प्राचीन वैदिक ‘गोसंस्कृति’ को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से वर्ष 2006 में ‘बंसी गीर गौशाला’ की स्थापना श्री गोपालभाई सुतरिया द्वारा की गई थी।
बंसी गीर गौशाला में 700 से अधिक गीर गौमाता और नंदी हैं. गोपालभाई के प्रयासों के परिणामस्वरूप गोपालन और गोकृषि के क्षेत्र में एक आदर्श बनी बंसी गीर गौशाला आयुर्वैदिक उपचार के क्षेत्र में प्रभावशाली अनुसंधान और निर्माण का कार्य भी कर रही है। 2017 में भारत सरकार द्वारा बंसी गीर गौशाला को ‘कामधेनु पुरूस्कार’ भी प्राप्त हो चुका है। यह भारत की पहली क्रमांकित गौशाला है और गीर गायों के संवर्धन के साथ इसकी पवित्रता और विश्वसनीयता के कारण बंसीगीर गौशाला भारत की ‘नंबर 1’ गौशाला घोषित की जा चुकी है।
बंसी गीर गौशाला में नंदी या वृद्ध गौमाता का साथ कभी नहीं छोड़ा जाता। कभी भी गौमाता को दिए जाने वाले भोजन और पानी की गुणवत्ता या मात्रा पर कोई समझौता नहीं किया जाता, भले ही वह कितना भी दूध दे। यहाँ प्रजनन के लिए या दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान या हार्मोन उपचार का उपयोग नहीं किया जाता। इस गौशाला में गौमाता की देखभाल के लिए 36 गोपालकों का एक अनुभवी कार्यबल है।
बंसी गीर गौशाला में ‘दोहन’ की प्राचीन भारतीय परंपरा का पालन किया जाता हैं, जिसके अनुसार बछड़ा दो आंचल से दूध पीने के लिए स्वतंत्र है, और शेष दो आंचल का उपयोग मनुष्यों सहित अन्य प्राणियों के लिए दूध प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।
आयुर्वेद का उपयोग-स्वास्थ्य और जीवनशक्ति बढ़ाने के लिए विभिन्न आयुर्वैदिक जड़ी बूटियों को मौसम और ऋतु के आधार पर गौमाता के भोजन में मिलाया जाता है। जहां तक संभव हो, बीमार गौमाता का इलाज भारतीय आयुर्वैदिक प्रणाली का उपयोग करके किया जाता है, और आधुनिक चिकित्सा का उपयोग कम से कम किया जाता है।
बंसी गीर गौशाला में 4 लाख गज से अधिक खुली चराई की जगह है जिसका पोषण जैविक खाद द्वारा किया जाता है। इस गौशाला के शोध और अवलोकन के अनुसार गौमाता जिंजुआ किस्म की घास को पसंद करती है। यह घास अन्य व्यावहारिक लाभों के साथ, पोषण और औषधीय मूल्य में समृद्ध है। एक बार लगाए जाने के बाद, यह घास 30 से अधिक वर्षों तक भूमि नहीं छोड़ती है, और यह हर 20 दिनों में 2 से 2 .5 फीट तक बढ़ती है। अपनी ‘जिंजुआ घास योजना’ के तहत, किसानों के लिए मुफ्त जिंजुआ घास के बीज की व्यवस्था की जाती है। अब तक 5000 से अधिक किसानों ने इस योजना का लाभ उठाया है।
गौशाला अपने दिव्य वातावरण की पवित्रता को बनाए रखने के लिए दैनिक वैदिक हवन करती है। भक्ति संगीत और संस्कृत मंत्र भी हर दिन पृष्ठभूमि में बजाए जाते हैं, जो गौमाता को आनंदित और स्वस्थ रखने में मदद करता है।
बंसी गीर गौशाला भारतीय गौमाता की नस्ल को मजबूत करने के लिए नंदी को समग्र भारत में विश्वसनीय गौशाला और गांवों में प्रजनन के लिए देती है। यहाँ कभी गौमाता या नंदी को बेचा नहीं जाता बल्कि नंदी को सीमित अवधि के लिए आमतौर पर 3 साल तक के लिए दिया जाता है ।
बंसी गीर गौशाला ने औषधीय और साथ ही पंचगव्य आधारित अवयवों के संयोजन का उपयोग करके आयुर्वेदिक दवाओं की एक विस्तृत शृंखला विकसित की है। आम जनता के लिए इस गौशाला में मुफ्त आयुर्वैदिक निदान और उपचार क्लिनिक भी है।