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बांग्लादेशी तस्करों के जाल में फँसी गौमाता सालाना 40 हज़ार करोड़ की गौतस्करी

बांग्लादेश तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है। दोनों देशों के बीच 4,156 किलोमीटर लंबी सीमा है, जो दुनिया का पांचवां सबसे लंबा बॉर्डर एरिया है। पश्‍चिम बंगाल और असम के कर्इ इलाके जमीन और जलमार्ग से बांग्लादेश से जुड़े हुए हैं। गायों की तस्करी के लिए जल और जमीन दोनों ही रास्तों का इस्तेमाल हो रहा है। पश्‍चिम बंगाल में 2,216 किलोमीटर लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा के जरिए हर साल बड़ी संख्या में मवेशियों की बांग्लादेश में तस्करी होने का अनुमान है। सीमावर्ती क्षेत्र मालदा-मुर्शिदाबाद के कच्चे रास्ते से रोजाना गायें बांग्लादेश पहुंचती हैं। 

सीबीआर्इ का मानना है कि जिस संख्या में गायों की तस्करी होती है उसमें से केवल पांच फीसदी ही बीएसएफ के जवान रोक पाते हैं। बाकियों की या तो जानकारी कम है या फिर मिलीभगत है। अब सीबीआर्इ इसके पीछे काम करने वाले सिंडिकेट के बीच सांठगांठ का खुलासा करने की कोशिश में है। 

एक समाचार के मुताबिक संदेह के आधार पर सीबीआर्इ ने कर्इ बड़े नाम वालों को गायों की तस्करी में लिप्त होने का अनुमान लगाया है। इनमें से एक नाम तो तृणमूल कांग्रेस के एक नेता का भी है। कहा जाता है कि पशु तस्करी करके इस नेता ने काफी धन बनाया है इसकी जांच भी अब एजेंसी कर रही हैं। 

बांग्लादेश में गायों की कीमत नस्ल और ऊंचार्इ के आधार पर तय होती है। जैसे हरियाणा और यूपी की नस्लें ज्यादा कीमत पर बिकती हैं, जबकि बंगाल की गायों की कीमत अपेक्षाकृत कम है। र्इद के दौरान इनकी मांग बढ़ने से कीमत भी ज्यादा हो जाती है। जब कभी किसी गिरोह द्वारा तस्करी की जा रही गायों को बीएसएफ जब्त करती है और बाद में उनकी नीलामी होती है तो इनकी कीमत जानबूझकर कम लगार्इ जाती है। यह कीमत भी तस्करी में शामिल लोगों द्वारा ही तय की जाती है। साथ ही केवल कुछ ही व्यापारियों को कम कीमत पर इन्हें खरीदने की इजाजत मिलती है। नीलामी के बाद गायों को दोबारा बढ़ी हुर्इ कीमत पर व्यापारी बांग्लादेशी तस्करों को बेच देते हैं। गायों या दूसरे मवेशियों की तस्करी के लिए तस्कर आए दिन नए तरीके अपनाते हैं। लंबा-चौड़ा बॉर्डर होने के कारण उसके चारों ओर बाड़ नहीं लगायी जा सकती और न ही सीमा पर उतनी पक्की चौकसी हो पाती है। इसी बात का फायदा तस्कर उठाते हैं। कर्इ बार गायों को सीमा पार ले जाने के लिए महिलाओं या बच्चों का इस्तेमाल भी होता है क्यों कि उन पर आसानी से शक नहीं किया जाता। लीवर के इस्तेमाल से भी मवेशी सीमा पार भेजे जाते हैं, जिसे झूला तकनीक कहते हैं। ये तकनीक छोटे मवेशियों के लिए इस्तेमाल होती है। साल 2016 में सीबीआर्इ ने इस तस्करी का अनुमानित फायदा लगभग 15 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा माना था। इसके अलावा असम से भी तस्करी होती है। आंकड़ों के लिहाज से भी ये मुद्दा गंभीर दिखता है। साल 2014 में तस्करी करके ले जाए जा रहे करीब एक लाख दस हजार पशुओं को बीएसएफ ने जब्त किया था। साल 2016 तक आते – आते सीमा पर जब्त पशुओं की संख्या एक लाख 69 हजार तक पहुंच गर्इ। जब्ती की इस संख्या से इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि सही मायने में कितने पशुओं की तस्करी हुर्इ। एक बात ये भी है कि बांग्लादेश में पशु तस्करी को अपराध नहीं माना जाता, बल्कि ये वहां की सरकार के लिए राजस्व का जरिया है। भारत का तस्कर बांग्लादेश की सीमा में जाते ही पशुओं के बदले टैक्स चुकाता है और बाकायदा व्यापारी कहलाता है। बांग्लादेश में पशुओं को खरीदकर ज्यादा कीमत पर दूसरे बीफ खाने वाले देशों को भी बेचा जाता है। ये भी वहां आय का एक जरिया है। साथ ही पशुओं से जुड़े चमड़ा उद्योग भी वहां खूब चलते हैं। तो कुल मिलाकर हमारे यहां के मवेशी पड़ोसी देश की जीडीपी में योगदान दे रहे है। 

भारत से गायों की तस्करी को लेकर सीबीआर्इ ने चौंकाने वाला खुलासा किया है कि देश के गायों की खेप की खेप बांग्लादेश सीमा के जरिए बाहर पहुंचायी जा रही हैं। यहां तक कि इस तस्करी में बीएसएफ और कस्टम वालों के अलावा कर्इ सफेद पोश लोगों की मिलीभगत बतायी जा रही है। 

एक प्रमुख समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट के अनुसार भारत-बांग्लादेश सीमा पर गौतस्करी का धंधा सालाना 35-40 हजार करोड़ रुपये का है। भारत में जिस गाय की कीमत 20 हजार होती है बॉर्डर पार करवाते ही बांग्लादेश में वह औसतन 50 हजार में बिकती है ।

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