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गौ काष्ठ से पर्यावरण संरक्षण

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. पर्यावरण सुरक्षा के लिए पेड़ों को संरक्षित रखना अत्यंत आवश्यक है. पेड़ काटने से जल संकट, शुद्ध वायु और ऑक्सीजन का संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. हर साल लाखों पेड़ लकड़ियां पाने के लिए काट दिये जाते हैं. ऐसे में लकड़ी का विकल्प ही पेड़ों की कटाई पर अंकुश लगा सकता है. 

लकड़ी का विकल्प पाने के लिए गोवंश को बचाना होगा, क्योंकि गोवंश के गोबर से लकड़ियाँ बनाई जा सकती हैं. कई राज्यों में गोबर के इस्तेमाल से लकड़ियां बनाने का काम किया जाने लगा है. इसे और अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इससे पर्यावरण के साथ ही गायों का संरक्षण भी किया जा सकेगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

गाय के गोबर से हवन सामग्री से लेकर व्यक्ति के अंतिम संस्कार तक में प्रयोग की जाने वाली लकड़ियां बनाई जा सकती हैं. धार्मिक और सामाजिक क्रियाकलापों में गाय के गोबर से बनी लकड़ी का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है. लकड़ियों के लिए पेड़ों की कटाई रोकने का ये सबसे अच्छा विकल्प है.

गौ काष्ठ बनाने के लिए रोज़गार के अवसर खुलने पर लोग सड़कों पर आवारा घूमती, बिनदुधारू, बूढ़ी गाय को पालेंगे और गाय के गोबर को बेंचकर आर्थिक लाभ प्राप्त करेंगे.  

गौ काष्ठ ऊर्जा का सर्वोत्तम वैकल्पिक साधन है. 

गौ काष्ठ हस्थ चलित और विद्युत मशीन दोनों तरीके से तैयार की जा सकती है. 

गाय के गोबर में सूखा भूसा और घास मिलाकर मशीन से प्राकृतिक लकड़ी तैयार की जाती है. ये ईको-फ्रेंडली ईंधन बेहद सस्ता और प्रदूषण रहित है. ये घरेलू और औद्योगिक दोनों प्रकार की जरूरतों को पूरा करता है.  

गौ काष्ठ बनाने के लिए मशीन में गोबर का मिश्रण डाला जाता है जिसे 4 से 5 फिट लंबे लकड़ी के आकार में ढ़ाला जाता है. इसको 5 से 6 दिन तक सुखाया जाता है और गौ काष्ठ जलाने के लिये तैयार हो जाता है.  की लागत करीब 7/- रुपये प्रति किलो पड़ती है।

पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण गौ काष्ठ में, एक ओर जहां ईंधन के बेहतर विकल्प के रूप में उपयोग की अत्यधिक  संभावनाऐं विद्यमान हैं, वहीं गौ काष्ठ को स्थानीय बाजार में बेचने से कृषक और गौशालाओं को आर्थिक लाभ भी प्राप्त होगा. गो काष्ठ से पर्यावरण और पेड़-पौधे सुरक्षित रहेंगे, धुएं से निजात मिलेगा और प्रदूषण पर नियंत्रण होगा.

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