हिदू धर्म में परंपरा के रूप में गाय को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पूज्य मानने की सोच सदियों से चली आ रही है। कर्इ मंदिरों में कुछ खास धार्मिक अवसरों पर पशुओं की बलि के चलन के बावजूद आम हिंदुओं को गोकशी स्वीकार नहीं।
माना जाता है कि भारत में मुगलों के आने के बाद मुस्लिम आधिपत्य के दौर में गौमांस खाने का प्रचलन शुरू हुआ और इसके बाद र्इसाइयों ने भी इसे आगे बढ़ाया। जब हिंदू समाज ने गोकशी का विरोध शुरू किया तो समाज में धार्मिक टकराव की स्थितियां बनने लगीं। वहीं एक तथ्य यह भी है कि भारत पशुओं के मांस का दूसरा बड़ा निर्यातक देश भी है। इसलिए यह आशंका जतायी जाती रही है कि अन्य पशुओं के मांस के निर्यात के साथ ही गौवंश के मांस का भी निर्यात होता है लेकिन इस बारे में कोर्इ भी स्पष्टता नहीं है।
देश के अधिकांश राज्यों में जहां गोकशी पर पूर्ण पाबंदी है उन्हीं राज्यों में गुपचुप तौर पर अवैध रूप से गोकशी के मामले भी सामने आते रहते हैं। हिंदुओं से जुडें मुद्दों का समर्थन देने वाली भाजपा जहां गोकशी के विरोध को अपने एजेंडे में शीर्ष पर रखती है वहीं उसके विरोधी दल इस मामले में वोट बैंक के लालच में समाज के ध्रुवीकरण का मौका नहीं चूकते। भाजपा विरोधी दलों में तमाम हिंदू नेता निजी तौर पर गोकशी के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन वे राजनीतिक कारणों से गोकशी पर प्रतिबंध का विरोध करते हैं। ऐसे राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने के लिए गोकशी को सही ठहराते हैं।
एक सच्चार्इ यह है कि गोकशी करने वाले कुछ लोग आर्थिक लाभ के साथ-साथ यह काम इसलिए भी करते हैं क्योंकि वे हिंदू संगठनों की विचारधारा के विरोध में खड़े दिखना चाहते हैं। वे मुस्लिम धर्मगुरुओं की इस सलाह पर अमल के लिए तैयार नहीं होते कि गाय की कुर्बानी से बचें। ऐसे तत्व कानूनी पाबंदी की भी परवाह नहीं करते।
निःसंदेह औसत मुस्लिम गौवध से परहेज करते हैं, क्योंकि वे भारतीय परंपराओं और हिंदुओं की श्रद्धा का सम्मान करते हैं, लेकिन उनके बीच ही ऐसे लोग भी हैं जो बदले की भावना के तहत गोकशी से परे हटने के लिए तैयार नहीं। उन्हें लगता है कि जिस तरह हिंदू समुदाय मुस्लिमों के कुछ रीति-रिवाजों का विरोध करते हैं उसी तरह उन्हें भी हिंदुओं की परंपराओं का विरोध करना चाहिए, भले ही यह गोकशी के रूप में हो। हो सकता है कि गोकशी कुछ लोगों के लिए आर्थिक दृष्टि से लाभदायक हो अथवा उनके जीवनयापन का जरिया हो, लेकिन यह उचित नहीं कि इसकी आड़ में पूरे हिंदू समुदाय की धार्मिक मान्यताओं की अनदेखी कर दी जाए। ऐसी कोर्इ आर्थिक गतिविधि समाज के हित में नहीं हो सकती, जो दो समुदायों को आमने-सामने खड़ा कर दे। जो धार्मिक मान्यताओं के चलते गोकशी का विरोध कर रहे हैं वे अपनी मान्यता पर कायम ही रहेंगे, लेकिन उन्हें देखना होगा कि सभ्य समाज इसकी इजाजत नहीं देता कि गाय का मांस खाने के शक में किसी की जान ली जाए।
…….. पी. कुमार संभव