गाय का गोबर और गौमूत्र पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत उपयोगी है। वेदों में कहा गया है कि वनों और कृषियोग्य भूमि की रक्षार्थ गायों को चरने के लिए खुला छोड़ा जाना चाहिए। देश में वनक्षेत्र काफी विस्तारित था, जो पर्यावरण और वर्षा को सुरक्षित और नियमित बनाए रखता था। साथ ही कृषिभूमि भी काफी उपजाऊ हुआ करती थी। दुर्भाग्यवश अंग्रेजों की नीतियों के कारण गायों का वनों में चरने जाना प्रतिबंधित कर दिया गया और गौमांस का व्यापार बढ़ाने के लिए कत्लखानों को प्रोत्साहन दिया जाने लगा। परिणाम स्वरुप आज देश का वनक्षेत्र कम होता जा रहा है और कृषि भी बर्बाद हो रही है। वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं कि वनों के संरक्षण में गायों का महत्वपूर्ण योगदान है। इस बात को प्रमाणित करने में एलन सेवरी का नाम उल्लेखनीय है।
गायों के वन में विचरने से गोचर और वन क्षेत्र हरे भरे रहते हैं, जिससे पर्यावरण का संरक्षण होता है। गाय का गोबर और गोमूत्र गाय के पैरों से मिट्टी में जब अच्छी तरह से मिल जाते हैं, तब ऐसी मिट्टी वर्षा के जल को समेट कर रखती है, बह कर जाने नहीं देती। जिस भूमि में गाय विचरण करती हों वह भूमि अपनी आर्द्रता बनाए रखती है और हरी भरी रहती है। ऐसे वन क्षेत्र मरुस्थल नहीं बनते।
इस प्रकार जितनी अधिक गाय भूमि पर घूम-घूम कर चरते हुए गोबर छोड़ेंगी, उतनी ही भूमि की वर्षा के जल को रोकने की क्षमता बढ़ती है। इसके साथ ही भूमि में कार्बन डाइऑक्साइड गैस को रोकने की क्षमता बढ़ती है जिसके परिणामस्वरूप ओजोन आच्छादन सुरक्षित होता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रकार गौओं की संख्या बढ़ा कर गोचरों में छोड़ने के साथ-साथ अन्य गैर पारम्परिक ऊर्जा के सौर ऊर्जा जैसे स्रोतों के उपयोग से विश्व में पर्यावरण की पूर्ण रूप से सुरक्षा सम्भव हो सकेगी।
ऋग्वेद में बंजर भूमि को गायों द्वारा कृषि योग्य बनाने की बात कही गयी है।
वनों में गायों के चरने से स्वास्थ्य लाभ भी होता है।