अपने राज्यों में जो भी देसी नस्ल की गाय है, वहां उसी नस्ल को सम्मानपूर्वक रखा जाना चाहिए।
अधिकतर लोगों का मानना है कि गीर गाय पालनी चाहिए, क्योंकि वो अधिक दूध देती है, लेकिन मेरा मानना है कि गाय की सेवा और उसकी देखरेख अच्छी होगी तो किसी भी नस्ल की देसी गाय हो, गीर से अधिक दूध दे सकती है।
एक गोपालक के पास देसी नस्ल की छोटी गाय थी। उन्होंने हमसे कहा हमें गीर गाय रखनी है, क्योंकि हमारी गाय छोटी है और डेढ़ लीटर दिन का दूध देती है। तब हमने कहा कि हमारे सिस्टम से गाय को खाना देकर देखो। उन्होंने ऐसा ही किया, तब एक ही साल में वही डेढ़ लीटर वाली दस डांगी गायों का दूध चार लीटर हो गया। खाना खाया गीर के सामने सिर्फ तीस टका।
पूरे गुजरात में गीर गाय के दूध का एवरेज आठ से दस लीटर है। वो डांगी गाय उससे भी आगे चली गईं।
हम किसी भी गौमाता को बांधते नहीं हैं। सभी गायों का अपनी मर्जी से खाना होता है। कब खाना है और कितना खाना है यह गौ माता ही तय करेगी। देसी गाय कभी भी ज्यादा नहीं खाती है। हर एक वाड़े में पानी पीने की व्यवस्था है। वो अपनी मर्जी से पानी पीती हैं, चारा खाती हैं।
हर मौसम में गौ माता के पानी पीने का समय अलग अलग होता है तो हम कैसे तय करेंगे कि किस समय उनको प्यास लगी है। ठंड में उनको अलग क्वांटीटी चाहिये, अलग समय पर पानी चाहिये, गर्मी में अलग चाहिये। इसीलिये उनके सामने चारा और पानी खुला रखा है। ये गौ माता को तय करना है कि कब खाना है और कब पीना है।
उसको चारा के साथ दाना कैसे लगेगा, अगर जिसका दूध बहुत अच्छा है उसके कैसे दाना देना पडेगा, उसके पाचन सिस्टम होता है, बैलेंस फूडस कैसे बनाना है, इन सभी विषयों पर सूक्ष्म अभ्यास करना चाहिये।
उसके पाचन प्रक्रिया को समझना है। गोबर देखकर किसान को पता चल जाना चाहिये कि उसका स्वास्थ कैसा है, उसका पाचन तंत्र कैसा चल रहा है।
हमारी बंसी गौशाला में हर गौमाता को उसके नाम से पुकारते हैं। दूध देने के लिए जिस गौमाता को बुलाते हैं वही गौ माता बाहर आती है। दस दिन का बच्चा भी दूध पीने के लिए मां का नाम सुनकर बाहर आता है।
मैं सभी से यह कहना चाहता हूं कि आप अपनी माता को सम्मान पूर्वक रखना सीखें। और गाय, कृषि तथा गौ आधारित भारत का पुनःनिर्माण करें।
गोपाल सुतारिया
(बंसी गौशाला)