गोकशी भारत में एक विवादास्पद विषय बन गया है, इसीलिए गोकशी को लेकर बनाये जाने वाले क़ानून प्रभावी नहीं हो पाते. जबकि धर्म और आस्था ही नहीं, सामाजिक रूप से भी गोहत्या का सदैव निषेध होता रहा है. गोकशी रोकने के लिये भारत के विभिन्न राज्यों में कानून भी बनाये गये हैं।
संविधान निर्माताओं ने राज्यों को दिए नीति-निर्देशक सिद्धांतों में गौवध एवं अन्य दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाने का परामर्श दिया है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 के मुताबिक राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों के माध्यम से बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे. हालांकि इस अनुच्छेद में किसी भी राज्य के लिए इस कानून को बनाने की बाध्यता नहीं रखी गई.
संविधान लागू होने के तुरंत बाद अधिकांश राज्यों ने गाय के संरक्षण और उसके वध पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाया. ‘असम मवेशी संरक्षण अधिनियम’ 1950 में ही आ गया. उसके बाद अधिकांश राज्यों ने अपने यहां 1955 में कानून बनाए. फिर उसके बाद के बरस में भी कानून बनते रहे.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 (ए) पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार तथा वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा की बात करता है. संविधान (42 वाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा अनुच्छेद 48 (ए) जोड़ा गया. जिसमें गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाने के लिए स्पष्ट रूप से कहा गया है.
भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्यों को गायों और बछड़ों और अन्य दुश्मनों और मसौदे के मवेशियों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है. 26 अक्टूबर 2005 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अधिनियमित विरोधी गाय हत्या कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। भारत में 29 राज्यों में से 20 में वर्तमान में हत्या या बिक्री को प्रतिबंधित करने वाले विभिन्न नियम हैं.
भारत में मौजूदा मांस निर्यात नीति के अनुसार, गोमांस (गाय, बैल का मांस और बछड़ा) का निर्यात प्रतिबंधित है. मांस, शव, बफेलो के आधे शव में भी हड्डी निषिद्ध है और इसे निर्यात करने की अनुमति नहीं है.
26 मई 2017 को केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने पूरे विश्व में पशु बाजारों में वध के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाया, जिसमें पशु विधियों की क्रूरता की रोकथाम के तहत हालांकि जुलाई 2017 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंध को निलंबित कर दिया.
अहिंसा के नैतिक सिद्धांत के अनुसार विभिन्न भारतीय धर्मों भी गोहत्या का विरोध करते हैं.
गाय जीव और जीवन दोनों के लिए आवश्यक है. गाय आजीविका का एक अभिन्न हिस्सा है. गोवंश के उत्पाद हमारी आर्थिक आवश्यकता भी पूरा करते हैं.