दी तो फिर न गोवंश बिकेगा, न कटेगा और न ही सड़क पर छुट्टा घूमने पर मजबूर होगा।

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इसलिए आवश्यकता है सालों साल हरा चारा देने वाली नेपियर घास उगाने की, जो मुलायम होती है और उसे खाने से गोवंश को पौष्टिक तत्व भी मिल जाते हैं। हरे चारे की समस्या का काफ़ी हद तक समाधान नेपियर उगाकर हो सकता है। नेपियर चारा उगाने का ख़र्च एक बार आता है और 7 से 8 साल तक उससे हरे चारे की फसल मिलती रहती है, क्योंकि नेपियर की जितनी कटाई-छंटाई होती है वो उतनी ही बढ़ती रहती है। 

चारा मिलने पर किसान गोवंश का अच्छे ढंग से पालन कर सकता है। गोशालाएं भी अच्छे ढंग से चल सकती हैं। इससे गोवंश सुरक्षित होगा, गोशालाएं आत्मनिर्भर होंगी और किसान की उन्नति होगी’। 

श्रीनारायण अग्रवाल

ट्रस्टी (उमा कल्याण ट्रस्ट)

संस्थापक (गौ धाम, वृंदावन – मथुरा)

संचालक (राल गोशाला, मथुरा)

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