Homeसमाचारगाय बचेगी तो देश बचेगा – राजेंद्र लुंकड़

गाय बचेगी तो देश बचेगा – राजेंद्र लुंकड़

गौविज्ञान संशोधन संस्था के राजेन्द्र जवाहरलाल लुंकड़ कई दशकों से गौसेवा कर रहे हैं।  उन्होंने कामधेनु भारत को बताया कि पूरे भारत में गौविज्ञान को बढ़ाने का प्रयत्न करने वाले मोरोपंत जी पिंगले के आशीर्वाद से गौविज्ञान संशोधन संस्था का काम चल रहा है।

सबसे पहले हमने पंचगव्य औषधि की बिक्री शुरू की। मुंबई, नागपुर और अकोला में बनने वाली औषधियों को बेचने के साथ ही एक डॉक्टर के साथ हमने दवाखाना भी शुरू किया।

गौ आधारित खेती

इसके बाद हमने गौ आधारित खेती के लिए प्रयत्‍न किया और मांजनतुंबा नगर से काम शुरू किया। गौआधारित खेती के लिए किसानों की एक मीटिंग की जिसमें 300 किसान सम्मिलित हुये। इनमें से कुछ किसानों ने गौअधारित खेती करने का फैसला किया। उस साल 17 एमएम बरसात हुयी जिसके कारण सिर्फ़ उन्ही किसानों का उस पानी के अंदर अच्छा उत्‍पादन हुआ, जो जैविक खेती कर रहे थे। दूसरों के खेत में कुछ नहीं हुआ। इसके बाद बाकी के गांव वालों ने भी गौआधिरित खेती पर ध्यान दिया। उसके बाद 85 किसान हमसे जुड़ें। हमने वहां के किसानों से कहा था कि अगर वो गौआधिरित खेती करेंगे तो हम उन्हें एक गाय देंगे जो बिनादूध वाली होगी। जिसे उन्हें संभालना होगा और गौमूत्र तथा गोबर के आधार पर उन्हें जैविक खेती करनी होगी। इस प्रकार के प्रयास से हमने वहां पर 53 गाय दीं। हर गाय को नाम दिया गया और  उनका फोटो लिया गया।

बचत ही आपका मुनाफ़ा

इसी प्रकार फाल्टन के पास एक गांव है वहां पर भी हमने काम शुरू किया। वहां का काम भी बहुत अच्छे तरीके से चल रहा है। आसपास के 5-10 गांव और भी हमसे जुड गये हैं। गौ आधारित उत्पादन में काफ़ी आमदनी है। एक किसान ने हमें बताया कि जैविक खेती में उसके 3 हज़ार 500 रुपये ख़र्च हुये और तीन महीने में 17 हजार रूपये प्राप्त हुये।

हम लोग लोगों को समझाते हैं कि आपकी बचत ही आपका मुनाफा है। आप 10 से 15 टका मुनाफ़ा लो, इससे अधिक की आशा न करो। अगर आप केमिकल की खेती करते तो 10-15 हजार खर्चा करना पड़ता, परंतु यहां पर आपको 3500 में काम हो गया। हम तो कहते हैं कि 10 टके में काम हो सकता है। ये प्रेक्टिकल आपने खुद करके देखा है। इसके आधार पर आप खेती करो। आप सबल और संपन्न हो जायेंगे।

ताज़ी सब्ज़ियों से रोज़ हज़ारों का मुनाफ़ा 

वहां पर एक कमिन्स की फैक्टरी है। उनसे संपर्क करके हमने कहा कि किसान जैविक खेती से पैदा की गईं ताज़ी सब्ज़ियाँ रोज़ आकर आपको देगा। उन्हें वहां सब्ज़ी बेचने दी जाय। वहां किसानों नें सब्ज़ी बेचना शुरू किया तो रोज़ 3 से 4  हजार नक़द मिलने लगे।  हर दो दिन के बाद अलग-अलग किसान वहां पर स्टॉल लगाते थे और अपना माल बेचकर जाते थे। बारी बारी से सबको यह मौका मिला।  

कम मुनाफ़े में अधिक फ़ायदा

हम किसानों से कहते हैं कि आपने जो खर्चा किया है वह लिखकर रखो। आपका लडका भी दो घंटे के लिए गया तो दो घंटे का खर्चा लिखो, पत्‍नी भी अगर गई तो उसका भी एक दो घंटे का खर्चा लिखो। माता-पिता भी गये तो उनका खर्चा भी लिखो। यानि सब का खर्चा टोटल खर्चा आपको पूरा लिखना है और इसे बेचते समय आपको जितना मिलाउसमें से कम कर देना है। ये जो बचा हुआ पैसा है वो आपका मुनाफ़ा है। जब आप यही खेती रासायनिक खाद से करते थे तब आपको 2 से 5 हजार ही मिलते थे। अब जैविक खेती से  आपको दस हजार मिल रहे हैं। मैं फिर कहूँगा कि आप अधिक कीमत पर बेचने की कोशिश न करें। 10-15 टका आप मुनाफ़ा लेकर बेचो, क्योंकि लेने वाला आपके पास माध्यम वर्ग आता है। उसके मन में ये होना चाहिये कि सस्ता मिल रहा है। ज्यादा कीमत लोगे तो वह कभी भी खरीददारी नहीं करेगा। इससे अपना माल बिकेगा नहीं। अच्छा होगा तो भी नहीं बिकेगा। परंतु अगर आप अच्छा भी देते हो और  बाजार भाव से 10 टका ज्यादा लेते हो तो लोग खुशी से देते हैं। अगर आप 50 टका जाओगे तो वह विचार करेगा।

इस प्रकार हम गांव को प्रबोधन करते हैं और इसके माध्यम से लोगों को प्रबुत्‍व करते हैं और उनका माल बेचने की व्यस्था करते हैं। हम किसानों से कहते हैं कि एक ही चीज में पूरा मत लगाओं। कांदा (प्याज़) है तो पूरा कांदा न लगाना। आप एक एकड़ कांदा लगाओ, एक एकड़ सब्जी लगाओ। इस प्रकार विभाजन करोगे तो फ़ायदे में रहोगे। एकदम बाजार में अधिक माल आने से कीमत घटती है, इससे आपको उचित भाव नहीं मिलेगा, जिससे आपने जो मेहनत की है वो खेत में बर्बाद हो सकता है। इस प्रकार उन लोगों को प्रबोधन करते हैं।

काम बढ़ता जा रहा है

इस प्रकार का काम बढ़ता ही जा रहा है। इसी आधार पर हम और गांव जोड़ रहे हैं, जिससे किसान स्वाबलंबी बने और उसके साथ में धन संपन्न भी बने। उनकी सारी पारिवारिक समस्या धन के माध्यम से काफी हद तक कम हो जाये। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा अच्छे से हो, जिससे वह भी आगे बढ़ सकें। इस तरह का प्रोत्‍साहन हम लोग देते हैं।  

महिलओं का संगठन भी बना हुआ है। उनसे भी कुछ काम लिया जाता है। बच्चों को भी संस्कार वर्ग के माध्यम से जोड़ा गया है। जिससे कोई निष्क्रिय न रहे। हर कोई अपना काम करता रहे। 

फ़ोन पर समस्या का निवारण

हम 24 घंटे फोन पर उपलब्ध होते हैं। फोन मे माध्यम से जो भी खेती से संबंधित समस्या होती है हम सुलझाते हैं। एक आदमी को हम गांव में रखते हैं जो यह देखता है कि कोई केमिकल का इस्तेमाल न करे। बिना केमिकल के वह खेती करता है या नहीं, उसका हम निरीक्षण कराते हैं। फिर पूना से एक निरीक्षक जाता है, जो गांवों में निरीक्षण करता है  कि कितने घरों में कितना काम हुआ।

जैविक खेती के अलावा जो दूसरे गौ उत्पाद हैं उनको भी हम बढ़ावा दे रहे हैं। गौ उत्पाद बनाना भी हम सिखाते हैं।

गौमूत्र के माध्यम से कैंसर और डीएनए दोनों रिपेयर होते हैं। इसकी औषधि पेडों में डालों तो कीड़ा नहीं  लगता।

इस प्रकार का प्रबोध्न करके हम काम कर रहे हैं। लोग गाय के प्रति आकर्षित हों। गाय का प्रोडक्ट बेचें। यही जागृति लोगों तक जाये। गाय बचेगी तो देश बचेगा यह हमारी मान्यता है।

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