महाराष्ट्र के भंडारा जिले में डेयरी का व्यवसाय करने वाले एक किसान को विदेशी नस्ल की गायें रखना भारी पड़ गया। 15 दिन बाद ही दूध उत्पादन गिरकर 250 लीटर प्रतिदिन से 50 से 60 लीटर प्रतिदिन हो गया। बैंक का व्याज बढ़ने लगा तो हताश होकर किसान ने देसी गौवंश का पालन शुरू किया और गोमूत्र और गोबर से उत्पाद तथा जैविक खाद बनाकर आज लाखों रूपये महीने कमा रहा है।
जिले के तुमसर तालुका स्थित सिंदपुरी गांव निवासी पवन काटनकर ने बैंक से भारी कर्ज लेकर डेयरी का व्यवसाय शुरू किया। बैंक के लोन से मिले पैसे से उन्होंने विदेशी नस्ल की दुधारू गायें खरीदी, जिनसे प्रतिदिन 250 से 300 लीटर दूध प्राप्त हो रहा था लेकिन यह स्थिति ज्यादा दिन तक नहीं रही। पवन काटनकर ने बताया कि महज 15 दिन बाद ही दुग्ध उत्पादन गिरकर 50 से 60 लीटर हो गया। अचानक कुछ दिन बाद ही गायें भी बीमार होकर मरने लगीं। डॉक्टर के बताये सारे उपाय बेकार साबित हो रहे थे। इन सबसे पवन हताश हो चुके थे। उसी समय उन्हें देवालापार के गौविज्ञान अनुसन्धान केंद्र के बारे जानकारी मिली तो वहां जाकर पवन ने एक सप्ताह का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के साथ ही उन्हें वहां से 5 देसी नस्ल की गायें और गौवंश भी प्रदान किये गए जिनके गोबर से पवन ने सर्वप्रथम केचुआ खाद तैयार किया जिसे आसपास के जैविक खेती करने वाले किसानों ने हाथों हाथ खरीद लिया। गोबर जैसे अपशिष्ट पदार्थ सें होने वाली आय ने पवन को उत्साह से भर दिया और फिर उन्होंने अपने खुद के स्वप्नपूर्ति नामक ब्रांड से उत्पाद तैयार करना शुरू किया। आज यह ब्रांड गौ आधारित उद्योग का एक पर्याय बन चूका है।
केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर नौकरी की बजाय गौ आधारित उद्योग चला रहे पवन के हमें बताया कि दूध की अपेक्षा दूध से निर्मित अन्य पदार्थ जैसे दही, पनीर, घी, खोआ, इत्यादि से अधिक आय अर्जित हो जाती है। तुमसर और भंडारा शहरों में 1 लीटर और 0.5 लीटर के पैक में दूध घरों में सप्लाई करते हैं। आर्डर पर अन्य उत्पाद भी सप्लाई करते हैं। लेकिन पवन का कहना है कि सबसे अधिक लाभ गाय के गोबर से तैयार वर्मी कम्पोस्ट यानी कि केचुआ खाद से होती है। उन्होंने बताया कि 8000 रूपये प्रति टन के भाव से वर्मी कम्पोस्ट खाद की विक्री हो जाती है। महीने में 10 से 15 टन वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाती है। वर्तमान में पवन के पास दर्जनभर से अधिक भारतीय नस्ल की उन्नत किस्म की गायें और गौवंश हैं, जिनके गोबर और गौमूत्र से कई अन्य उत्पाद भी बनाये जा रहे हैं जिनमें फर्श क्लीनर, हैण्डवाश, बर्तन धोने का लिक्विड, धूपबत्ती, मच्छरमार अगरबत्ती, और दंतमंजन मुख्य हैं।
पवन का कहना है कि विदेशी नस्ल की गायों ने मुझे कर्जदार बना दिया था, लेकिन देसी नस्ल की गायों ने न केवल कर्ज से मुक्ति दिला दी बल्कि आज मेरी आमदनी लाखों रुपये महीने की हो गई है।