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किसानों के लिए वरदान है देवलापार का गौ-विज्ञान अनुसन्धान केंद्र

गाय भारत की संस्कृति और समृद्धि की रीढ़ है – सुनील मानसिंगका

भारतीय नस्ल की गायों को बचाने और गौवंश अधारित जीविका से लगायत मानव सहित सम्पूर्ण प्रकृति की रक्षा के लिए प्रयत्नशील नागपुर के देवलापार स्थित गौ-विज्ञान अनुसन्धान केंद्र आज गौपालन और जैविक खेती करने के इच्छुक किसानों  के लिए वरदान बना हुआ है। यहाँ देश के विभिन्न क्षेत्रों से आकर किसान गौ आधारित शून्य लागत कृषि का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। साथ ही अदुग्धा गाय के पालन से कैसे अपनी आर्थिक उन्नति कर सकते हैं इसका भी प्रशिक्षण लेकर गोपालन का कार्य कर रहे हैं। इस केंद्र के समन्वयक हैं – श्री सुनील मानसिंगकाजी, जिनके दिशा-निर्देश में यह केंद्र गायों के अपशिष्ट का वाणिज्यिक उपयोग करने का प्रशिक्षण भी किसानों को देता है।

गौ अपशिष्ट से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण लेने वाले इच्छुक किसानों को देसी गायें और गौवंश केंद्र द्वारा दिए जाते हैं। कत्लखानों से बचाकर लायी गयी जिन गायों और गौवंशों का पोषण केंद्र की गौशाला में किया जाता है, उन्हीं गायों को किसानों को मुफ्त में दिया जाता है जिनकी जानकारी समय-समय पर केंद्र द्वारा ली जाती रहती है। हालाँकि केंद्र की अन्य दो और गौशालाओं में लगभग 800 गौवंश आश्रय पा रहे हैं, जिनसे दूध के अतिरिक्त गोबर और गोमूत्र भी प्राप्त होता है। प्राप्त गोबर से केंद्र में ही वर्मी कम्पोस्ट (केचुआ खाद) बनायी जाती है, जिसका उपयोग खेतों में जैविक खाद के रूप में किया जाता है। तथा गोमूत्र से अर्क और अन्य आयुर्वेदिक औषधियां बनायी जाती हैं। नागपुर के आसपास मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीमांत जनपदों के लाखों किसान देवलापार से गौ आधारित जैविक खेती का प्रशिक्षण ले चुके हैं। ये किसान पंचगव्य से जैविक खाद और कीटनाशक आदि घर पर ही बनाकर खेती में उपयोग करते हैं। इससे उनकी लागत शून्य हो जाती है और बेहतर उपज प्राप्त होती है। साथ ही देसी गाय के गोबर से अनेक उत्पाद जैसे गमले, धूपबत्ती, दीपक, दंतमंजन आदि तथा गोमूत्र से अर्क, फर्श क्लीनर, हैंडवाश तथा बर्तन धोने का लिक्विड आदि बनाकर अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं।

गौ– विज्ञान अनुसंधान केंद्र के समन्वयक श्री सुनील मानसिंगका गौ-आधारित जैविक खेती करने के लिए कई बड़ी कंपनियों के सहयोग से आस पास के जनपदों के किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने जैविक खेती के क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल करते हुए यह साबित किया है कि रासायनिक उर्वरक आधारित खेती की तुलना में जैविक खेती से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करने में गौ-आधारित जैविक खेती बहुत लाभदायक है। एक मुलाकात में सुनील मानसिंगकाजी ने गाय को भारत की संस्कृति और समृद्धता की रीढ़ बताते हुए कहा कि गाय की रक्षा से ही संस्कृति की रक्षा हो सकती है। उन्होंने पंचगव्य, गोबर खाद, केचुआ खाद, अमृत पानी, कामधेनु कीट नियंत्रक और गोबर गैस से होने वाले लाभ और जैविक खेती पर विस्तृत जानकारी भी दी। मानसिंगकाजी फिलहाल देश के कई विश्वविद्यालयों सहित अनेक गौ-सेवी संस्थानों के साथ गौ-विज्ञान अनुसन्धान केंद्र की अनुसंधानात्मक गतिविधियों का समन्वय कर रहे हैं।

केंद्र में पञ्चगव्य आधारित खेती के कई प्रयोग सफल हो रहे हैं। इसके अलावा गौमूत्र के चिकित्सकीय उपयोग को भी साबित किया गया है। केंद्र में सुप्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्यों की देखरेख में पंचगव्य आधारित आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण भी किया जाता है। 

गौ आधारित जैविक खेती करनेवाले किसानों ने रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के दुष्परिणामों के बारे में बताते हुए कहा कि जैविक विधि से खेती में उत्पन्न फसलों की गुणवत्ता तो अच्छी होती ही है साथ ही शून्य लगत पर उपज भी अधिक प्राप्त होती है। 

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