‘किसानों के खेतों में घुसता हुआ भूखा-प्यासा गौवंश’, ‘कूड़े के ढेरों से कूड़ा व पॉलिथीन खाता हुआ गौवंश’ और ‘सड़कों पर वाहनों से दुर्घटनाग्रस्त होता हुआ गौवंश’ का दिखना आम बात हो गयी है। अवैध रूप से हो रहे गौवंश के वध पर रोक तो लगी, लेकिन उनके रखरखाव और उपयोग की समानांतर व्यवस्था न होने के कारण छुट्टा गौवंश की समस्या बढ़ती जा रही है तथा यह जन आक्रोश का कारण भी बन रही है।
गौवंश का मुद्दा दशकों से सरकारी अदूरदर्शिता से ग्रसित रहा है। अधिक दूध उत्पादन के लालच में हमने जर्सी, होल्सटीन फ्रिजियन जैसी विदेशी नस्लों को बढ़ावा देने से पहले यह नहीं सोचा कि छह-सात ब्यांत के बाद जब ये गाय दूध देना कम कर देंगी तो उनका क्या होगा, उनके नर बछड़ों का क्या होगा?
विदेशों में दूध कम देने के बाद गायों और नर बछड़ों को कत्लखाने भेज दिया जाता है। भारत में गौवंश, खासकर गाय के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण देश के अधिकांश राज्यों में गौमांस भक्षण और गौहत्या कानूनन अपराध है और सामाजिक रूप से भी पूरी तरह घृणित और निंदनीय है। भारतीय संस्कृति में इसे सबसे घृणित पापकर्म माना जाता है। ऐसी स्थिति में अनुपयोगी गौवंश या तो अवैध रूप से कत्लखाने जाएगा या किसानों और गौशालाओं के ऊपर भार बनकर रहेगा। देश में बढ़ रहे अनुपयोगी गौवंश को उपयोगी बनाने के लिए कुछ मुख्य बिंदुओं पर सरकार को ध्यान देना होना। आमतौर पर वर्तमान मशीनी युग में यह मान लिया गया है कि पशु पालन अलाभकारी कार्य है लेकिन वस्तुतः ऐसा है नहीं।
देश में यदि अधिकाधिक गौ-आधारित जैविक कृषि को सुनिश्चित किया जाय और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का गोबर-गोमूत्र से बने कंपोस्ट, बायोगैस की स्लरी व जैविक कीटनाशकों से रिप्लेसमेंट किया जाय तो न केवल फसल की गुणवत्ता में वृद्धि होगी बल्कि उत्पादन में भी वृद्धि होगी। क्योंकि जैविक कृषि से भूमि को अतिरिक्त पोषक तत्व प्राप्त होंगे।
इस प्रकार 5 वर्षों में संपूर्ण कृषि गौ-आधारित बनायी जा सकती है। इसके अंतर्गत सरकार द्वारा बैलों का उपयोग बढ़ाने, उन्नत बैल चालित यंत्रों जैसे बैल चालित ट्रैक्टर, सिंचार्इ पंप, जनरेटर, आटा चक्की, कोल्हू, बैल गाड़ियों आदि के विकास एवं वितरण को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके लिए डीजल ट्रैक्टर और अन्य उपकरणों पर दिये जाने वाले सरकारी अनुदान को कम करते हुए बैल चालित यंत्रों पर अनुदान की व्यवस्था की जानी चाहिए। गौ-आधारित जैविक कृषि में इनके उपयोग के अतिरिक्त इनसे विभिन्न औषधियों तथा अन्य कर्इ जीवनोपयोगी वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है। देशी गाय के पंचगव्य (गोबर, गोमूत्र, दूध, दही व घी) से निर्मित औषधियों की प्रामाणिकता सिद्ध की जा चुकी है।
सरकारी उपयोग हेतु अधिक से अधिक पंचगव्य से निर्मित वस्तुओं का क्रय किया जाना चाहिए। बड़े बायोगैस प्लांट स्थापित कर उनसे सीएनजी और विद्युत के उत्पादन को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
अगर सस्ता भूसा चारा उपलब्ध हो, जैविक कृषि में गोबर और गोमूत्र का उपयोग हो, पंचगव्य से औषधियां और अन्य जीवनोपयोगी पदार्थ बनाए जाएं, बैलों का बेहतर उपयोग किया जाए तो गौवंश कभी भी आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी नहीं है।
…….. पी. कुमार संभव