जिस प्रकार जंगली जानवरों की संख्या में कमी होती जा रही है उससे भी कहीं अधिक भारतीय पशु धन अर्थात ‘इंडियन ब्रीड लाइवस्टॉक्स’ की संख्या में कमी हो रही है। संपूर्ण देश के मैदानी भागों से भारतीय नस्ल के गोवंश (गाय, बैल) की संख्या घटते – घटते समाप्ति पर है। खेती एवं ग्राम जीवन में अंधाधुंध मशीनीकरण हावी है। आज सोची समझी योजना के तहत पशु आधारित खेती को मशीन आधारित बनाया जा रहा है ताकि भारत के सभी गाय, बैल, बछड़े किसानों के लिए अनुपयोगी होकर कत्लखानों की ओर जाने को सहज हो सकें। आज भारत में प्रति वर्ष केवल भारतीय नस्ल की गायें काटी जाती हैं और भारत दुनिया के सबसे बड़े गौ मांस एक्सपोर्टर का पुरस्कार प्राप्त करके अपने को धन्य मानता है।
गौ धाम, वृंदावन ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कई प्रकार के देशव्यापी कार्यक्रम लिए हैं। घर घर में सघन वृक्षारोपण अभियान, हर घर पोषण वाटिका अभियान, नदी बचाओ अभियान, जैविक खेती का विस्तार एवं जैविक उत्पादन का प्रमोशन आदि।
अब दूसरे चरण में ‘गौ धाम योजना’ की शुरुआत हुई है जिसमें दूध नहीं देने वाली गायों को चाहे वह गौशालाओं में कष्ट झेल रही हों या फिर कसाई के हांथ कटने जा रही हों, उन्हें पुनः किसानों के यहाँ घरवापासी करवाई जा रहा है, क्योंकि गाय का असली घर किसान का घर ही है। वहां गाय के गोबर गोमूत्र से गोसेवक परिवार की महिलाओं के माध्यम से दीपक एवं धूपबत्ती बनवाने का काम किया जा रहा है। एक ओर जहां यह बिनदुधारू गायें बच रही हैं, वहाँ दूसरी ओर ग्रामीण एवं वनवासी महिलाओं को रोज़गार मिलता है। मान्यता है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है और यह पर्यावरण सम्मत भी है। आज भारतीय गाय के गोमूत्र से कई प्रकार की दवाएं बनने लगी हैं।
जब हम जागे तभी सवेरा, जो अब तक भूल हो गई सो हो गई, अब भूल को दोहरायेंगे नहीं।
इस बार दीपावली के अवसर पर गाय के गोबर से बने दीपकों से ही घर में, ऑफिस में, फैक्ट्री में, मंदिरों में रोशनी की जगमगाहट हुई। अब से अपने घर, ऑफिस, फैक्ट्री, मंदिर हर कहीं गाय के गोबर से बनी धूपबत्ती ही काम में लेंगे।
बता दें कि अगरबत्ती बांस की लकड़ी से बनती है जिसको जलाना नहीं चाहिए। यह हमारी भारतीय संस्कृति एवं पर्यावरण के विरुद्ध भी है। पर इस बात की गारंटी है कि यदि हम अपने अपने घर और मंदिर में पूजा के लिए केवल गाय के गोबर से बनी धूपबत्ती और दीपक ही प्रयोग में लेंगे तो गाय माता कटेगी नहीं और हर भारतीय भी तो यही चाहता है कि सबकी माता गाय माता कटनी नहीं चाहिये।
बिना दूध देने वाली गाय भी अपने गोबर और मूत्र से प्रति माह 4000-5000 रुपये कमा सकती है फिर कौन किसान बिना दूध देने वाली गाय को बेचेगा ? गाय बिकेगी नहीं तो कटेगी नहीं। आप स्वयं भी गाय के गोबर से बने दीपक और धूपबत्ती के मध्यम से भारतीय नस्ल की गायों को बचाने के अभियान में भागीदार बन सकते हैं। अभियान की सफलता के लिए हम सभी को इस महायज्ञ में आहुति डालने भर की ज़रूरत है।
ध्यान रहे गोबर से बने यह दीपक आप गमले या खेती बारी के पौधों में ही डालें। यह पानी के संपर्क में आते ही तुरंत गलकर खाद बन जाते हैं, जबकि मिट्टी के दीपक गलते नहीं हैं। अतः एक ओर मिट्टी के दीपक से जहां चिकनी एवं उपजाऊ मिट्टी की बड़े पैमाने पर बर्बादी होती है वहीं दीपक जलाने के बाद उन्हें खेतों या तालाबों में ही डाला जाता है जो वहां प्रदूषण का ही कार्य करती हैं, पर गोबर के बने दीपक और धूपबत्ती पर्यावरण सम्मत हैं।
साभार – गौ ग्राम संदेश