कान्हा की नगरी मथुरा में जर्मनी की फ्रेडरिक इरिन ब्रुइनिंग उर्फ सुदेवी दासी अपना घर परिवार सब कुछ छोड़कर मथुरा में लगभग चालीस साल से बीमार गायों की सेवा कर रही हैं.
पद्मश्री से सम्मानित फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग 19 साल की उम्र में दुनिया भर के तमाम देशों की यात्रा पर निकलीं थीं और 1977 में भारत पहुंची. फिर यहीं की होकर रह गईं. किसी ने उन्हें गाय पालने की सलाह दी तो उन्होंने गाय पाल ली. धीरे-धीरे उन्हें गाय से लगाव हो गया. एक दिन उन्होंने सड़क किनारे एक बीमार गाय को तड़पते हुए देखा. गाय की हालत देखकर उन्होंने उसकी सेवा का निर्णय लिया. इसके बाद उन्होंने गोवर्धन के समीप कोन्हाई गाँव में ज़मीन किराये पर ली और ‘राधा सुरभि’ नाम से गोशाला की शुरुआत की. फ्रेडरिक इरिन ब्रुइनिंग का पूरा जीवन गौसेवा को समर्पित है. लोग उन्हें ‘सुदेवी’ के नाम से पुकारते हैं.
उनकी गोशाला में करीब दो हज़ार गायें रहती हैं, जिनमें से अधिकांश अपाहिज, नेत्रहीन और गंभीर रूप से बीमार हैं. गायों की देखरेख और सेवा-सुश्रुषा वह अपने कुछ गो सेवकों के साथ करती हैं. गोशाला की अपनी एम्बुलेंस है, जो रोज़ बीमार गायों को लाती है. सुदेवी ने अपनी गोशाला में करीब 80 लोगों को काम दिया हुआ है. गोशाला की आय से उनके परिवार चलते हैं.
गोमाता के दूध को सुदेवी अपने निजी कार्य में नहीं लेतीं। बछड़े से बचे हुए दूध को अन्य अनाथ बछड़ों को पिलाया जाता है। गोवंश की जिंदगी बचने की संभावना नगण्य प्रतीत होती हैं, तो सुदेवी गोवंश को गंगाजल, राधाकुंड का जल, भगवान का चरणामृत पिलाती हैं। समीप हरे कृष्ण- हरे राम की धुन बजती है। मृत्यु उपरांत गोवंश का विधि विधान से अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।
सुदेवी कहती हैं कि प्रत्येक गांव में गोबर खरीदने के सेंटर खोले चाहिए. जिससे आर्थिक स्थिति के कारण लोग गोवंश को दूध बंद होने पर छोड़े नही. इस गोबर की खाद बनाकर किसानों को दिया जाए. इससे न सिर्फ गोवंश का पालन होगा, बल्कि फसल भी स्वास्थ्य वर्धक मिलेगी.