पंजाब राज्य के जालंधर में नूरमहल स्थित दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा संचालित ‘कामधेनु गोशाला’ की अपनी एक अलग पहचान है. यहाँ का कामधेनु संरक्षण एवं संवर्धन अनुसंधान केंद्र पूरे भारत में विशिष्ट प्रजातियों की उत्कृष्ट गुणों वाली गायों को विकसित करने और उनके संवर्धन के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रणालियों के उपयोग में अपनी अलग पहचान बना चुका है.
कामधेनु गोशाला संवर्धन अनुसंधान केन्द्र की वैज्ञानिक प्रणाली और विश्व स्तरीय प्रबंधन को सीखने और जानने के लिए अन्य देशों से शोधकर्ता और कृषि व गोपालन के विद्यार्थी भी यहां आते है.
कामधेनु गोशाला देसी गायों के संरक्षण एवं संवर्धन में पिछले 10 सालों से काम कर रही है. लगभग लुप्त हो गई नस्ल साहिवाल को बचाने व उसके नस्ल सुधार में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की कामधेनु गोशाला का योगदान अद्वितीय माना जाता है.
कामधेनु गोशाला में गायों का पुराना वंशज रिकॉर्ड साफ्टवेयर के माध्यम से अपडेट किया जाता है.
कोई गाय 20 लीटर दूध देती है, तो उसे क्या बीमारी थी दूध कैसे बढ़ाया गया, आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है, यह सारा रिकार्ड एक क्लिक पर नूरमहल स्थित गोशाला में सामने आ जाता है. उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी पूरा मिलान किया जाता है कि नई पैदा होने वाली गायों में क्या फर्क आ रहा है और इनका दूध कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है, आगे कैसे गायों की संख्या को बढ़ाया जाना है। यही वजह है कि जहां पहले नूरमहल की कामधेनु गोशाला में चार क्विंटल दूध रोजाना होता था, अब वह 13 क्विंटल तक पहुंच गया है।
गायों की रिसर्च के लिए अलग से सेक्शन तैयार किया हुआ है, जिसमें प्रोजनी सिलेक्शन काफी महत्वपूर्ण है। इसमें गायों का अपनी मां व दादी से पूरा प्रोफाइल मिलाया जाता है कि दादी का कितना दूध होता था और मां दो समय में कितना दूध देती थी। इस पूरी प्रक्रिया पर रोजाना टीम नजर रखती है।
यही वजह है कि केंद्र सरकार दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की गोशाला को देशभर की नंबर वन गोशाला से नवाजा गया है.
नूरमहल की गोशाला में 800 गाय हैं, जिनकी देखभाल के लिए सेवादारों की लंबी चौड़ी संख्या है. सारी गायें देसी नस्ल की हैं, जिसमें साहीवाल, गीर (गुजरात), थारपाकर (राजस्थान नस्ल) व कांकरेज (कच्छ की नस्ल) हैं. इनका पूरा रिकार्ड कंप्यूटराइज है और यहां पर यह प्रयास चल रहा है कि देसी नस्ल की गायों की संख्या को बढ़ाया जाता रहे. इस वजह से गायों का पूरा रिकॉर्ड व डाटा तैयार किया जाता है. गायों की वंशावली पर पूरा ध्यान केंद्रित किया जाता है।
गाय में वर्णसंकरता की समस्या से निपटने के लिए गोशाला में लगभग 25 गोत्र चलाए जा रहे हैं. हर गाय और साड की वंशावली बनाई जाती है, जिसका इस्तेमाल सेलेक्टिव ब्रीडिंग के लिए किया जाता है. कृत्रिम गर्भाधान, एब्र्यो ट्रासप्लाट टेक्नोलॉजी (ईटीटी) एवं आइवीएफ जैसी आधुनिक प्रणाली के प्रयोग से कामधेनु ने कम समय में उत्कृष्ट गुणों वाली दुधारू गाएं अच्छी संख्या में विकसित की है.
कामधेनु संरक्षण एवं संवर्धन अनुसंधान केंद्र देश की देसी नस्लों के कृषि व डेयरी क्षेत्र में लाभ, उनके पालन व आर्थिक एवं पर्यावरण से जुड़े पक्षों पर प्रशिक्षण व जागरूक कार्यक्रम आयोजित करती है. कामधेनु केंद्र से प्रशिक्षण एवं प्रेरणा प्राप्त करके बहुत से किसानों ने देसी गोपालन शुरू किया है तथा उनको ए2 दूध का अच्छा खासा मूल्य भी मिल रहा है.
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