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खुशहाल जीने की राह जैविक कृषि

भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है. बढ़ती हुई जनसंख्या और आय की दृष्टि से उत्पादन बढाने के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको तथा कीटनाशक का उपयोग किया जाने लगा है. इससे छोटे किसानों के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लगती है. 

जल, भूमि, वायु और वातावरण प्रदूषित हो रहा है खाद्य पदार्थ भी ज़हरीले हो रहे हैं. इन सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है जैविक कृषि. 

जैविक कृषि से फसल और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता और अधिक पैदावार भी मिलती है.

जैविक कृषि से भूमि की उपजाऊ क्षमता बढती है. सिंचाई अंतराल में वृद्धि होने से वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक कृषि की विधि और भी अधिक लाभदायक है. 

रासायनिक खाद पर निर्भरता न होने से लागत में कमी आती है, फसलों की उत्पादकता बढती है और बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है.

अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं, जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा किसान और अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं. 

आधुनिक समय में निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शकि्त का क्षरण और मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक कृषि अत्यन्त लाभदायक है. 

मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए नितान्त आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हों, शुद्ध वातावरण रहे और पौषि्टक आहार मिलता रहे. इसके लिये जैविक खेती की कृषि पद्धतियाँ को अपनाना होगा जो कि हमारे नैसर्गिक संसाधनों एवं मानवीय पर्यावरण को प्रदूषित किये बगैर समस्त जनमानस को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकेगी तथा हमें खुशहाल जीने की राह दिखा सकेगी.

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