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सुप्रीम अदालत ने गोकशी को ग़लत माना

एक तरफ गोकशी को लेकर देश भर में सुप्रीम अदालत ने गोकशी को ग़लत माना सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ गोकशी पर रोक को सही ठहरा चुकी है. 

इस संविधान पीठ की अध्यक्षता करने वाले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोती ने सुप्रीम कोर्ट के ही 47 साल पुराने फैसले को पलट दिया था. 

वर्ष 1958 में सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गोकशी पर रोक लगाने वाले बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कानून को गलत बताते हुए रद्द कर दिया था. उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि गोकशी या बैल सांड आदि की कटाई पर पूरी तरह रोक लगाना जनहित में नहीं है. इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा था कि गोमांस या भैंसे का मांस भारत मे बड़ी संख्या में लोगों के भोजन का हिस्सा है. गरीब लोग इससे अपनी प्रोटीन आदि की जरूरत पूरी करते हैं. साथ ही कोर्ट ने कहा था कि जो गायें दूध नहीं देतीं या जो बैल खेती या किसी काम के नहीं हैं, उन्हें रखना बेकार है, उनकी कटाई हो जानी चाहिए.

लेकिन 47 साल बाद 26 अक्टूबर 2005 को सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1958 का फैसला पलट दिया. कोर्ट ने गोमांस और भैंसे के मांस को भोजन का महत्वपूर्ण जरिया  मानने की दलील खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि भारत में अब भोजन की कमी की समस्या नहीं है. यहां ज्यादा प्रोटीन वाला भोजन उपलब्ध है. समस्या सिर्फ उसके सही वितरण की है।

इस फैसले में कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 48 में गोकशी रोकने की सरकार की जिम्मेदारी का भी हवाला दिया. कोर्ट ने गुजरात राज्य बनाम मिर्जापुर मोती कुरैशी कसाब जमात व अन्य के बारे में दिए गए अपने इस फैसले के पैराग्राफ़ 67 में कहा था कि भारत के हर नागरिक और राज्य को जीवित प्राणी के प्रति सहृदय होना चाहिए. उसके प्रति दया की भावना होनी चाहिए.

फ़ैसले में कहा गया कि जीवित प्राणियों के प्रति सहृदयता की अवधारणा संविधान के अनुच्छेद 51ए जी में दी गई है, जो कि भारत की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित है. ये महात्मा गांधी, बिनोवा भावे, महावीर, बुद्ध नानक आदि की भूमि है. दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई भी धर्म या पवित्र ग्रन्थ क्रूरता का पाठ नहीं पढ़ाता और न ही क्रूरता को बढ़ावा देता है. भारतीय समाज बहुलता का समाज है। यहां अनेकता में एकता है. सभी एक सुर में कहते हैं कि किसी भी जीवित प्राणी के प्रति क्रूरता समाप्त होनी चाहिए. 

उस फैसले के इन अंशों को अहिंसा के दर्शन रखने वाले जैन पर्व पर्युषण के दौरान मांस बिक्री रोकने को सही ठहराने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किए हैं. उस फैसले में कोर्ट ने गाय और बैलों की उपयोगिता और गोबर के महत्व को भी दर्ज किया है. 

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