गौमाता के देह में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है. वेदों के साथ ही वृहत्पाराशर स्मृति, पद्म पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, स्कन्द पुराण और महाभारत में भी गौ माता के शरीर में विभिन्न देवों की स्थिति का वर्णन विस्तार से उपलब्ध है.
यहाँ हम भविष्य पुराण के उत्तर पर्व (69/25-37) में वर्णित मन्त्रों की चर्चा कर रहे हैं –
शृगमूले गवां नित्यं ब्रह्मा विष्णुश्च संस्थितौ।
शृगाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावराणि चराणि च ।।25।।
गौओं के सींग के मूल में सदा ब्रहमा और विष्णु प्रतिष्ठित हैं। अग्रभाग में चराचर समस्त तीर्थ स्थित हैं।
शिवो मध्ये महादेवः सर्वकारणकारणम्।
ललाटे संस्थिता गौरी नासावंशे च षण्मुखः।।26।।
सभी कारणों के कारण महादेव शिव सींगों के मध्य में, ललाट में गौरी तथा नासिकास्थि में भगवान कार्तिकेय स्थित हैं।
कम्बलाश्वतरौ नागौ नासापुटसमाश्रितौं।
कर्णयोऽश्विनौ देवौ चक्षुम्र्यां शशिभास्करौ।।27।।
नासिका छिद्रों में कम्बल व अश्वतर नाग, कानों में अश्विनी देव व आँखों में चन्द्र व सूर्य स्थित हैं।
दन्तेषु वसवः सर्वे जिह्वायां वरूणः स्थितः।
सरस्वती च कुहरे यमयक्षौ च गण्डयोः।।28।।
गौ के दांतों में आठों वसु, जीभ में वरूण, कण्ठ में माता सरस्वती व गण्डस्थलों में यमराज व यक्षगण स्थित हैं।
सन्ध्याद्वयं तथोष्ठाभ्यां ग्रीवायां च पुरन्दरः।
रक्षांसि ककुदे द्यौश्च पाष्र्णिकाये व्यवास्थिता।।29।।
दोनां होंठों में दोनों सन्ध्यादेवियाँ ग्रीवा में इन्द्र ककुद में राक्षस, पाष्र्णि भाग में आकाश व्यवस्थित है।
चतुष्पात्सकलो धर्मों नित्यं जंघासु तिष्ठति।
खुरमध्येषु गन्धर्वाः खुराग्रेषु च पलगाः।।30।।
चारों चरणों से युक्त धर्म जंघाओं में, खुरों में गन्धर्वदेवगण, खुरों के अग्रभाग में सर्प निवास करते हैं।
खुराणां पश्चिमे भागे राक्षसाः सम्प्रतिष्ठिताः।
रूद्रा एकादश पृष्ठे वरूणः सर्वसन्धिषु।।31।।
खुरों के पश्चिमी भाग में राक्षसगण, पीठ में ग्यारह रूद्र तथा सभी जोडों में वरूण देव प्रतिष्ठित हैं।
श्रोणीतटस्थाः पितरः कपोलेषु च मानवाः।
श्रीरपाने गवां नित्यं स्वाहालंकार माश्रिताः।।32।।
गौ की कमर में पितरगण, कपोलों में मानव, अपानभाग में स्वाहा देवी के साथ अलंकार रूप में लक्ष्मी जी आश्रित हैं।
आदित्या रश्मयो बालाः पिण्डीभूता व्यवस्थिताः।
साक्षाद्गंगा च गोमूत्रे गोमये यमुना स्थिता।।33।।
सूर्य किरणें केश समूहों में पिण्डीरूप में, गौ के मूत्र मेें साक्षात गंगा व गोबर में यमुना जी व्यवस्थित हैं।
चयस्त्रिंशद् देवकोट्यो रोमकूपे व्यवस्थिताः।
उदरे पृथिवीं सर्वा सशैलवन काननाः।।34।।
सभी रोमकूपों में तैंतीस कोटि देवता, पेट में पर्वतों व वनों से सुशोभित पूरी पृथ्वी व्यवस्थित हैं।
चत्वारः सागराः प्रोक्ता गवां ये तु पयोधराः।
पर्जन्यः क्षीरधारासु मेघा विन्दु व्यवास्थिताः।।35।।
चारों पयोधरों में चार महासागर, दूध की धारा में पर्जन्यदेव तथा दुग्ध बिन्दुओं में मेघ नामक देवता व्यवस्थित हैं।
जठरे गार्हपत्योग्निर्दक्षिणाग्नि हृदि स्थितः।
कण्ठे आहवनीयोऽग्निः सम्योऽग्निस्तालुनि स्थितः।।36।।
गौ की जठराग्नि में गाहिपत्याग्नि, हृदय में दक्षिणाग्नि, कष्ठ में आहवनीय अग्नि और तालु में सम्याग्नि स्थित हैं।
अस्थिव्यवस्थिताः शैला मज्जासु क्रतवः स्थिताः।
ऋग्वेदोऽथर्ववेदश्च सामवेदो यजुस्तथा।।30।।
गौ की अस्थियों में पर्वत, मज्जओं में यज्ञ देव तथा चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद) भी प्रतिष्ठित हैं।