फ़्रांस के मशहूर चित्रकार बर्नार्ड पिकार्ट ने भारत में गौमूत्र चिकित्सा को दर्शाता एक चित्र बनाया था जिसमें बीमार एवं मरणासन्न व्यक्ति को गाय की पीठ पर औंधे मुँह इस प्रकार लिटाया गया था कि गाय का मूत्र सीधे रोगी के मुख में प्रवेश कर सके। 18वीं शताब्दी के शुरू के वर्षों में बनाया गया यह चित्र भारत में गौ मूत्र के महत्त्व को दर्शाता है।
गौमूत्र पंचगव्यों में से एक है। वर्तमान में गौमूत्र को गाय के मुख्य उपादान घी और दूध के पश्चात सर्वाधिक लाभकारी होने का दावा किया जा रहा है। कहीं-कहीं तो गौमूत्र को घी और दूध से भी अधिक महत्त्व दिया जा रहा है। हालाँकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञानियों का मानना है कि ये दावे अस्पष्ट, अतिरंजित और अप्रामाण्य हैं, फिर भी उन्हें यह तो स्वीकार करना ही होगा कि हजारों वर्ष पूर्व लिखित आयुर्वेद में गौमूत्र को अमृत समान कहा गया है। इसीलिए आज के समय में गौमूत्र को जैविक औषधीय विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
गोमूत्र पर शोध करने वालों की मानें तो गौमूत्र में कुछ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को मिलाकर बनायी गयी दवा से कैंसर जैसे शत-प्रतिशत जानलेवा बीमारी को ठीक किया जा सकता है। उत्तराखंड के पवलगढ़ स्थित गौमूत्र क्रांति अभियान के संचालक और वैद्य प्रदीप भंडारी ने ब्लड कैंसर से पीड़ित कई मरीजों को गौमूत्र चिकित्सा से ठीक करने का दावा किया है। इनमे से कई मरीजों ने तो अपनी बीमारी के ठीक होने का वीडियो भी जारी किया है, जिसमें वे अपनी बीमारी के गौमूत्र से इलाज के पश्चात पूरी तरह ठीक होने का दावा करते नजर आ रहे हैं।
इसी प्रकार महाराष्ट्र के भंडारा जनपद स्थित एक फार्मेसी कालेज के प्रोफेसर डॉ. संजय वाते ने गौमूत्र से प्रभावित होकर अभी हाल ही में गौमूत्र पर पीएचडी की है। डॉ. संजय वाते ने गौमूत्र की विशेषता का दावा यूँ ही नहीं किया। उनका कहना था कि वे स्वयं एक ऐसे जटिल त्वचा रोग से ग्रस्त थे जिसका उपचार एलोपैथी पद्धति से करने पर कुछ दिनों के लिए रोग की आक्रामकता में कुछ कमी तो आती थी लेकिन इलाज चलते रहने के बावजूद पुनः कुछ दिनों बाद रोग फिर तेजी से उभर आता था। कई वर्षों की असफल चिकित्सा के बाद वे नागपुर के देवलापार स्थित गौ-विज्ञान अनुसन्धान केंद्र से गोमूत्र चिकित्सा शुरू की तो उसके आशातीत परिणाम देखकर वे गौमूत्र के चमत्कारिक प्रभाव से बहुत प्रभावित हुए तत्पश्चात उन्होंने कॉलेज के लेबोरेट्री में गौमूत्र पर गहन परीक्षण शुरू किया और फिर पीएचडी की डिग्री भी हासिल की। आज वे अपने रोग से पूरी तरह मुक्त होकर गौमूत्र चिकित्सा को बढ़ावा देने में देवलापार अनुसन्धान केंद्र का सहयोग कर रहे हैं।
गौमूत्र पर अनुसन्धान करने वालों का यह दावा है कि प्यूरीफाई गौमूत्र एक महौषधि है। इसके सेवन से त्वचा, हृदय, किडनी और पेट सम्बन्धी बिमारियों के साथ-साथ महिलाओं के रोग भी दूर हो जाते हैं। गौ-विज्ञान अनुसन्धान केंद्र देवलापार ने गौमूत्र पर कई भारतीय, अमरीकी और चीनी पेटेंट भी हासिल किया है। हालाँकि कुछ वैज्ञानिक भले ही गौमूत्र की विशेषता को छद्म विज्ञान मानते हुए इसे भारतीय नवाचार की संज्ञा देते हैं फिर भी गौमूत्र से होने वाले प्रत्यक्ष लाभों को यूँ ही अनदेखा नहीं किया जा सकता। गौमूत्र पर अनुसन्धान करने वालों ने प्रयोगशालीय परीक्षणों से यह साबित होने का दावा किया है कि गौमूत्र एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल एजेंट और कैंसर विरोधी दवाओं को अत्यधिक प्रभावी बना देता है।
बहरहाल जो भी हो, गौमूत्र पर अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है। भारत सरकार यदि इस दिशा में कोई ठोस कार्य-योजना तैयार करे अथवा बढ़ावा दे तो आनेवाले समय में चिकित्सा के क्षेत्र में गौमूत्र एक क्रांतिकारी औषधि साबित हो सकती है।
…पी कुमार ‘संभव’