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गोमूत्र कीटनाशक

गोमूत्र का प्रयोग फसल सुरक्षा रसायन के रूप में कीड़ों के नियंत्रण के लिये किया जाता है| 

गोमूत्र में नाइट्रोजन, गन्धक, अमोनिया, कापर, यूरिया, यूरिक एसिड, फास्फेट, सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीज, कार्बोलिक एसिड इत्यादि पाये जाते हैं और इसके अतिरिक्त लवण, विटामिन ए, बी, सी, डी, ई, हिप्युरिक एसिड, क्रियाटिनिन, स्वर्ण क्षार पाये जाते हैं|

गाय के एक लीटर गोमूत्र को एकत्रित कर 40 लीटर पानी में घोलकर यदि दलहन, तिलहन और सब्ज़ी आदि के बीज को 4 से 6 घंटे भिगो कर खेत में बुवाई की जाती है तो बीज का अंकुरण अच्छा, जोरदार और रोग रहित होता है। बीज जल्दी जमता है। इसके इस्तेमाल से भूमि के लाभकारी जीवाणु भी बढ़ते हैं। जो भूमि ख़राब है वो ठीक हो जाती है| सिंचाई के लिए कम पानी की ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि भूमि की बारिश का पानी सोखने और रोकने की क्षमता बढ़ जाती है| गोमूत्र कीटनाशक से फसल हरी-भरी हो जाती है और रोगों का प्रकोप कम होता है|

कीटनाशक

दो से तीन लीटर गोमूत्र को 15 दिन तक किसी डिब्बे में भरकर सड़ाने के बाद छानकर इसे 50 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करने से कई प्रकार के कीड़े, नियन्त्रित होते हैं| जैसे पत्ती खाने वाला कीड़ा, फल छेदने वाला कीड़ा, तना छेदक आदि| 

गोमूत्र और कुछ वनस्पतियों को मिलाकर बनाया गया कीटनाशक लगभग सभी प्रकार के कीड़ों से नियंत्रण करता है| ये कीटनाशक कुछ रोगों और फसल पर पोषक तत्व के पूरक के रूप में भी प्रभावशाली होता है| इसके छिड़काव के बाद नील गाय तथा जंगली जानवरों से भी फसल सुरक्षित रहती है| 

इसे बनाने के लिये 20 लीटर गोमूत्र एकत्र करके इसे किसी प्लास्टिक डिब्बे या ड्रम में डाल देना चाहिये, इसके बाद उसमें 5 किलोग्राम नीम की ताजी पत्तियाँ तोड़कर डालनी चाहिये|

नीम की पत्ती डालने के बाद 2 किलोग्राम धतूरा के पंचाग अर्थात् जड़, तना, पत्ती, फूल, फल इत्यादि को ताजा या सुखाकर डालना चाहिये| इसके बाद दो किलोग्राम मदार जो पचांग या पत्ती के रूप में हो सकता है, को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर डालना चाहिये, इसके बाद 500 ग्राम लहसुन को कुचलकर उसमें डालना चाहिये|

इसके बाद 250 ग्राम तम्बाकू की पत्तियों को डालना चाहिये| इसके बाद अन्त में 250 ग्राम लाल मिर्च पाउडर को डालकर डिब्बे में किसी लकड़ी की सहायता से हिलाकर ढक्कन को बंद कर अच्छी तरह वायुरोधी बनाकर खुले स्थान पर रख देना चाहिये| ध्यान रहे कि डिब्बे पर धूप लगनी चाहिए| 

यह प्रक्रिया 40 दिन तक चलने देते हैं, 40 दिन बाद किसी पतले सूती या मलमल के कपड़े से इस घोल को अच्छी तरह से हिलाकर छान लेते है| छनित तरल पदार्थ का प्रयोग फसल रक्षक रसायन के रूप में करते हैं एवं छनित वनस्पतियों को सुखाकर दीमक इत्यादि के नियंत्रण के लिये भी प्रयोग किया जाता है|

इस दवा का फसल पर प्रयोग करने के लिये एक लीटर दवा को 80 लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल पर छिड़का जाता है| जिससे छेदने वाले, काटकर खाने वाले रस चूसने वाले कीटों का नियंत्रण तो होता ही है, साथ ही फसल पर नील गाय और जंगली भैंसा तथा जंगली सांड भी नुकसान नहीं पहुंचा पाते|| इस कीटनाशी में प्रयोग की जाने वाली सामग्री आसानी से  आसानी से मिल जाती है|

इसके छिड़काव से फसल हरी-भरी हो जाती है एवं रोगों का प्रकोप भी कम होता है

इस दवा का प्रयोग मक्का, कपास, तम्बाकू, टमाटर, दलहन, गेहूं, धान, सूरजमुखी, फल, केला, भिन्डी, गन्ना इत्यादि सभी फसलों में सफलतापूर्वक किया जा सकता है| 

गौमूत्र और तम्बाकू 

10 लीटर गोमूत्र में एक किलोग्राम तम्बाकू की सूखी पत्तियों को डालकर उसमें 250 ग्राम नीला थोथा घोलकर 20 दिन तक बन्द करके किसी डिब्बे में रख देते हैं| 20 दिन बाद इसको निकालकर छानकर एक लीटर दवा को 100 लीटर पानी में घोलकर छिड़कने से बालदार सुंडी का विशेष नियंत्रण होता है| इसका प्रयोग भी दोपहर के बाद करना अच्छा रहता है| 

गोमूत्र और लहसुन 

दस लीटर गोमूत्र में 500 ग्राम लहसुन कूटकर उसमें 50 मिलीलीटर मिट्टी का तेल मिला देते हैं| इस मिट्टी के तेल और लहसुन के मिश्रण को गोमूत्र में डालकर 24 घंटे पड़ा रहने देते हैं| इसके बाद इसमें 100 ग्राम साबुन अच्छी तरह मिलाकर इस मिश्रण को अच्छी तरह हिलाकर बारीक कपड़े से छान लें, एक लीटर दवा को 80 लीटर पानी में घोलकर प्रातःकाल छिड़काव करने से रस चूसक कीड़ों से फसलों को बचाया जा सकता है|

वृद्ध गोबंश जैसे- गाय, बैल आदि का मूत्र बहुत आसानी से, थोड़ा सावधानी और ध्यान देने से एकत्रित किया जा सकता है|

 गोमूत्र का एकत्रीकरण, अपनी सुविधानुसार प्लास्टिक के डिब्बे की सहायता से या पक्की गौशाला के पास पक्की नाली व टंकी की सहायता से एकत्रित कर किया जा सकता है|

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